नमोकार… अच्छा नसीबवाले का बाकी ‘एक्ट ऑफ़ गॉड’

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आर्थिक-बदनसीबी’ के इलाज में मोदी का ‘नसीब’नाकाम

 

उमेश त्रिवेदी (प्रधान संपादक, सुबह सवेरे )

’भारत की चमकदार (?) अर्थ-व्यवस्था में कोरोना के माध्यम से भगवान के सेबोटेज (एक्ट ऑफ गॉड) के चौंकाने वाले खुलासे के बाद देश की गरीब जनता को अपनी भूख और बदहाली को अपनी नियति मानकर पेट पर हाथ बांध कर दैवी कृपा का इंतजार करना चाहिए। जीएसटी पर आहूत पिछली बैठक में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन ने अर्थव्यवस्था की बदहाली के लिए कोरोना को जिम्मेदार बताते हुए कहा था कि यह ’एक्ट ऑफ गॉड’ है।

राम और कृष्ण के अवतारों की तर्ज पर धर्म की ग्लानि होने पर ईश्‍वरीय अवतार की अनगिन कथाएं प्रचलित हैं। कहना कठिन है कि देव भूमि में ऐसा कौन-सा महापाप हुआ है कि देश को कोरोना जैसी महामारी के दैवी प्रकोप ने घेर लिया है, लेकिन चमत्कारों में भरोसा रखने वाले ज्योतिषी मुतमईन थे कि अप्रैल 2020 तक कोरोना का अंत निश्‍चित है।

देश के जाने-माने अखबार ’प्रभात खबर’ ने 15 मार्च 20 को ज्योतिष के नजरिए से छापा था कि 29 मार्च को बृहस्पति के मकर में आते ही कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा। देश के ज्यादातर अखबार ऐसी भविष्यवाणियां छापते रहे हैं। ’प्रभात खबर’ ने कहा था कि 29 मार्च को शाम 7.08 बजे बृहस्पति का मकर राशि में प्रवेश शनि-मंगल के साझा उबाल पर पानी डाल देगा। शनि-बृहस्पति की युति मौजूदा भयावह परिद्दश्य् में ठंडी बयार की तरह आएगी और मानव सभ्यता के जख्मों पर मरहम लगाएगी।

खबर में ग्रह-नक्षत्रों के प्रवास और प्रकोप को विस्तार से समझाया गया था। निष्कर्ष यह था कि मई मध्य तक महामारी का एक झटके के साथ अंत हो जाएगा। बीमारी तो खत्म नहीं हुई लेकिन देश की इकॉनामी जरूर कोरोना-ग्रस्त हो गई। इसी के मद्देनज 27 अगस्त को जीएसटी काउंसिल की 41 वीं मीटिंग में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कोरोना वायरस को ’एक्ट ऑफ गॉड’ बताते हुए कहा था कि इसका असर जीएसटी कलेक्शन पर पड़ा है।

बकौल वित्तमंत्री जीएसटी कलेक्शन में 2.35 लाख करोड़ की कमी हो सकती है। चालू वर्ष में 3 लाख करोड़ रूपए के कम्पन्सेशन कलेक्शन की उम्मीद थी। एजेंडे के मुताबिक बैठक में कई बड़े फैसले होना थे, लेकिन ’एक्ट ऑफ गॉड’ के कारण कोई बड़ा फैसला नही हो सका और बैठक को सितम्बर तक के लिए टाल दिया गया।

मुद्दा राज्य-सरकारों को जीएसटी कलेक्शन में होने वाले शार्ट-फॉल के मुआवजे से संबंधित था। अप्रैल से जुलाई के दरम्यान केन्द्र सरकार को मुआवजे के रूप में राज्यों को 1.5 लाख करोड़ रुपया देना बकाया था। कोविड-19 और लॉक-डाउन के कारण एक दर्जन से ज्यादा राज्य सरकारें भीषण आर्थिक संकट से जूझ रही हैं।

हालात इतने खराब हैं कि कर्मचारियों को समय पर वेतन भी नहीं मिल पा रहा है। केन्द्र सरकार ने जीएसटी संग्रहण में कमी की आपूर्ति के रूप में पांच साल तक मुआवजा देने का वादा किया है। लेकिन इसे पूरा कर पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा है। गैर- भाजपाई राज्यों की सरकारों का दबाव है कि घाटे
की पूर्ति करना केन्द्र सरकार की सांविधिक जिम्मेदारी है।

केन्द्रीय वित्तमंत्री पर तंज कसते हुए पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने कहा है कि ’’अगर ये महामारी दैवीय घटना है तो हम 2017-18 और 2018-19 के वित्तीय कुप्रबंधन का वर्णन कैसे करेंगे ? क्या वित्तमंत्री गॉड के मैसेन्जर के रूप मंर इसकी व्याख्या करेंगी?’’ क्षतिपूर्ति को पाटने के लिए केन्द्र सरकार के दोनो विकल्प व्यावहारिक नही हैं।

ये विकल्प राज्यों की कमर तोड़ देगें। बहरहाल, कोरोना की बदनसीबी के संदर्भ में ’एक्ट ऑफ गॉड’ के जुमले ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस भाषण को ताजा कर दिया है, जो उन्होने 2015 में दिल्ली के विधानसभा चुनाव की रैली में दिया था। विपक्ष पर प्रहार करते हुए मोदी ने कहा था कि – ’’क्या डीजल-पेट्रोल के भाव कम हुए या नहीं…क्या आपकी जेब में पैसा बचने लगा है कि नहीं… अब विरोधी कहते हैं कि मोदी नसीब वाला है… तो मोदी का नसीब जनता के काम आता है तो इससे बढ़िया नसीब की बात क्या हो सकती है… आपको नसीब वाला चाहिए या बदनसीब चाहिए…?’

’ कई मर्तबा गर्वोक्तियां ’’रि-बॉउंस’’ होती है और खुद को ही आहत करती हैं। वित्तमंत्री का जुमला मोदी-सरकार के 6 वर्षों के कार्यकाल की आर्थिक-विफलताएं छुपाने में सफल नही हो पाएगा। कोरोना का प्रकोप अपनी जगह है और उसकी आकस्मिकता भी सवालों से परे हैं। सरकारों की आर्थिक आयोजना में कोरोना जैसे धक्के बर्दाश्त करने की व्यवस्था हमेशा रखी जाती है।

लेकिन हमेशा चुनावी मोड में रहने वाली मोदी सरकार ने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि उसके फैसले देश की आर्थिक स्थिरता को कितना प्रभावित करेंगे? नोटबंदी देश की आर्थिक फिसलन का पहला पड़ाव था। उसके बाद राजनीतिक उन्माद और हड़बड़ी में लागू जीएसटी ने राजस्व वसूली के सारे ताने-बाने को ही हिला दिया। नोटबंदी और जीएसटी के दुष्परिणामों से उबरने के पहले ही कोरोना की मार ने देश की आर्थिक-कमर को तोड़ कर रख दिया है।

सरकारी आंकडों के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद 4.5 से कम है। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के मुताबिक तो जीडीपी 1.5 से भी नीचे है। देश का खजाना खाली हो चुका है। मोदी सरकार उधार लेकर घी पी रही है। हर संभव धन बटोरने के चक्कर में सरकार रिजर्व बैंक के आपातकालीन कोष से क्रमशः पहले डेढ़ लाख करोड़ रूपए और उसके बाद 45 लाख करोड़ रूपए ले चुकी है।

दो बार धन वसूलने के बाद 10 हजार करोड़ रूपयों तीसरी डिमाण्ड पर रिजर्व बैंक ने हाथ ऊंचे कर दिए। ये स्थितियां शर्मसार कर देने वाली हैं। ये परिस्थितियां मोदी सरकार की अपनी पैदाइश हैं। इन्हें ’एक्ट ऑफ गॉड’ कदापि नहीं कहा जा सकता है। मोदी का नसीब इन्हें ठीक करने मे असमर्थ है। सवाल यह है कि ऐसा नसीब अब किसकी बदनसीबी माना जाएगा? (साभार )

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