(अभिषेक कानूनगो)
इंदौर: कांग्रेस के तमाम नेता ये कहते फिर रहे थे कि शहर को कुछ बहुत बड़ा मिलने वाला है और इसी का मंथन भी भोपाल से लेकर दिल्ली तक चल रहा है। सलमान खान,राहुल द्रविड़, ज्योति सिंधिया, गोविंदा जैसे बड़े नामों पर बात हो रही है, लेकिन आखिर में कांग्रेस ने लोकसभा के लिए पंकज संघवी को सामने कर दिया और इस कहावत को भी चरितार्थ कर दिया कि ‘खोदा पहाड़ और निकली चुहिया’। पंकज को ही आगे करना था तो इतना तामझाम लगाने की क्या जरूरत थी। गलती तो मंत्री जीतू पटवारी से भी हो गई, जिन्होंने दो दिनों से चुनावी घुंघरू बांध लिए थे, लेकिन मुख्यमंत्री कमलनाथ हरगिज ये नहीं चाहते थे कि उनका एक भी विधायक लोकसभा का चुनाव लड़े। पटवारी को दिल्ली से हरी झंडी मिलने के बाद भी कमलनाथ की चाहत कामयाब हुई।
अब बात दोबारा पंकज संघवी की करते हैं। हर वैरायटी का चुनाव हार चुके संघवी का नाम आते ही कांग्रेसियों ने राहत की सांस ली। पटवारी होते तो सबको मैदान पकडऩा पड़ता। संघवी को कोई पत नहीं करता। पार्षद के चुनाव से लेकर लोकसभा तक सभी चुनाव हारने का अनुभव है। पिछले विधानसभा चुनाव में पांच नंबर का जब सर्वे किया गया तो पंकज तीसरे नंबर पर थे। बरसों की यहीं की सियासत करते हैं और अपने आसपास रहने वालों के भी दिल में जगह बनाने में नाकाम रहे पंकज को लाखों वोटों की जिम्मेदार क्या सोचकर कांग्रेस संगठन ने सौंपी है, ये तो वक्त ही बताएगा।
पंकज संघवी की सबसे बड़ी कमजोरी टीम है। वो खुद ही गाड़ी में अकेले घूमते रहते हैं। खुद ही चलाते हैं और पांच साल में एक बार नजर आते हैं। अब वो दौर भी नहीं रहा, जब गुजरातियों के बीच पंकज की ऐसी पेठ हो कि उनके कुछ कह देने भर से समाज एक मंच पर आ जाए। बनिए तो उनको अपना समझते ही नहीं और गांवों में हालत जगजाहिर है। ऐसे में पंकज पर कांग्रेसी दांव कमजोर ही साबित होगा। हां, उन लोगों के लिए जरूर मौका है, जो सियासत को धंधा समझते हैं। पंकज जब भी चुनाव लड़े हैं, खूब पैसा बरसा है और इस बार भी ऐसा ही होगा। विधानसभा चुनाव से कांग्रेस के पक्ष में जो माहौल बना था, उसे भुनाने में कांग्रेस कमजोर रही है। कुछ तो मंत्रियों ने फोन नहीं उठाकर कबाड़ा कर दिया। बाकी विधायकों की सुस्ती ने कांग्रेस को पीछे कर दिया है। पंकज के लिए एक नंबर विधानसभा में गोलू अग्निहोत्री सबसे चहेते हैं, लेकिन उनकी पटरी विधायक संजय शुक्ला से नहीं बैठती। दो नंबर में चिंटू चौकसे तो पंकज संघवी के साथ पिछले दो महीने से घूम रहे हैं। तीन नंबर में जोशी परिवार से पंकज की कुछ खास नहीं बनती। चार नंबर में सुरजीत चड्ढा, प्रीतम माटा और सुरेश मिंडा के कहने पर विधानसभा चुनाव में ही वोट नहीं पड़े थे तो अब तो और मुश्किल होगा। पांच नंबर में खुद रहते हैं, लेकिन यहां कांग्रेसियों का जमघट है, जिसमें अलग-अलग कई गुट हैं। देपालपुर और सांवेर की ओर गए को पंकज को बरसों हो गए होंगे। विशाल पटेल जरूर पंकज की मदद करेंगे। तुलसी भी पंकज के साथी हैं, लेकिन इन दोनों को भी अपने आकाओं के इलाके में हाजिरी भराने जाना पड़ सकता है। रही बात राऊ की, तो यहां से जीतू पटवारी कितनी मुस्तैदी से अब पंकज का साथ देते हैं, ये आने वाला वक्त बताएगा। अभी तो कांग्रेस ने पंकज का नाम देकर चुनावी आग में पानी डाल दिया है।
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