गोविन्द सिंह की सक्रियता और कांग्रेस में ‘अविश्वास’

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71 साल के गोविन्द सिंह जिस तरह से चर्चा में हैं। मानो को 76 साल के कमलनाथ को ये बताने में लगे हैं कि मैं भी आप जितना ही वरिष्ठ हूँ। प्रदेश की राजनीति का तो में पुराना खिलाडी हूँ। मानो कह रहे हों -मेरी सरलता और चुप्पी को कमजोरी या कायरता न समझें।

पंकज मुकाती (संपादक पॉलिटिक्सवाला )

मध्यप्रदेश गज़ब है। ये पुराना हुआ। नया है। मध्यप्रदेश कांग्रेस अज़ब है। गोविन्द सिंह। नेता प्रतिपक्ष। कांग्रेस का सुशील चेहरा। विद्वान। कभी फ़ालतू बात नहीं। काम से काम। एक तरह से अपने नाम के अनुरूप। कांग्रेस की भक्ति और सेवा में डूबे नेता।

गोविन्द सिंह आजकल बदले से हैं। क्यों ? एक नेता जिसे पूरी ज़िंदगी निरापद देखा। वो आजकल आपदा को आमंत्रण दे रहे। या कहिये खुद का वजन तौल रहे। इसकी शुरुवात हुई। शिवराज सरकार के खिलाफ आये अविश्वास प्रस्ताव से। सदन में वो प्रस्ताव गिरा। शिवराज सरकार पर असर नहीं हुआ। पर उसमेकांग्रेस के भीतर अविश्वास का खेल शुरू हो गया।

अविश्वास प्रस्ताव पर दो दिन बहस चली। कमलनाथ उसमे नहीं पहुंचे। वे सदन के बाहर जान सियासत में रमे थे। पहले दिन। दूसरे दिन दिल्ली एक विवाह समारोह में उपास्थित रहे। सदन में गोविन्द सिंह अकेले किला लड़ाते दिखे। दूसरे दिन सिंह को भी सदन छोड़कर जाना पड़ा।

जब वे लौटे तो एक नए तेवर में। मीडिया में आया अविश्वास प्रस्ताव बिना तैयारी का और लचर था। गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने इसे गोविन्द कथा कह डाला। मीडिया में ये भी छपा, छपवाया गया कि कमलनाथ इस प्रस्ताव के खिलाफ थे। इसकी नाकामी का ठीकरा गोविन्द सिंह पर फूटा।

अब बारी गोविन्द सिंह की थी। 71 साल के गोविन्द सिंह जिस तरह से चर्चा में हैं। मानो को 76 साल के कमलनाथ को ये बताने में लगे हैं कि मैं भी आप जितना
ही वरिष्ठ हूँ। प्रदेश की राजनीति का तो में पुराना खिलाडी हूँ। मानो कह रहे हों -मेरी सरलता और चुप्पी को कमजोरी या कायरता न समझें।

सदन के बाद गोविन्द सिंह सीडी मामले में सामने आये। वे राष्ट्रीय मीडिया में आ गए। फिर गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा से मिले। महाकाल की तस्वीर हाथ में लिए दोनों ने फोटो खिचवाई। सिंह यहीं नहीं रुके। फिर उन्होंने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को चुनौती दी घर आओ, सीडी दिखाता हूँ।

शुक्रवार को गोविन्द सिंह कांग्रेस के नेता राजा पटेरिया से मिलने जेल पहुंचे। अभी तक कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने राजा पटेरिया की सुध नहीं ली थी। ऐसा करके सिंह ने कार्यकर्ताओं और नेताओ के बीच ये सन्देश दिया कि में जमीन का नेता हूँ।

गोविन्द सिंह के तेवरों को देखकर लगता है कि बात लम्बी चलेगी। वे भाजपा से ज्यादा कमलनाथ के सामने नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिख रहे हैं। एक तरह गोविन्द सिंह मीडिया में सुर्खियां पा रहे हैं, दूसरी तरफ कमलनाथ होर्डिंग पर भावी मुख्यमंत्री बनकर आ गए हैं।

दोनों के बीच चल रहे इस अविश्वास का ‘राजा’ कौन है ये सबको पता है। पर चुप रहना ही राजनीति है।

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