पंकज मुकाती (Editor Politicswala )
सावरकर को माफीवीर कहने वाली कांग्रेस को इसमें एक नाम और जोड़ लेना चाहिए। राहुल गांधी का। राहुल गांधी एक नए माफीवीर के तौर पर उभर रहे हैं। कांग्रेस को उनको माफ़ी वाले बाबा के तौर पर स्थापित कर देना चाहिए। उनका नामकरण कर ही देना चाहिए -माफीवीर राहुल गांधी। सावरकर पर कांग्रेस के आरोप से अलग इस गांधी को जीवन में कम से कम एक अच्छा तमगा तो मिल ही जाएगा। महात्मा गांधी भी माफ़ी को सर्वश्रेष्ठ मानते रहे। राहुल भी ‘गांधी’मार्ग पर चलने वाले मान लिए जाए।
रुकिए, पर इस गांधी ने माफ़ी मांगकर अपने ही परिवार की गरिमा मान को पीछे धकेला है। अपने पर नाना, अपनी दादी और अपनी पिता के वीरतापूर्ण कामों
पर ही ये पोता पानी फेरता नजर आ रहा है। वो अपने पूर्वजों के कामों के पिंडदान, तर्पण कर रहा है। वो अपनी खानदानी विरासत को ही दागदार बता रहा है।
फेहरिस्त लम्बी है।
बहरहाल ताज़ा मामले पर लौटते हैं। ताज़ा माफ़ी मांगी है ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर। राहुल गांधी ने कहा कि ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ कांग्रेस की गलती थी। मैं
उस वक्त नहीं था फिर भी अतीत की कांग्रेस की गलतियों की जिम्मेदारी लेता हूँ। माफ़ी मांगता हूँ। राहुल ने 1984 के सिख दंगों पर भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दी।
इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों पर माफ़ी मांगना तो बनता है। पर ऑपेरशन ब्लू स्टार पर माफ़ी क्यों माँगना पड़ी ?
राहुल ने ये भी स्वीकारा कि 80 के दशक में देश में बहुत कुछ गलत हुआ। इन सबकी जिम्मेदारी कांग्रेस की तरफ से मैं लेता हूँ। अब सोचिये, 80 के दशक में सरकार के मुखिया कौन थे। 80 का सियासी दशक यानी इंदिरा और राहुल के पिता राजीव गांधी का दौर। एक तरह से राहुल ने अपनी दादी और अपनी और अपने पिता के कामों को ही गलत बताया। उसकी जिम्मेदारी ली और माफ़ी मांगी।
अतीत की गलतियों पर टिके रहना अच्छी राजनीति नहीं मानी जाती। इस हिसाब से राहुल ठीक हैं। पर ऑपेरशन ब्लू स्टार कोई गलती नहीं है। इसे इंदिरा की गलती कहना और मानना भी राहुल की राजनीतिक रूप से कमजोर सोच को दर्शाता है। यदि वे थोड़ा भी राजनीति और सियासत को समझते तो अपनी दादी के इस ऑपेरशन पर गर्व करते न कि माफ़ी मांगते। अभी वे राजनितिक रूप से नासमझ दिखते हैं।
ऑपेरशन ब्लू स्टार देश का आतंकवादियों के सफाये का एक बड़ा ऑपेरशन है। इसके जरिये इंदिरा गांधी ने खालिस्तानी आतंकवादियों को मार गिराया। आंतकवाद के खात्मे के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा ने अपने वोट बैंक की परवाह न करते हुए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना को घुसने की परमिशन दी। आज जब धर्म की और वोट बैंक की आड़ में राम रहीम जैसे पेरोल पर घूम रहे। इंदिरा ने धर्म और वोट बैंक से उपर देश की अखण्डता को रखा और खालिस्तान की मांग करने वाले आतंकियों को मार गिराया।
इंदिरा के इस कदम से सिख समाज कांग्रेस का विरोधी हुआ। पवित्र स्वर्ण मंदिर में फ़ौज के घुसने से सिखों की धार्मिक भावना आहत हुई। इसी गुस्से के चलते इंदिरा गांधी के अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी। हत्यारे सिख थे। बेअंतसिंह और सतवंत सिंह ने इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। ये हत्या 31 अक्टूबर 1984 को हुई। ऑपरेशन ब्लू स्टार के ठीक चार महीने बाद। आतंकवाद के खिलाफ लड़ना देश के टुकड़े करने को बेताब खालिस्तानियों को ख़त्म करने का ऑपेरशन चलाना माफ़ी मांगने का काम कैसे हो गया ? राहुल को अपनी दादी के इस काम पर गर्व करना चाहिए। इसी गर्व के साथ राजनीति करनी चाहिए।
अब एक नजर ऑपेरशन ब्लू स्टार पर
क्यों ?
पंजाब में 70 के दशक के आखिरी और 80 के दशक के शुरुआती सालों में हालात खराब हो रहे थे। 1978 में बैसाखी के दिन सिखों और निरंकारी सिखों में हुए खूनी संघर्ष में 13 निरंकारी मारे गए। निरंकारियों के प्रमुख बाबा गुरबचन सिंह की 24 अप्रैल 1980 को दिल्ली में गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद 1983 में स्वर्ण मंदिर के अंदर सीढ़ियों के पास डीआईजी एएस अटवाल की भिंडरावाले के समर्थकों ने हत्या कर दी। भिंडरावाले का खौफ ऐसा था कि पुलिस को शव तक पहुंचने में दो घंटे लग गए। अक्टूबर 1983 में एक बस में सवार हिंदू समुदाय के छह लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। हालात बेकाबू होता देखकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पंजाब की अपनी ही दरबारा सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया। खुफिया इनपुट था कि अगर हालात नहीं सुधरे तो पंजाब हाथ से निकल सकता है। ऐसे में इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के लिए हरी झंडी दी। ऑपरेशन से पहले 2 जून 1984 को पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया।
कौन ?
जरनैल सिंह भिंडरावाले को सिखों की धर्म प्रचार की प्रमुख शाखा दमदमी टकसाल का 1977 में अध्यक्ष बनाया गया। भिंडरावाले के उन्मादी भाषणों से धीरे-धीरे पंजाब में एक कट्टरपंथी जमात तैयार होने लगी। निरंकारी समाज के बाबा गुरबचन सिंह की हत्या में पकड़े गए सभी 20 लोगों का भिंडरावाले से संबंध निकला। दिसंबर 1983 में जरनैल सिंह भिंडरावाले स्वर्ण मंदिर के गुरु नानक निवास में रहने लगा। इसके बाद अकाल तख्त के बगल की एक बिल्डिंग में उसने रहना शुरू किया और फिर अकाल तख्त पर कब्जा जमा लिया। खालिस्तान समर्थक आतंकवादियों ने भी भिंडरावाले के साथ स्वर्ण मंदिर में ठिकाना बना लिया।
कब ?
पांच जून 1984 की रात साढ़े नौ बजे हरमंदिर साहिब के अंदर भारतीय सेना की एंट्री हुई। यह ऑपरेशन सुबह तक चला। 6 जून 1984 की सुबह 6 बजे से पहले ऑपरेशन मुकम्मल हो चुकी था। भिंडरावाले और उसके कमांडर शाबेग सिंह को सेना ने ढेर कर दिया था। ऑपरेशन को लीड करने वाले लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बराड़ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि भिंडरावाले को मार गिराए जाने की सुबह हमें खबर मिली। इसके बाद 6 जून 1984 की सुबह करीब 10 बजे हम लोग स्वर्ण मंदिर के अंदर घुसे।
कमांडर ?
ऑपरेशन ब्लू स्टार के हीरो लेफ्टिनेंट जनरल कुलदीप सिंह बराड़ थे। इस ऐतिहासिक ऑपरेशन का बराड़ ने ही नेतृत्व किया था। ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने के बारे में उन्हें फोन पर बताया गया था। उस वक्त जनरल बराड़ मेरठ की 9 इंफैंट्री डिवीजन को कमांड कर रहे थे। 30 मई 1984 की शाम को दिल्ली से उनके पास फोन आया और कहा गया कि ऑपरेशन का नेतृत्व करना है। इसके बाद एक जून को वह चंडी मंदिर स्थित वेस्टर्न कमांड के मुख्यालय पहुंच गए। इसी शाम वह छुट्टियां मनाने के लिए मनीला जाने वाले थे। सिख समुदाय से ही आने वाले बराड़ ने बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा था जब एक बार हम वर्दी पहनकर देश की रक्षा की कसम खा लेते हैं तो यह नहीं सोचते कि सिख हैं या हिंदू। जनरल बराड़ ने ब्लू स्टार पर एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम है- ऑपरेशन ब्लू स्टार द ट्रू स्टोरी। इस आत्मकथा में उन्होंने ऑपरेशन के बारे में पूरी कहानी लिखी है। इस किताब में एक जगह बराड़ लिखते हैं, ‘सिखों ने देश पर बहुत सारे उपकार किए हैं। 1965 और 1971 का पाकिस्तान युद्ध खास तौर से। अगर इस जाति के साथ सावधानीपूर्वक व्यवहार किया जाए तो यह हमारे देश की हमेशा सबसे बड़ी ताकत बनी रहेगी।’
कितने जवान शहीद ?
ऑपरेशन ब्लू स्टार खत्म होने के एक महीने बाद जुलाई 1984 में इंदिरा गांधी सरकार ने एक श्वेतपत्र जारी किया। इसके मुताबिक ब्लू स्टार के दौरान भारतीय सेना के 4 अफसरों समेत 83 जवानों की मौत हुई। इसके अलावा 273 सैनिक और 12 अफसर स्वर्ण मंदिर के अंदर कार्रवाई के दौरान जख्मी हुए थे। वहीं 492 अन्य लोगों की ऑपरेशन के दौरान मौत हुई थी। इसमें कुछ नागरिक भी शामिल थे। मृतकों में जरनैल सिंह भिंडरावाले, मेजर जनरल शाबेग सिंह और कई खालिस्तानी कट्टरपंथी शामिल थे। हालांकि अनाधिकारिक आंकड़ों में मरने वालों की संख्या हजार से ऊपर होने के भी दावे सामने आते रहे हैं।
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