प्रदेश के लिए खतरा है उज्जैन जैसे ‘सुपारी’ सरेंडर !
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प्रदेश के लिए खतरा है उज्जैन जैसे ‘सुपारी’ सरेंडर !

 

प्रदेश के उज्जैन रेंज में यूपी के दूसरे गेंगस्टर ने सरेंडर किया, सवाल ये उठ रहे कि स्वतंत्रता दिवस कि कड़ी सुरक्षा में विजय मिश्रा उज्जैन तक कैसे पहुंचा? क्यों चूहे की तरह दोनों बाहुबली प्रदेश पुलिस के पिंजरे में बैठ गए? ऐसे अपराधियों का महाकाल तक पहुंचना प्रदेश की सुरक्षा को खतरा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पूरे मामले की जांच विशेष टीम से करवानी चाहिए ताकि कोई सवाल न रहे.

दर्शक

उज्जैन। आखिर उज्जैन में ही क्यों शरणागत हो रहे हैं, उत्तरप्रदेश के गैंगस्टर? विकास दुबे के बाद विजय मिश्रा। मोस्ट वांटेड अपनी जान को खतरे में डालकर 700 किलोमीटर का सफर करके महाकाल के दर्शन को आते हैं। गज़ब का दुस्स्साहस, भक्ति और आस्था। उत्तरपदेश की पुलिस को आसानी से चकमा देने वाले मध्यप्रदेश में चूहे जैसे  पिंजरे में आकर बैठ जाते हैं। ये महाकाल की भक्ति है या राजनीतिक शक्ति का प्रसाद। ये भी संयोग है कि प्रदेश में भाजपा सरकार के आने के बाद ही दोनों ने हथियार डाले। बस, समझदारी भरा अंतर ये है कि एक उज्जैन में पकड़ा गया तो दूसरा आगर में। उज्जैन के एक वरिष्ठ अधिकारी इसके पहले आगर जिले में ही पदस्थ थे।

मध्यप्रदेश की इस चुस्त, दुरुस्त पुलिस व्यवस्था का पूरा श्रेय प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को मिलना चाहिए। संबंधित अफसरों और टीम को भी शाबाशी मिलनी चाहिए। आखिर प्रदेश की पुलिस ने बिना एक भी गोली चलाये दो बाहुबली गैंगस्टर को धर दबोचा। पर दोनों मामलों में गिरफ्तारी के तरीके भाजपा और पुलिस पर कई शक और सवाल भी खड़े करते हैं। क्या विकास दुबे और विजय मिश्रा जैसे सुपारी किलर खुद सुपारी देकर सरेंडर हुए? क्या प्रदेश की भाजपा सरकार ने उज्जैन -आगर को सरेंडर हाईवे बना दिया है? क्या प्रदेश अपराधियों का सेफ जोन बनता जा रहा है ?

हर बात में दूध का दूध पानी का पानी करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को दोनों की गिरफ्तारी की कहानी का सच सामने लाना चाहिए। उन्हें  सुशासन और खुद की छवि को बनाये रखने को ऐसे मामलों की जांच करवानी चाहिए। क्योंकि जनता के बीच सरेंडर की कई कहानियां दौड़ रही है। प्रदेश सरकार को विशेष  टीम बनाकर जांच करवानी चाहिए।

सवाल ये भी है कि प्रदेश की सीमाओं पर जब कड़ी सुरक्षा है तो कैसे ये अपराधी उज्जैन तक आ गए ? स्वतंत्रता दिवस पर तो वैसे भी सीमाओं पर सुरक्षा कड़ी होती है। कितने टोल नाके इन रास्तों पर आये होंगे, उनसे यदि इनकी गाड़ियां गुजरी है तो पुलिस की कहानी का क्रॉस चेक क्यों न किया जाए? यदि वाकई में किसी भी स्तर पर कोई जोड़तोड़ इसके पीछे है तो प्रदेश की जनता की सुरक्षा को देखते हुए कार्रवाई जरुरी।

ये भी देखा जाना चाहिए कि प्रदेश में कहीं  और भी दूसरे राज्यों के अपराधी शरण लिए हुए हैं ? प्रदेश में इनकी गिरफ्तारी अच्छी है। पर ऐसे दुर्दांत अपराधियों का प्रदेश में बेरोक टोक घुस आना और महाकाल के दर्शन करके लौट जाना भी कम खतरनाक नहीं। विकास दुबे और विजय मिश्रा ये भी कह रहे हैं कि उत्तरप्रदेश में ब्राह्मणों की जान खतरे में हैं।

तो क्या मध्यप्रदेश के ऐसे अफसर और नेता जिनका उत्तरप्रदेश से सम्बन्ध हैं जातिवादी धर्म निभाकर ऐसे अपराधियों को अभयदान दिलवाने का नेक कर्म कर रहे हैं।

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