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A unique petition came in the Supreme Court-सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने एक अनोखी याचिका दायर की है।
याचिका में यौन संबंधों की सहमति की न्यूनतम आयु को 18 से घटाकर 16 वर्ष करने की मांग की है।
इसके पीछे उन्होंने तर्क भी दिया है।
वरिष्ठ वकील और न्याय मित्र (एमिकस क्यूरी) इंदिरा जयसिंह ने एक अर्जी डाली है।
इसमें कोर्ट से शारीरिक संबंध बनाने की उम्र घटाने की अपील की है।
जयसिंह का तर्क है कि यह स्थिति किशोरों की निजता, स्वायत्तता और संवैधानिक अधिकारों का हनन करती है।
उन्होंने कहा कि एक किशोर या किशोरी को अपने शरीर और जीवन के निर्णय लेने का अधिकार होना चाहिए।
वर्तमान के नियमानुसार भारतीय दंड संहिता की धारा 375 और पॉक्सो अधिनियम के तहत
18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति से सहमति से बना यौन संबंध भी अपराध माना जाता है।
इसी सिलसिले में इंदिरा जयसिंह ने अपनी याचिका में कहा है कि अनुच्छेद 21,
जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है, के अंतर्गत यौन स्वायत्तता भी शामिल है।
तेजी से परिपक्व हो रही है किशोर पीढ़ी
जयसिंह का कहना है कि आज की किशोर पीढ़ी शारीरिक और मानसिक रूप से तेजी से परिपक्व हो रही है।
वो अपनी पसंद के अनुसार प्रेम संबंध और यौन संबंध बनाने में सक्षम हैं।
ऐसे में आपसी सहमति से बनाए गए संबंधों को अपराध मानना तथ्यों और वास्तविकताओं से आंखें मूंदने जैसा है।
जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि 16 से 18 वर्ष के किशोरों के बीच आपसी सहमति से बने यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया जाए।
सहमति के बावजूद माता पिता दर्ज कराते हैं शिकायत
जयसिंह ने यह भी उल्लेख किया कि कई बार अंतरधार्मिक या अंतरजातीय रिश्तों में
माता-पिता, बच्चों की सहमति के बावजूद, नाबालिग लड़की के प्रेमी लड़के के खिलाफ पॉक्सो के
तहत शिकायत दर्ज कराते हैं। इससे युवक कानूनी झंझटों, जेल और सामाजिक कलंक का शिकार हो जाते हैं।
NFHS के आंकड़ो को भी किया पेश
इंदिरा जयसिंह ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) और दूसरे वैज्ञानिक आंकड़ों का हवाला दिया।
उन्होंने कहा कि किशोरों के बीच यौन संबंध बनाना असामान्य नहीं बल्कि एक सामाजिक यथार्थ है।
वर्ष 2017 से 2021 के बीच 16 से 18 वर्ष के किशोरों के खिलाफ पॉक्सो के तहत मामलों में 180% की बढ़ोतरी हुई है।
इससे यह संकेत मिलता है कि सहमति से बने संबंधों को जबरदस्ती अपराध के रूप में दर्ज किया जा रहा है।
जिससे किशोरों का भविष्य प्रभावित हो रहा है।
बॉम्बे, मद्रास और मेघालय हाईकोर्ट का हवाला
दायर की गई याचिका में जयसिंह ने बॉम्बे, मद्रास और मेघालय हाईकोर्ट के कुछ मामलों का हवाला भी दिया।
जहां जजों ने पॉक्सो एक्ट के दायरे में आए किशोरों के मामलों में आपत्ति जताई थी।
इन अदालतों ने माना कि हर यौन संबंध बलपूर्वक नहीं होता।
यह जरूरी है कि कानून दुर्व्यवहार और आपसी सहमति के रिश्तों के बीच फर्क करे।
जयसिंह ने अपनी लिखित रिपोर्ट में कहा, ‘‘यौन स्वायत्तता मानव गरिमा का हिस्सा है।
किशोरों को अपने शरीर के बारे में विकल्प चुनने की क्षमता से वंचित करना संविधान के
अनुच्छेद 14, 15, 19 और 21 का उल्लंघन है।’’
जयसिंह ने कहा कि शारीरिक संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र में बढ़ोतरी बिना किसी बहस के की गई थी
और यह जस्टिस वर्मा समिति की सिफारिश के खिलाफ है।
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