भोपाल। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इनदिनों खूब सक्रिय हैं। मध्यप्रदेश की सरकार बनवाने की रणनीति से लेकर शपथ का मंच लगवाने तक वे हर कहीं दिखाई दे रहे हैं। कांग्रेस पूरे पंद्रह साल बाद राज्य में वापसी कर रही है। दिग्विजय की सक्रियता के अलग-अलग मतलब निकाले जा रहे हैं। जैसे-ज्योतिरादित्य सिंधिया को किनारे करना, सरकार में परदे के पीछे से मार्गदर्शक बने रहना। कुछ लोगों का मानना है कि वे प्रदेश कांग्रेस संगठन के मुखिया बनकर उसकी कमान अपने हाथ में रखना चाहते हैं।
दिग्विजय की राजनीति को समझना आसान नहीं है। उनका पहला कदम तभी उठता है, जब आगे के एक हजार कदम या मंजिल तक का नक्शा खिंच लिया हो. पर कमलनाथ के मामले में कहानी थोड़ी यारबाज़ी, दोस्ती और पुराने अहसान निभाने की भी है। कमलनाथ को प्रदेश कीराजनीति में लाने, फिर टिकट वितरण में उनकी मदद दिग्विजयसिंह ने ही की। अब वे लगातार नए विधायकों से मिल रहे हैं, असन्तुष्टों को समझा रहे हैं। यहां तक की शपथ की तैयारी और आयोजन स्थल में मंच, कुर्सी तक की व्यवस्था वे देख रहे हैं।
इसके पीछे 1993 की वो कहानी है, जब अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, श्यामाचरण, विद्याचरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया जैसे दिग्गजों के बीच में से दिग्विजय सिंह को
मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ही बनवाया था। उस वक़्त दिग्विजय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे, और विद्यायक भी नहीं थे. तब कमलनाथ ने मतदान करवाया और विधायकों ने दिग्विजय को नेता चुन लिया। एक तरह से कमलनाथ के कांग्रेस आलाकमान से नजदीकी और उस वक़्त के प्रधानमंत्री नरसिंह राव की निकटता से ही ये हो सका था. 1993 में कमलनाथ ने दिग्विजय को मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ किया था,
आज दिग्विजय 25 साल बाद वही दोस्ताना कर्ज उतार रहे हैं. वे कमलाथ के शपथ का मंच सजा रहे हैं..