#INDIGO में टिकट के पहले बदइंतज़ामी जान लीजिये …..बस में जगह नहीं, जहाज की सीट गीली

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वरिष्ठ लेखक साहित्यकार पंकज सुबीर ने अपनी दिल्ली से भोपाल की इंडिगो से हुई कष्टप्रद हवाई यात्रा पर एक पत्र लिखा ये पढ़ा जाना चाहिए। वायरल भी होना चाहिए ताकि हवाई सफर वाली कंपनियां जमीन भी देख सके

प्रिय IndiGo

कल आपके माध्यम से दिल्ली से भोपाल (BQEMJY, 6E 5017) की यात्रा बहुत कष्टप्रद रही। कुछ बातें हैं जो मुझे बहुत ख़राब लगीं। सबसे पहले तो यह कि इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल 3 जैसी जगह पर आपने अपने यात्रियों के लिए एयरोब्रिज की सुविधाएँ नहीं ली हुई हैं। वही पुराने तरीक़े से बस द्वारा बोर्डिंग करवाना। उसमें भी आपने जो गेट बोर्डिंग के लिए चुने हैं 42 से लेकर 44 तक उन बोर्डिंग गेट्स की स्थिति आपने शायद देखी नहीं हो।

बहुत छोटी सी जगह में ठसाठस यात्री भरे होते हैं। जितनी कुर्सियाँ रखी हैं उससे तीन या चार गुने। ऐसे में मछली बाज़ार का दृश्य तो उपस्थित होना ही है। एक छोटे सा हॉल जैसी जगह में छह सात बोर्डिंग गेट होने से ऐसा लग रहा था जैसे किसी छोटे रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर खड़े हैं।

आपकी बोर्डिंग की व्यवस्था भी एकदम लचर थी। जहाँ एक तरफ़ एयर इंडिया सहित दूसरी कंपनियों की बोर्डिंग माइक सिस्टम द्वारा एनाउंस करके हो रही थी, वहीं इंडिगो के गेट पर दो ग्राउंड स्टाफ़ की लड़कियाँ परेशान हाल, पसीने-पसीने होते हुए चिल्ला-चिल्ला कर बोर्डिंग करवा रही थीं। कोई कतार नहीं, धक्का-मुक्की करते हुए जिसका नंबर आ जाये वो बोर्डिंग कर ले। महोदय आपको शायद पता होगा कि मात्र तीन हज़ार रुपये में अमेज़न से एक कमर पर बाँधने वाला माइक सिस्टम आ जाता है, जो बहुत काम का होता है। ‘

ख़ैर उन लड़कियों की कोई ग़लती नहीं, इतनी भीड़ और दो लड़कियाँ करतीं भी क्या। ख़ैर जैसे तैसे यात्री निकल कर बस तक पहुँच गये। तब तक निर्धारित डिपार्चर समय से पन्द्रह मिनट अधिक मतलब सात बज कर पैंतालीस मिनट तो हो ही चुके थे। बस में कितने यात्री लेने हैं इसकी भी कोई सीमा होनी चाहिए, भेड़ बकरियों की तरह नहीं ठूँसा जाता है इस प्रकार। बस जब प्लेन तक पहुँची तब तक अच्छी ख़ासी बरसात प्रारंभ हो चुकी थी।

जो सीढ़ी बोर्डिंग के लिए लगायी गयी थी, उसकी छत ही नहीं थी, ऐसे में बस के आधे यात्रिओं को भीगते हुए बोर्डिंग करना पड़ी। फिर अचानक स्टाफ द्वारा बोर्डिंग रोक दी गयी कि बरसात रुकने पर ही बोर्डिंग होगी। हैरत की बात है कि आपके पास बरसात के दौरान बस द्वारा बोर्डिंग करवाए जाने के लिए कोई आपातकालीन व्यवस्था नहीं थी जिसके द्वारा यात्रियों को बिना भीगे बोर्डिंग करवाई जा सके। दो बसें आधे यात्रियों से भरी हुई तथा दो बसें पूरी भरी हुई, प्लेन के सामने खड़ी रहीं।

पूरे एक घंटे तक ये यात्री उसी प्रकार बस में बैठे रहे। कुछ यात्री एंज़ायटी के कारण पैनिक हो रहे थे। मगर कोई स्टाफ़ यह बताने को तैयार नहीं था कि ऐसा कब तक चलेगा। यदि रात भर पानी गिरता रहा तो क्या रात भर ये यात्री बस में ही बैठे रहेंगे।
ख़ैर क़रीब एक घंटे बसे में फँसे हुए यात्रियों के लिए अंतत: घंटे भर बाद गिनती के छाते लाये गये और एक-एक कर के यात्रिओं को प्लेन में बिठाया गया। प्रश्न यह उठता है कि यदि छाते से ही बोर्डिंग करवानी ​थी तो उसके लिए घंटे भर इंतज़ार क्यों किया गया ?

अंदर जाने पर पता चला कि बरसात के कारण आगे की एक नंबर रो वाली सीट गीली हो चुकी है। क्रू मेंबर ने उस पर पॉलीथीन डाल कर उसे बचाया हुआ है। सीढ़ी से आते पानी के कारण यह स्थिति बनी थी। मुझे उसी गीली सीट पर बैठना पड़ा क्योंकि मेरा सीट नंबर वन बी था। अधिक पैसे देकर ख़रीदी गयी सीट पर असुविधा के साथ बैठना पड़ा। और उसके बाद करीब डेढ़ घंटे से परेशान होकर आये यात्रियों से क्रू मेंबर ने पानी तक को नहीं पूछा। ठीक है आपके यहाँ सब कुछ पैसों से ही दिया जाता है। एयर इंडिया की तरह नहीं होता है कि मील टिकट में शामिल हो। मगर कम से कम डेढ़ घंटे से परेशान यात्रियों से पानी का तो पूछा ही जाना था।

महोदय, यात्रियों के पास आपकी तुलना में एयर इंडिया जैसी बेहतर सुविधा तो है ही। मेरे जैसे लोग तो इस कड़वे अनुभव के बाद आपकी सेवाएँ लेने से बचेंगे ही। इतनी अव्यवस्थाएँ तो आजकल बस सेवाएँ देने वालों के यहाँ नहीं होती, आपकी तो वायु सेवा है। बस सेवा में भी कम से कम यात्रियों से पानी का तो पूछा ही जाता है। अपनी सेवाओं में सुधार कीजिए नहीं तो यात्री आपसे बेहतर ऑप्शन के पास जाने में देर नहीं करेंगे, पैसे तो सब जगह देने है। फिलहाल तो आप एक यात्री को तो खो ही चुके हैं।
कल का दिन ‘इंडिगो को चुनने के लिए धन्यवाद’ की जगह ‘इंडिगो को चुनने के लिए सज़ा पाओ’ लगा मुझे।
धन्यवाद
पंकज सुबीर

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