बिहार में रामनवमी पर हुई हिंसा और हथियारों के प्रदर्शन ने
नीतीश की राजनीतिक ताकत, सुशासन को कमजोर किया
बिहार इनदिनों एक अलग तरह के रंग में दिख रहा है. भारतीय जनता पार्टी के साथ नीतीश कुमार के हाथ मिलाते ही जिस बात का अंदेशा या भरोसा था, वो अब सच होता दिख रहा है. रामनवमी पर पूरे बिहार में निकले जुलूस ने साबित किया की बिहार से नीतीश की पकड़ ढीली हुई है. भगवा राजनीति ने भगवान राम के जन्मोत्सव के दौरान जो शक्ति प्रदर्शन किया वैसा बिहार ने कभी नहीं देखा. कभी नहीं का मतलब किसी भी सरकार में नहीं देखा. बिहार में हिंसा नई नहीं है. पर धार्मिक जुलूस में सुनियोजित ढंग से इस तरह से हथियारों का प्रदर्शन कभी नहीं हुआ. रामनवमी के जुलूस में इस बार बीजेपी और उसके सहयोगी दलों ने भगवा की ताकत और खुला प्रदर्शन किया. ये नीतीश कुमार को खुलेआम चुनौती और भविष्य का संकेत है. सबसे बड़ी बात यही है कि कानून का राज और सांप्रदायिकता के विरोधी सुशासन बाबू इस बार चूकते नजर आये. बुधवार को नालंदा में फिर हिंसा भड़की इसके पहले करीब 6 जिलों में सांप्रदायिक हिंसा भड़की है. क्या ये मान लिया जाए कि सत्ता के लिए नीतीश ने साम्प्रदायिकता को स्वीकार लिया है.
इन सारे मामलों की वजह से नीतीश सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. भागलपुर में केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे का खुलेआम हथियार लहराते फोटो वायरल हुआ. पर नीतीश सरकार कोई कार्रवाई की हिम्मत नहीं कर सकी. बिहार ने इसके पहले कभी बजरंग दल जैसी उग्र हिंदूवादी राजनीति नहीं देखी। पर इस बार रामनवमी के जुलूस में बजरंग दल का भी प्रकटोत्सव हो गया. क्या ये बिहार के पूर्ण सांप्रदायिक और कट्टरवाद की तरफ बढ़ाने की शुरवात है. नीतीश राज में ऐसा होना बदलती राजनीति का भी संकेत है. नीतीश की चुप्पी उन्हें सत्ता के साथ-साथ लोगों के दिमाग से भी बाहर कर देगी।
सरकार की जवाबदेही को सवालों के कटघरे में खड़ा किया जा रहा है. ऐसा नहीं है कि बिहार में पहले दंगे नहीं हुए हैं. लेकिन पिछले दिनों जो माहौल बना है उसमें नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्ष छवि की विश्वसनीयता पर सबसे ज्यादा सवाल उठाए गए हैं. बीजेपी के साथ जाने की वजह से ऐसे मामलों से निपटने में नीतीश कुमार की कमजोरी दिखाने की कोशिश की जा रही है. नीतीश के पास अब जयादा विकल्प भी नहीं है, लालू और कांग्रेस से वे नाता तोड़ चुके हैं, बीजेपी से दूर हुए तो उनके लिए अकेले सत्ता में लौटना मुश्किल रहेगा. बीजेपी भी इस बात को अच्छे से जानती है, और नीतीश के लिए फ़िलहाल चारो तरफ से हार ही दिख रही है.
You may also like
-
अफ़ग़ान बाल वधू बनी यूरोप की शीर्ष बॉडीबिल्डर!
-
आडवाणी ने जो सांप्रदायिकता के बीज बोए, उसकी फ़सलें अब मोदी जी काट रहे हैं !
-
सबसे अलग .. बिहार में भाजपा हिन्दुत्वादी क्यों नहीं दिखती ?
-
68 लाख किलो नकली घी बेचकर जैन सेठों ने भगवान को लगाया 250 करोड़ का चूना !
-
#biharelection .. माथा देखकर तिलक करता चुनावआयोग
