कानून मंत्री की हैसियत से किरेन रिजिजू एक निहायत ही गैरजरूरी और नाजायज टकराव खड़ा कर रहे थे। वे सुप्रीम कोर्ट को एक किस्म से उसकी औकात समझाने पर आमादा थे, जो भी औकात वे सुप्रीम कोर्ट की समझते थे।
सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )
केन्द्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू को चर्चित कानून मंत्रालय से हटाकर एक ऐसे मंत्रालय में भेजा गया है जिसका नाम और काम भी लोगों को ठीक से समझ नहीं आ रहा है। उन्हें अब पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दिया गया है। दूसरी तरफ कानून मंत्रालय राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल को स्वतंत्र प्रभार के रूप में दे दिया गया है।
आज केवल यही एक फेरबदल सामने आया है, और इसे लेकर देश के प्रमुख वकील, और भूतपूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट करके मजा लिया है। उन्होंने लिखा है- किरेन रिजिजू, कानून नहीं, अब पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, कानूनों के पीछे का विज्ञान समझना आसान नहीं होता, अब विज्ञान के कानूनों के साथ भिडऩा, गुड लक माई फ्रेंड।
दरअसल किरेन रिजिजू पिछले एक-दो बरस से लगातार सुप्रीम कोर्ट के साथ टकराव के अंदाज में एंग्री यंग मैन बनकर खड़े हुए थे। कोई सार्वजनिक मंच ऐसा नहीं रहता था जहां से वे सुप्रीम कोर्ट को कोंचने से बाज आते हों।
नतीजा यह था कि सार्वजनिक जीवन में, मीडिया और सोशल मीडिया पर केन्द्र सरकार लगातार सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ हमलावर दिख रही थी। किरेन रिजिजू का मंत्रालय सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों से जुड़े हुए मामलों को समय पर निपटा नहीं रहा था, और यह भी हो सकता है कि उन्हें समय पर निपटाना पूरी केन्द्र सरकार का एक फैसला ही रहा हो, जो भी हो, मामलों से लदी हुई अदालतों की खाली कुर्सियों पर फैसले के बजाय कानून मंत्रालय बड़ी-बड़ी बातें कर रहा था, और सुप्रीम कोर्ट से जुबान लड़ा रहा था।
यह एक बहुत ही शर्मनाक नौबत चल रही थी, और जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा संवेदनशील जज ऐसे सरकारी रूख को लेकर आहत भी थे, और नाराज तो रहे ही होंगे। ऐसे में जब पहले बाम्बे हाईकोर्ट, और फिर सुप्रीम कोर्ट में वकीलों की तरफ से उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और किरेन रिजिजू के बयानों को लेकर एक जनहित याचिका लगाई गई कि इनके बयान अदालतों के लिए अपमानजनक हैं, और संविधान के खिलाफ भी हैं, तो पहले बाम्बे हाईकोर्ट ने उसे खारिज किया, और फिर उसके खिलाफ अपील को सुप्रीम कोर्ट ने भी खारिज किया।
अदालत ने दरियादिली दिखाते हुए यह कहा कि हाईकोर्ट का नजरिया ठीक है, अगर किसी जिम्मेदार पद पर बैठे हुए लोग कोई नाजायज बयान देते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट उसे सही नजरिये से देखने में सक्षम है। अदालत ने इस याचिका को खारिज करते हुए कोई कड़ी टिप्पणी भी नहीं की।
लोगों को याद होगा, और इस जगह पर हमने पहले कई बार लिखा भी है कि कानून मंत्री की हैसियत से किरेन रिजिजू एक निहायत ही गैरजरूरी और नाजायज टकराव खड़ा कर रहे थे।
वे सुप्रीम कोर्ट को एक किस्म से उसकी औकात समझाने पर आमादा थे, जो भी औकात वे सुप्रीम कोर्ट की समझते थे। वे मौजूदा और रिटायर्ड जजों के खिलाफ अपनी बयानबाजी को दुहराते रहते थे, और कुछ रिटायर्ड जजों के बारे में उन्होंने कहा था कि वे एंटी इंडिया ग्रुप का हिस्सा बन गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम सिस्टम को लेकर भी उन्होंने अपमानजनक और हिकारत वाले बयान दिए थे, और जजों को नीचा दिखाने की उनकी नीयत बार-बार उनकी जुबान पर आती थी।
यह बात सही है कि आज सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और कई दूसरे जज केन्द्र सरकार को उतनी सहूलियत के नहीं लग रहे होंगे जितने कि बाकी जज पिछले बरसों में लगते आए हैं। लेकिन एक ईमानदार अदालत किसी भी देश-प्रदेश में सत्ता के गलत कामों के खिलाफ जब ईमानदार फैसले देगी, तो वह सत्ताविरोधी तो लगने लगेगी। जब सत्ता बेइंसाफ हो जाए, और अदालत महज संवैधानिक इंसाफ करे, तो भी वह टकराव की मुद्रा में देखी जा सकती है।
अभी सुप्रीम कोर्ट के साथ केन्द्र सरकार के रिश्ते कुछ इसी तरह के चल रहे थे। अदालत और सरकार के रिश्ते मधुर भी नहीं रहने चाहिए, लेकिन उनमें मुकाबले की कड़वाहट नहीं रहनी चाहिए। संविधान में इन दोनों की बिल्कुल अलग-अलग भूमिकाएं तय हैं, और जब सरकार वक्त पर अपना काम न करने के लिए बदनाम हो, और वह सुप्रीम कोर्ट पर हमले करती रहे, तो उससे लोगों की नजर में सरकार खलनायक की तरह दिख रही थी।
अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते हुए उनका कोई अदना सा मंत्री सुप्रीम कोर्ट से इतना बड़ा टकराव लेने का फैसला खुद करता हो। इसलिए हटाया चाहे किरेन रिजिजू को हो, यह नौबत सरकार पर भी झलकती है।
इसी किस्म की बड़बोली बातें उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ लगातार कर रहे थे, और वे बिना किसी औपचारिक भूमिका के हर मंच और माइक से अवांछित बातें बोल रहे थे, जो कि न सिर्फ अदालत को नीचा दिखा रही थीं, बल्कि हिन्दुस्तान के संविधान के सबसे बड़े अदालती फैसले पर भी सवाल उठा रही थीं। केशवानंद भारती नाम से चर्चित देश के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण और सबसे बड़ा अदालती फैसला देश के संविधान की अब तक की सबसे बड़ी व्याख्या माना जाता है, और धनखड़ लगातार उस फैसले के खिलाफ बोल रहे थे।
मोदी सरकार चाहे जिस वजह से इस फेरबदल पर पहुंची हो, यह मानना ठीक होगा कि इससे देश की हवा में एक गंदगी घुलना बंद होगा, और उपराष्ट्रपति को भी शायद यह समझ आएगा कि नाजायज बातें करने का क्या नतीजा निकला है। जैसा कि कपिल सिब्बल ने कहा है किरेन रिजिजू अब विज्ञान के सिद्धांतों से टक्कर ले सकते हैं, और डार्विन के सिद्धांतों को स्कूली किताबों से खारिज करके केन्द्र सरकार ने उनके लिए एक संभावना खड़ी की हुई है। वे वहां जोर आजमाईश करें क्योंकि डार्विन की अदालत में केन्द्र सरकार के मुकदमे नहीं खड़े हैं।