Somnath Temple Shivling: भारत के प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है।
विवाद की जड़ हैं श्री श्री रविशंकर का किया गया दावा।
जिसमें उन्होंने कहा है कि उनके पास सोमनाथ मंदिर के मूल शिवलिंग के चार टुकड़े हैं।
इनमें से दो को वे पुनः सोमनाथ मंदिर में स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।
इस घोषणा के बाद से शंकराचार्य, संत, महंत और शिव उपासकों ने कड़ा विरोध जताया है।
सभी इसे आस्था में विभाजन पैदा करने वाला कदम बता रहें है।
शिवलिंग को लेकर श्री श्री रविशंकर का दावा
श्री श्री रविशंकर आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक हैं।
उन्होंने दावा किया कि 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी द्वारा तोड़े गए सोमनाथ शिवलिंग के चार अंश उनके पास हैं।
उन्होंने बताया कि ये पवित्र अंश उन्हें हाल ही में आयोजित महाकुंभ के दौरान प्राप्त हुए।
ये अंश वर्षों तक अग्निहोत्री ब्राह्मणों द्वारा दक्षिण भारत में संरक्षित रहे और बाद में उन्हें सौंपे गए।
उन्होंने कहा कि इन अंशों को पहले कांचीपुरम के शंकराचार्य चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती को दिखाया गया था।
जिन्होंने इन टुकड़ों को छिपाकर रखने और राम मंदिर बनने के बाद प्रकट करने का निर्देश दिया था।
अंततः पंडित सीताराम शास्त्री के परिवार ने इन्हें रविशंकर को सौंपा।
श्री श्री रविशंकर की योजना है कि इन टुकड़ों की एक भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी।
जो अयोध्या जैसे प्रमुख तीर्थों से होकर गुजरेगी और फिर इन्हें सोमनाथ में पुनः स्थापित किया जाएगा।
उनका कहना है कि यह सनातन संस्कृति के उत्थान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
शंकराचार्यों, संतों, महंतों ने जताया विरोध
श्री श्री रविशंकर के इस दावे पर कई प्रमुख संतों और शंकराचार्यों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
उनका कहना है कि ज्योतिर्लिंग स्वयंभू होता है और उसकी दोबारा प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती।
वे मानते हैं कि इस तरह की घोषणा सनातन आस्था में भ्रम और विभाजन उत्पन्न कर सकती है।
अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती (ज्योतिष पीठ)
ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि यदि श्री श्री रविशंकर के पास शिवलिंग के अंश हैं।
इसका मतलब हुआ कि वर्तमान में सोमनाथ मंदिर में जो शिवलिंग है, वह अधूरा है। फिर क्या उसकी पूजा अधूरी मानी जाएगी?
उन्होंने सवाल उठाया कि श्री श्री रविशंकर ने अब तक इस बारे में प्रधानमंत्री या सोमनाथ ट्रस्ट से बात क्यों नहीं की, जबकि वे उनसे मिलते रहते हैं।
सदानंद सरस्वती (द्वारका शारदापीठ)
द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग स्वयंभू है और गजनवी के आक्रमणों के बावजूद वह नष्ट नहीं हुआ।
उन्होंने स्पष्ट किया कि एक बार किसी देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने पर उसे दोबारा प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता।
हरिगिरि महाराज (अखाड़ा परिषद)
महंत हरिगिरि महाराज ने सोमनाथ को अग्नि स्वरूप बताया और कहा कि ज्वाला को कभी खंडित नहीं किया जा सकता।
उनका कहना है कि ईश्वर की ज्वाला न तो किसी के नियंत्रण में है और न ही इसे तोड़ा जा सकता है।
उन्होंने रविशंकर से सवाल किया कि यदि वे शिवलिंग के अंश लाए हैं, तो इसकी प्रमाणिकता क्या है?
निजानंद स्वामी (शिव उपासक)
शिव उपासक निजानंद स्वामी ने कहा कि 1000 साल पुराने मूल शिवलिंग के टुकड़े किसी के पास होना लगभग असंभव है।
उन्होंने बताया कि प्राचीन सोमनाथ शिवलिंग एक चट्टान से उकेरा गया था और उसे बार-बार तोड़ा गया, यहां तक कि चूने में पीस दिया गया था।
उन्होंने दोबारा प्रतिष्ठा की आवश्यकता को नकारा और कहा कि आज जो शिवलिंग स्थापित है, वही पूज्य है।
दावे पर सोमनाथ ट्रस्ट की प्रतिक्रिया
सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी पीके लाहिड़ी ने कहा कि श्री श्री रविशंकर के पास जो टुकड़े हैं, उनके मूल शिवलिंग से जुड़े होने का कोई प्रमाण नहीं है।
उन्होंने कहा कि ट्रस्ट के पास रविशंकर की ओर से कोई आधिकारिक पत्राचार नहीं आया है और न ही मंदिर में पुनः प्रतिष्ठा को लेकर कोई निर्णय लिया गया है।
उनका कहना है कि जब तक ठोस प्रमाण नहीं मिलते, इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता।
पुराण और ज्योतिर्लिंग की व्याख्या
शिव कथावाचक गिरिबापू ने बताया कि ज्योतिर्लिंग का अर्थ होता है – वह ज्योति जो अनंत हो, जिसकी कोई सीमा न हो।
उन्होंने कहा कि जब ब्रह्मा और विष्णु में अहंकार युद्ध हुआ था, तब शिव स्वयं एक अनंत प्रकाश स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। वही ज्योतिर्लिंग कहलाया।
शिवपुराण के अनुसार ऐसे 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग हैं, जिनमें सोमनाथ प्रथम है।
इस संदर्भ में शिवलिंग के पुनः प्रतिष्ठान की अवधारणा पर कई विद्वानों ने सवाल खड़े किए हैं।
विवाद के पीछे धार्मिक और ऐतिहासिक सवाल
प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ मंदिर की आस्था भारत के कोने-कोने में फैली हुई है।
यह बहस केवल श्री श्री रविशंकर के दावे और शिवलिंग के पुनः प्रतिष्ठान की नहीं है।
इस पूरे विवाद ने एक गहन धार्मिक और ऐतिहासिक बहस को जन्म दे दिया है।
जब बात सनातन संस्कृति की हजारों वर्षों की परंपरा की हो, तो हर कदम बेहद सोच-समझकर उठाया जाना चाहिए।
फिलहाल तो धर्मगुरुओं और संतों का रुख स्पष्ट है कि ज्योतिर्लिंग को दोबारा प्रतिष्ठित करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या श्री श्री रविशंकर अपने दावों के समर्थन में ठोस प्रमाण प्रस्तुत कर पाते हैं या नहीं?
क्या यह विवाद महज चर्चा तक सीमित रहेगा या फिर कोई ठोस निर्णय और हल सामने आएगा?
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