सुनील कुमार (संपादक डेली छत्तीसगढ़ )
कुछ भला करने में कई बार हाथ भी जलते हैं। इन दिनों हिंदुस्तान में लॉकडाउन के चलते करोड़ों मजदूर जगह-जगह फंसे हुए हैं। लोग उनके खाने-पीने के इंतजाम में मदद भी कर रहे हैं। किसी दूसरे शहर में फंसे हुए अपने प्रदेश के मजदूरों के लिए दूर से फोन पर खुद और सरकार की मदद से भी कुछ लोग लगे हुए हैं। उन्होंने मदद करवाई, और फिर यह शिकायत सुनने मिली कि जिन लोगों के नाम मिले हैं, उनमें से बहुत सारे तो बरसों से उन्हीं शहरों के बाशिंदे हो गए हैं, वहीं मजदूरी करते हैं।
मुफ्त में राहत मिलते देख उन्होंने भी अपना नाम लिखा दिया था। सुनकर बुरा भी लगता है, लेकिन हकीकत यही है, इस देश में लोगों को राह चलते किसी त्यौहार के दिन कई भंडारे खुले दिखते हैं, तो मोटरसाइकिल खड़ी करके कई जगह प्रसाद के नाम पर खाना खा लेते हैं। ऐसे में आज मजदूरी बंद है, दुकानें बंद हैं, तो कुछ पुराने बसे लोग भी राशन ले रहे होंगे।
कितने ऐसे लोग हैं जो मुफ्त लेना नहीं चाहते? अखबार मालिक रियायती जमीन चाहते हैं, पत्रकारों में से बहुत से हैं जो एक से ज्यादा रियायती जमीन-मकान भी ले लेते हैं। मन्त्री और विधायक अपने मकान के बाद भी सरकारी मकान लेते हैं, फिर रियायती जमीन और रियायती मकान खरीद भी लेते हैं।
करोड़पति बुजुर्ग भी रेल टिकट पर रियायत चाहते हैं। बहुत से संपन्न लोग ऐसे भी हैं जो कि बूढ़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मां-बाप को सूटकेस-बैग की तरह लेकर चलते हैं। सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को एक सहायक लेकर चलने की छूट दी है, तो औलाद उन्हें साथ में टांगकर भी चलती है। गरीब मजदूर मुफ्त का राशन पाकर भी कितना दौलतमंद हो जायेगा? हफ्ते भर का राशन नहीं खरीदना पड़ेगा। लेकिन उसका तो काम भी महीनों का छिना हुआ है। इसलिए उसकी नीयत पर अधिक हमला बोलना ठीक नहीं।
यह तो वह देश है जिसमें आपातकाल में मीसाबंदी रहे लोगों के कुनबे छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में मीसा-पेंशन बंद होने के खिलाफ अदालत से फैसला लाते हैं, फिर चाहे संपन्न लोगों को उसकी जरूरत ही ना हो। मुफ्त का माल किसको बुरा लगता है? हिंदुस्तान में तो ट्रेन से बर्थ का रैग्जीन काटकर लाकर लोग उसका थैला बना लेते हैं, ट्रेन के पखाने से जंजीर लगा स्टील का मग्गा चुरा लेते हैं, होटलों में रखे सामानों को मुफ्त का मानकर सब कुछ भरकर लाने की फेर में रहते हैं। ऐसे देश में फंसे हुए बेरोजगार मजदूर के सामने यह दिक्कत भी है कि दुकानें खुली नहीं हैं, काम बंद है, मजदूरी बंद है, इसलिए भी कुछ सामान जुटाकर रखने की नीयत हो सकती है।
गरीब की नीयत जरूर डोलती होगी, लेकिन पैसेवालों की ना डोलती हो ऐसा भी नहीं। इसलिए आज के इस भयानक संकट के बीच भी लालची गरीबों को अनदेखा करके सभी गरीबों की मदद करनी होगी। और यह मदद कोई बहुत बड़ी नहीं है, यह थोड़े से अनाज की ही है, जो कि देश की सरकारों के लिए गोदामों से बाहर उफनकर एक दिक्कत भी बना हुआ है।
छत्तीसगढ़ में जब राशन कार्ड बन रहे थे, और गरीबी के पैमाने तय नहीं हो पा रहे थे, तब उस वक़्त की भाजपा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में उसके सलाहकारों के कहे हुए यह मान लिया था जो भी गरीब, जिस भी लिस्ट में गरीबी की रेखा के नीचे आ रहे हों, उन्हें गरीब मानकर राशन दिया जाये। आज की नौबत वही है, जो अपने को भूखा कहे, उसके खाने का इंतजाम करना है। 100 में से चाहे 50 गरीब ना हों, लेकिन उनके चक्कर में बचे 50 भूखे-गरीब ना छूट जाएँ। संकट के वक्त ऐसी बर्बादी होती ही है, कुछ लोग ट्रक भरकर अनाज गायब करते हैं, कुछ लोग बिना जरूरत 5 किलो ले लेते हैं। बर्बादी रोकने के लिए राहत नहीं रोकी जा सकती।