पंकज शुक्ला, (सुुबह सवेरे/मंडे मैंपिंग)
लंबे कयासों और प्रतीक्षा के बाद मप्र की भाजपा को सांसद राकेश सिंह के रूप में नया प्रदेश अध्यक्ष मिला है। वे तीन बार से लगातार महाकौशल क्षेत्र के केन्द्र बिंदु जबलपुर से सांसद हैं। वे प्रदेश भाजपा के 17 वें अध्यक्ष हैं। उनके पहले चार नेताओं ने दो बार अध्यक्ष पद संभाला है इसलिए वे 13 वें नेता हैं जो संगठन के सूत्र संभाल रहे हैं। कुशाभाऊ ठाकरे, प्यारेलाल खंडेलवाल, सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी जैसे वरिष्ठ नेताओं के परिश्रम ने भाजपा संगठन को आज जिस स्थिति में पहुंचा दिया है जहां अध्यक्ष को संगठन तैयार करने के लिए पसीना नहीं बहाना है। संगठन के पास पार्टी के कार्यक्रमों को पूरा करने वाले समर्पित कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज भी है। अध्यक्ष को तो पार्टी कार्यकर्ताओं तथा जनता के मैदानी फीडबैक का सही-सही आकलन कर उस अनुरूप पार्टी की रीति-नीतियों को तैयार करवाना है। यह तभी संभव होगा जब राकेश सिंह अपने आसपास नेताओं का घेरा न बनने दें, कान के कच्चे न साबित हों तथा सूचनाओं को सीधे अपने तक आने दें। बेहतर होगा कि वे अपनी आंखों से देख, अपने कानों से सुन तथा अपने अनुभव से समझ वास्तविकता का आकलन करें।
अध्यक्ष पद संभालने के बाद हुई प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया के कवरेज पर कहे वाक्य से उठे विवाद और कांग्रेस की घेराबंदी से राकेश सिंह समझ गए होंगे कि उन्हें अपने बोलने और आचरण में किस तरह की सावधानी बरतना है। जहां उनकी जाति को लेकर भी सवाल उठाए गए वहीं नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने उन्हें कद्दावर नेता नहीं माना। यह वास्तविकता भी है। उनकी नियुक्ति के साथ ही गठित हुई चुनाव संचालन समिति में केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को संयोजक बनाया गया है तो मप्र के जनसंपर्क मंत्री तथा केन्द्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते को सहसंयोजक बनाया गया है। स्वाभाविक है कि जब केन्द्रीय मंत्री तोमर और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसे नेताओं ने मिशन 2018 को अपनी जिम्मेदारी माना है, सो इस मोर्चे पर राकेश सिंह का दायित्व बतौर अध्यक्ष बहुत औपचारिक ही है।
अपनी कार्यकारिणी के गठन के बारे में पूछे गए सवाल पर वे कह चुके हैं कि पहले की कार्यकारिणी में बहुत अच्छे पदाधिकारी हैं, उन्हें हटाने की आवश्यकता महसूस नहीं होती। यूं भी इन दिनों कार्यकारिणी पूरी तरह से अध्यक्ष की पसंद से नहीं बल्कि अन्य नेताओं व पार्टी व आरएसएस की ‘सलाह’ पर बनती है। राकेश सिंह इतनी दबंगता नहीं दिखा पाएंगे कि वे किसी बड़े नेता के समर्थक को हटा कर अपनी पसंद का पदाधिकारी चुन लें। उन्हें अपने समर्थक जोड़ने के लिए कार्यकारिणी को बड़ा ही करना होगा। दूसरी ओर, पार्टी के अपने तय कार्यक्रम हैं। तय प्रभारी हैं और उन्हें क्रियान्वित करने वाले सूत्रधार के रूप में अध्यक्ष के साथ आरएसएस से भेजे गए संगठन महामंत्री सुहास भगत भी हैं। यहां भी अध्यक्ष के हस्तक्षेप के लिए अधिक गुंजाईश नहीं है। तो फिर नए अध्यक्ष करेंगे क्या?
जवाब यह है कि अध्यक्ष सही रूप में पार्टी की आंख, कान और नाक बनें। वे अपने पास राजधानी तक सिमटे नेताओं की घेराबंदी न होने दें। वे ‘गुट’ चलाने वाले नेताओं से मिलने वाली सूचनाओं पर ही आश्रित न हों बल्कि स्वयं को मैदानी सूचनाओं के लिए खुला रखें। मसलन, पार्टी को साफ-साफ संकेत मिल रहे हैं कि कार्यकर्ताओं और जनता में विरोध और आक्रोश घर कर रहा है। संगठन ने इन चिंगारियों को पहचानने की कोशिश न की बल्कि इन्हें अपनी सफलता पर हुई आतिशबाजी समझ लिया है। अध्यक्ष को इन्हीं चिंगारियों को पहचानना होगा और उनका समाधान करना होगा। पहले के अध्यक्षों को इस काम में संगठन महामंत्री अच्छा सहयोग कर देते थे लेकिन वर्तमान संगठन महामंत्री स्वयं ऐसी सूचनाओं के लिए दूसरों पर आश्रित हैं। उन तक‘ऑल इज वेल’ की आश्वस्ति ही पहुंचाई जाती है। अब यदि राकेश सिंह इस चक्रव्यूह को भेद पाए तो अपने कार्यकाल में अलग और गाढ़ी रेखा खींच पाएंगे।
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