जन्मदिन/जयराम शुक्ल
दिग्विजय सिंह किसी औरके नहीं स्वयं के अनुयायी भी हैं और स्वयं के गुरू भी..आदर्श भी।
विधानसभा की एक पत्रकार वार्ता में स्पीकर श्रीनिवास तिवारी से पत्रकारों ने पूछा-दिग्विजय सिंह आपको गुरूदेव कहते हैं उनके व्यक्तित्व के बारे में आपकी क्या राय है–?
तिवारीजी ने जवाब दिया- एक शब्द में कहें तो ‘अबूझ’..!
राजनीति में दिग्विजय सिंह आज भी उसी तरह अबूझ बने हुए हैं जैसे कि फिल्म जगत में रेखा..।दिग्विजय सिंह राजनीति को आठों याम व हर पल वैसे ही जीते हैं जैसे मछली पानी को..।1996 में अर्जुन सिंह की बगावत और तिवारी कांग्रेस के निर्माण के बाद दिग्विजय सिंह ने सत्ता को ऐसे साधकर रखा जैसे आसमान में झूलती पतली रस्सी में कोई नटनी..।
अर्जुन सिंह के साथ जीने मरने की दुहाई देने वाले विधायकों/मंत्रियों को अपने अंटे में बाँधने में छह घंटे का भी वक्त जाया नहीं किया। अर्जुन सिंह की कृपापूर्ण गणित से मुख्यमंत्री बने दिग्विजय सिंह पूरे कार्यकाल तक प्रधानमंत्री नरसिंहराव की आँखों के तारे बने रहे!
मध्यप्रदेश में वे अपने ऊपर की पीढ़ी को लेकर असहज से रहते थे सो अपने दूसरे कार्यकाल में ‘गुरू’ अर्जुन सिंह, गुरूदेव श्रीनिवास तिवारी को राजनीति से सन्यास लेने की खुलेआम पैरवी करते थे।
आजमगढ़ के बिगड़े दुलारे बच्चों के सिरपर हाँथ फेरने, तकरीरियों, फतबाबाजों कों शांतिदूत बताने वाले दिग्विजय सिंह ने लोकसभा चुनाव अभियान में कंप्यूटर बाबा, मिर्ची बाबा और कई बाबाओं की अगुवाई में..बैंडबाजा, भजन के साथ जुलूस निकाला..।
संवाद और ‘सेंस आफ ह्यूमर’ राजनीति की सबसे बड़ी पूँजी है, दिग्विजय सिंह को यही पूँजी आजतक जीतहार के ऊपर बनाए हुए है..।मध्यप्रदेश में सत्ता संचालन की जो लकीर दिग्विजय सिंह ने खींच दी है..उसी पर 13 साल शिवराज सिंह चौहान चले, और अब कमलनाथ भी..।
राजनीति में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न दुश्मन..दिग्गीराजा ने यह चरितार्थ करके दिखाया..।हर परिस्थिति में निरंतरता और प्रवाह राजनीति की मूल आत्मा है..यही गुण दिग्विजय सिंह को अपरिहार्य बनाए हुए है…।कटु से कटु वक्ताओं को भी तथ्य और तर्क की ढाल के साथ प्रस्तुत करने की कला ही दिग्विजय सिंह को राजनीतिकों की जमात में अलग और विशिष्ट बनाती है..।
एक अजूबा और- दिग्विजय सिंह हमेशा अपने क्रोध को हँसी के साथ व्यक्त करते हैं। आजतक उन्होंने न किसी को आड़े हाथों लिया और धमकाया।’गाडफादर’ की भाँति राजनीति में उनका भी एक सूत्रवाक्य है- ‘गुस्से को शब्दों में व्यक्त मत करो’
कांग्रेस के वैचारिक सन्निपात के दौर में दिग्विजय सिंह और भी प्रभावी भूमिका में सामने आएंगे..।
दिग्विजय सिंह ने आज तक किसी को न अपना प्रेरणास्रोत बताया और न कभी किन्हीं के सिद्धांतों या आदर्शों का हवाला दिया..
और यह गोपनीय बात.. दिग्विजय सिंह किसी औरके नहीं स्वयं के अनुयायी भी हैं और स्वयं के गुरू भी..आदर्श भी।