मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने 24 सीटों पर होने वाले
उपचुनाव पर एक कविता के जरिये अपने इरादे बताये
भोपाल. कोरोना संकटकाल के बीच मध्यप्रदेश की सियासत गरमाई हुई है। प्रदेश की 24 सीटों पर उपचुनाव को लेकर राजनैतिक लामबंदी शुरू हो गई है। बुधवार को प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सैयद जाफर ने कमलनाथ एक वीडियो जारी किया है। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि अब उनकी सरकार नहीं है और वे प्रदेश को ज्यादा समय देंगे।
वीडियो में इसके बाद प्रख्यात कवि विकास बंसल की अमिताभ बच्चन द्वारा गाई गई कविता- ‘मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं’ सुनाई गई है। वीडियो में कमलनाथ के गुस्से से लेकर हंसते हुए तक के फोटो लगाए गए हैं। वीडियो के अंत में कमलनाथ कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश को लेकर उनका एक सपना था, उसे साकार करें।
आने वाले महीनों में प्रदेश में विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, इसे लेकर कांग्रेस और भाजपा में बैठकों का दौर शुरू हो गया है। 22 सीटों पर भाजपा उन्हीं पूर्व विधायकों को मैदान में उतारेगी जो कमलनाथ सरकार की पतन का कारण बने थे।
ऐसे में भाजपा को सिर्फ दो सीटों पर प्रत्याशियों का नाम तय करना है। वहीं, कांग्रेस के सामने अभी उम्मीदवारों का टोटा है। ऐसे में कांग्रेस की भाजपा के कुछ दिग्गज नेताओं पर नजर है। संभावना जताई जा रही है कि उपचुनाव से पहले 22 विधानसभा क्षेत्रों के भाजपा के बड़े नेता पार्टी को गच्चा दे सकते हैं।
वीडियो में प्रख्यात कवि विकास बंसल की है ये कविता (तुम मुझको कब तक रोकोगे )
मुठ्ठी में कुछ सपने लेकर, भरकर जेबों में आशाएं ।
दिल में है अरमान यही, कुछ कर जाएं… कुछ कर जाएं… । ।
सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे ।
सूरज-सा तेज नहीं मुझमें, दीपक-सा जलता देखोगे…
अपनी हद रौशन करने से,
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे… । ।
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है…
मैं उस माटी का वृक्ष नहीं जिसको नदियों ने सींचा है …
बंजर माटी में पलकर मैंने…मृत्यु से जीवन खींचा है… ।
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं… मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूं ..
शीशे से कब तक तोड़ोगे..
मिटने वाला मैं नाम नहीं… तुम मुझको कब तक रोकोगे… तुम मुझको कब तक रोकोगे…।।
इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है…
इस जग में जितने ज़ुल्म नहीं, उतने सहने की ताकत है ….
तानों के भी शोर में रहकर सच कहने की आदत है । ।
मैं सागर से भी गहरा हूँ.. मैं सागर से भी गहरा हूँ…
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे ।
चुन-चुन कर आगे बढूँगा मैं…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे..।।
झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ,
अब फिर झुकने का शौक नहीं..
झुक-झुककर सीधा खड़ा हुआ,
अब फिर झुकने का शौक नहीं..
अपने ही हाथों रचा स्वयं..
तुमसे मिटने का खौफ़ नहीं…
तुम हालातों की भट्टी में…
जब-जब भी मुझको झोंकोगे…
तब तपकर सोना बनूंगा मैं…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…
तुम मुझको कब तक रोकोगे…।।
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