भुनगे जैसे नेताओं काआसमान छूता अहंकार और बाहुबल प्रदर्शन..

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सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार )

राजनीतिक ताकत से गुंडागर्दी आम बात है। जिन पार्टियों की कोई ताकत नहीं होती उनके लोग भी जमीन पर पांव रखना नहीं चाहते। पार्टियों के चिल्हर नेता भी सडक़ पर गाड़ी रोकने पर पुलिस को धौंसियाने लगते हैं कि वे जानते नहीं कि वे कौन हैं? अदना से नेता गाडिय़ों में काली फिल्म लगाए, सायरन और हूटर लगाए, ऊपर तरह-तरह की लाईटें लगवाए, और पदनाम की बड़ी सी तख्ती लगाकर घूमते हैं।

इनका कुल जमा मकसद यही होता है कि पुलिस उन्हें न रोके। और पुलिस के रोकने की नौबत ही इसलिए आती है कि सडक़ों के नियम तोड़े जाते हैं। राजनीतिक बाहुबल का यह प्रदर्शन दारू न पीने वाले, नशा न करने वाले पौव्वा दर्जे के नेताओं को भी आत्ममुग्ध नशे में रखता है।

 

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पुलिस को शहर युवक कांग्रेस अध्यक्ष को दस साथियों सहित गिरफ्तार करना पड़ा क्योंकि वे इस अध्यक्ष का जन्मदिन चौराहे पर मनाने पर आमादा थे। एक चौराहे से हटाया गया, तो दूसरे चौराहे पर जाकर केक काटा गया, और चारों तरफ अंधाधुंध आतिशबाजी की गई। जबकि अभी एक पखवाड़े पहले ही छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने इसी शहर में इसी इलाके में मनाए गए इसी तरह के जन्मदिन पर मामूली कार्रवाई करने पर एक अफसर को सस्पेंड करने, विभागीय जांच करने का आदेश दिया था, और हाईकोर्ट के सख्त रूख को देखकर पुलिस को उस जन्मदिन पर कार्रवाई करनी पड़ी थी।

इसी शहर में उसी इलाके में फिर वही हरकत सीधे-सीधे हाईकोर्ट को चुनौती है, और कांग्रेस पार्टी को भी यह देखना चाहिए उसके मवाली किस्म के पदाधिकारी जनता के बीच अब और क्या खोना चाहते हैं? हर चुनाव हारने के बाद भी इस पार्टी के अदना से पदाधिकारी का गुरूर किनारे होने को तैयार नहीं है, और चौराहे पर केक काटना, आतिशबाजी से ट्रैफिक रोकना उन्हें अपनी नेतागिरी की पराकाष्ठा दिख रही है। ऐसे राजनीतिक दलों को धिक्कार है जो अपने पदाधिकारियों और नेताओं के कुकर्मों पर मुंह बंद करके बैठे रहते हैं।

और यह हाल सिर्फ कांग्रेस का हो ऐसा भी नहीं है, इसी प्रदेश में बस्तर में भाजपा के एक सांसद अफसरों को मां-बहन की गालियां देते हुए इतने सारे वीडियो में कैद हो चुके हैं कि तैनाती पर बस्तर जाने वाले अफसर परिवार को बाहर के इलाकों में ही छोडक़र जाने लगे हैं। इस सांसद की ताजा गालियों का शिकार एक ऐसा पुलिस अफसर हुआ है जो दो-दो बार राष्ट्रपति पदक से सम्मानित है। अब राष्ट्रपति को यह वीडियो भेजना चाहिए कि वे अपने पदक पर फिर से विचार करें क्योंकि सांसद इस अफसर को गंदी गालियों के लायक ही मानते हैं।

सत्ता की ताकत किसी के साथ हमेशा नहीं रहती। सत्ता बड़ी बदचलन रहती है, और वह घर और यार दोनों बदलते रहती है। लेकिन पारे की तरह अस्थिर सत्ता पर भी लोग अपने अहंकार की ऊंची इमारतें खड़ी कर लेते हैं, और ऐसे लोगों को मुम्बई ट्रैफिक पुलिस के लिए अक्षय कुमार के पुलिस-किरदार वाला एक इश्तहार दिखाना चाहिए जिसमें वह ट्रैफिक नियम तोडऩे वालों को सडक़ के नाम की तख्ती दिखाकर पूछता है कि क्या वे उसी महान व्यक्ति के बेटे हैं, क्योंकि उनकी हरकत तो ऐसी ही है कि सडक़ उनके बाप की हो।

इन दिनों कम से कम छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां हम लोगों को करीब से देखते हैं, राजनीतिक बाहुबल का शक्ति प्रदर्शन सार्वजनिक जगहों पर अंधाधुंध पैमाने पर चलता है। और इन छुटभैये नेताओं के और नीचे के चमचे अपने युवा हृदय सम्राटों से प्रेरणा पाते हुए ट्रैफिक नियमों को तोडऩा अपनी शान दिखाने का पहला कदम मानते हैं। अखबारों को चाहिए कि वे ऐसे नेताओं की हरकतें सामने आने पर उनके प्रदेश अध्यक्षों से पूछें कि क्या यह हरकत उनकी पार्टी की रीति-नीति के मुताबिक है?

 

वैसे तो राजनीति को पूरी दुनिया में सबसे घटिया लोगों का डेरा माना जाता है, और अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प जैसे लोग मानो डॉक्टरी सलाह पर दिन में चार बार इस घटियापन का प्रदर्शन करते हैं। इसलिए अब बाकी दुनिया में उनसे कम ताकतवर तमाम नेताओं के लिए वे कामयाबी और कमीनगी दोनों का एक बड़ा आदर्श हैं। कम से कम उत्तर भारत की राजनीति में हम नौजवानों को इसीलिए आते देखते हैं कि वे गुंडागर्दी कर सकें, पुलिस से उलझकर भी बच सकें, और अपना आतंक कायम करके सरकारी अफसरों से गलत काम करवा सकें।

 

आज मीडिया से परे भी सोशल मीडिया के जमाने में जनता को चाहिए कि राजनीतिक गुंडागर्दी खत्म करवाए। लोगों को ऐसी घटनाओं को खुलकर धिक्कारना चाहिए, ऐसे नेताओं की पार्टियों को कटघरे में खड़ा करना चाहिए, उनसे सार्वजनिक रूप से जवाब-तलब करना चाहिए। इसके साथ-साथ जब कभी चुनाव का मौका आए, या किसी पार्टी के नेता सार्वजनिक रूप से किसी कार्यक्रम में पहुंचें, तो उनसे इन घटनाओं को गिनाकर इन पर उनकी राय पूछनी चाहिए। वैसे तो यह काम अपने आपको लोकतंत्र का चौथा स्तंभ का दंभ भरने वाले मीडिया का होना चाहिए था, लेकिन छोटे-छोटे पॉकेट साईज के नेता भी बड़े-बड़े इश्तहार देकर मीडिया को पिछवाड़े तले दबाकर बैठते हैं।

जब मीडिया का अपना पापी पेट ऐसे ही लोगों से चलता है, तो वे पार्टियों के नेताओं से कुछ नहीं पूछ सकते, जनता को ही आज सोशल मीडिया पर जवाब-तलब करना चाहिए, और ऐसी घटनाओं को वॉट्सऐप जैसी मैसेंजर सर्विसों से चारों तरफ बांटना चाहिए। सार्वजनिक धिक्कार ही किसी पार्टी या उसके नेताओं को सुधार सकती है, वरना पार्टियों में ओहदे तो आजकल उस अंदाज में बिकते हैं जिस अंदाज में राज्यसभा की सदस्यता, या चुनावी उम्मीदवारी बेचने के लिए एक बहनजी बदनाम हैं। लोग अपनी नागरिक जिम्मेदारी पूरी करें, और किसी प्रेरणा के लिए मीडिया की तरफ न देखें।

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