Congress MLA Vikrant Bhuria

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विवाद में विक्रांत भूरिया, झाबुआ विधायक के ‘वेलफेयर फंड’ से टेंट हाउस, होटल और रिश्तेदारों को फायदा

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Congress MLA Vikrant Bhuria: कांग्रेस विधायक डॉ. विक्रांत भूरिया एक बड़े विवाद में घिर गए हैं।

उन पर आरोप है कि उन्होंने गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए मिलने वाली स्वेच्छानुदान राशि का उपयोग निजी खर्चों के लिए किया है।

आरटीआई (सूचना के अधिकार) के माध्यम से सामने आई जानकारी से यह खुलासा हुआ है।

स्वेच्छानुदान के पैसों से चाय-नाश्ते, टेंट हाउस और होटल के बिल चुकाए गए, पार्टी पदाधिकारियों और रिश्तेदारों को रकम बांटी गई और यहां तक कि कार्यालय स्टाफ की सैलरी भी इसी से दी गई।

यह आरोप झाबुआ के पूर्व कांग्रेस नेता मथियास भूरिया ने लगाए हैं, जो कभी कांतिलाल भूरिया और विक्रांत भूरिया के करीबी माने जाते थे।

मथियास ने विधानसभा अध्यक्ष, कलेक्टर, मुख्यमंत्री और राज्यपाल को पत्र लिखकर विधायक की सदस्यता समाप्त करने और एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।

टेंट हाउस वालों को गरीब बताया

स्वेच्छानुदान के जिन लाभार्थियों की सूची आरटीआई के जरिए सामने आई है, उसमें कई चौंकाने वाले नाम शामिल हैं।

रानापुर के टेंट व्यवसायी सतीश जैन और विक्की सकलेचा को तीन बार में 30 हजार और एक बार में 25 हजार रुपये की मदद दी गई। इतना ही नहीं, इनके परिवार के अन्य सदस्यों को भी 80 हजार रुपये तक की सहायता राशि मिली।

सतीश जैन ने कहा, “मैंने सिर्फ टेंट लगाया था और बिल दिया था, आर्थिक सहायता नहीं मांगी।” विक्की सकलेचा ने भी स्पष्ट किया कि उन्होंने कोई आर्थिक सहायता नहीं ली है।

रेस्टोरेंट वालों को भी मिली सहायता

विधायक कार्यालय के पास स्थित न्यू बालाजी होटल के संचालक गोविंद बैरागी और उनकी पत्नी पूजा बैरागी को 10-10 हजार रुपये की आर्थिक सहायता दी गई।

आरोप है कि यह राशि उनके होटल से लिए गए चाय-नाश्ते के भुगतान के तौर पर दी गई, लेकिन दस्तावेजों में उन्हें गरीब बताकर सहायता प्रदान की गई।

होटल के कर्मचारी भारत ने भी पुष्टि की कि “विधायक कार्यालय से चाय-नाश्ते का सामान जाता है और वही पेमेंट है।”

इलेक्ट्रॉनिक्स व्यवसायी और रिश्तेदार भी लाभार्थी

झाबुआ के प्रतीक मोदी और उनकी बहन प्राची मोदी को पढ़ाई के नाम पर 10-10 हजार रुपये की राशि दी गई, जबकि प्रतीक मोदी खुद एक इलेक्ट्रॉनिक्स दुकान के मालिक हैं और उन्होंने माना कि उन्हें पढ़ाई के लिए कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा, “बहन को कैसे पैसा मिला, इसका मुझे कोई पता नहीं है।”

इसी तरह, एनएसयूआई और कांग्रेस के अन्य पदाधिकारियों को भी आर्थिक सहायता के रूप में पैसे दिए गए। रानापुर कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. दिनेश गाहरी को 5 हजार रुपए की सहायता दी गई, जबकि वे एक मेडिकल स्टोर और कपड़े की दुकान भी चलाते हैं। यूथ कांग्रेस के पदाधिकारी दरियाव सिंगाड़ और उनकी पत्नी को भी सहायता दी गई।

रिश्तेदारों को बांटे गए लाखों रुपए

आरटीआई से प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, विधायक कार्यालय में कार्यरत कर्मचारी रोहित हटिला और उसके परिजनों को 2 लाख 75 हजार रुपये की सहायता दी गई। इसके अलावा भूरिया सरनेम वाले 18 लोगों को भी 2 से 3 बार में 30 से 45 हजार तक की राशि दी गई है।

मथियास का दावा है कि ये सभी विधायक विक्रांत भूरिया और पूर्व सांसद कांतिलाल भूरिया के रिश्तेदार हैं। झाबुआ से 2023 में चुनाव लड़ चुके बीजेपी जिला अध्यक्ष भानु भूरिया ने कहा, “विधायक ने गरीबों की मदद के लिए मिले फंड का दुरुपयोग किया है। उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज हो और उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया जाए।”

क्या होती है स्वेच्छानुदान की राशि

स्वेच्छानुदान राशि का मकसद जरूरतमंदों की मदद करना है। दरअसल विधायक स्वेच्छानुदान एक व्यवस्था है, जिसमें हर MLA को विधायक निधि के अलावा स्वेच्छानुदान राशि के रूप में 75 लाख रुपये सालाना मिलते हैं। इस तरह एक विधायक को पांच साल में 3 करोड़ 75 लाख रुपये की राशि मिलती है।

विधायक इस राशि का इस्तेमाल गरीब, अनाथ, विकलांग या जरूरतमंद व्यक्तियों के लिए कर सकता है। गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा और स्वास्थ्य में मदद के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

विधायक का बचाव, प्रशासन की जांच शुरू

डॉ. विक्रांत भूरिया ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा, “जो भी व्यक्ति मदद के लिए आता है, उसका आधार कार्ड लेकर उसकी एप्लिकेशन बनाई जाती है और कलेक्टर को भेजी जाती है। मेरा क्षेत्र बीपीएल बहुल और अधिसूचित है, इसलिए मदद देना जरूरी होता है। यह शिकायत पूर्वाग्रह से प्रेरित है।”

वहीं, जिला प्रशासन ने मामले की जांच शुरू कर दी है। जिला पंचायत सीईओ जितेंद्र सिंह चौहान ने पुष्टि की कि जनसुनवाई में शिकायत मिलने के बाद मामले की जांच की जा रही है और रिपोर्ट आने के बाद ही सच्चाई सामने आ पाएगी, लेकिन शुरुआती दस्तावेजों से यह स्पष्ट है कि कई लाभार्थी न तो गरीब थे और न ही उन्होंने किसी सहायता की मांग की थी। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस पर क्या कार्रवाई करता है।

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