MP Minister Sampatiya Uikey: मध्यप्रदेश की राजनीति इन दिनों एक बड़े भ्रष्टाचार के आरोप के चलते गरमाई हुई है।
जल जीवन मिशन के तहत 1000 करोड़ रुपये के कथित कमीशन घोटाले में प्रदेश की पीएचई मंत्री संपतिया उइके के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए।
यह मामला तब तूल पकड़ गया जब जांच आदेश वायरल होने के बाद खुद पीएचई विभाग ने यू-टर्न लेते हुए आरोपों को “तथ्यहीन और निराधार” करार दे दिया।
इस पूरे घटनाक्रम ने न सिर्फ प्रशासनिक पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए, बल्कि सत्ताधारी दल बीजेपी और विपक्ष कांग्रेस के बीच तीखी सियासी भिड़ंत भी पैदा कर दी।
मंत्री पद से इस्तीफा और CBI जांच की मांग
मंडला विधायक और मोहन कैबिनेट में PHE मंत्री संपतिया उइके पर 1000 करोड़ रुपये की घूस लेने का गंभीर आरोप लगा है।
यह आरोप जल जीवन मिशन के तहत राज्य को मिले फंड में कथित भ्रष्टाचार को लेकर लगाया गया है।
इस मामले में अब जिला कांग्रेस कमेटी ने उनके खिलाफ खोर्चा खोल दिया है।
कांग्रेसियों ने मंत्री के आवास के सामने धरना प्रदर्शन कर उनका पुतला दहन किया।
कांग्रेस विधायक नारायण सिंह पट्टा ने कहा कि जब खुद पीएचई विभाग के ईएनसी ने जांच के आदेश दिए हैं, तो मंत्री को पद से इस्तीफा देकर निष्पक्ष जांच का रास्ता साफ करना चाहिए।
अब समझें पूरा मामला है क्या ?
इस घोटाले की शुरुआत एक शिकायती पत्र से हुई है।
जिसे पूर्व विधायक और संयुक्त क्रांति पार्टी के अध्यक्ष किशोर समरीते ने 12 अप्रैल 2025 को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को भेजा था।
पत्र में आरोप था कि जल जीवन मिशन के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रदेश को दिए गए 30,000 करोड़ रुपये में से 1,000 करोड़ रुपये का कमीशन मंत्री संपतिया उइके द्वारा कथित रूप से लिया गया।
आरोप यह भी था कि यह पैसा कार्यपालन यंत्रियों के माध्यम से इकट्ठा किया गया, जिनमें मंडला और बैतूल के इंजीनियरों का नाम प्रमुखता से लिया गया।
समरीते ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ कार्यपालन यंत्रियों ने बिना काम किए ही करोड़ों रुपये निकाल लिए, फर्जी सर्टिफिकेट भेजे गए और हजारों टेंडरों पर काम नहीं कराए गए।
उन्होंने इसे एक “राष्ट्रीय स्तर का घोटाला” बताते हुए CBI जांच की मांग की।
मामले में जब PHE विभाग ने लिया यूटर्न
PMO को शिकायत मिलने के बाद मामला मुख्य सचिव कार्यालय पहुंचा।
मुख्य सचिव ने बिना ज्यादा पड़ताल के इसे प्रमुख सचिव को भेजा, जिन्होंने इसे आगे पीएचई विभाग के प्रमुख अभियंता (ENC) संजय अंधवान तक पहुंचा दिया।
अंधवान ने जांच के आदेश देते हुए सभी मुख्य अभियंताओं और जल निगम के प्रोजेक्ट डायरेक्टरों को सात दिन में रिपोर्ट देने को कहा।
हालांकि, जब यह आदेश सोशल मीडिया पर वायरल हुए, तो विभाग ने आनन-फानन में प्रेस नोट जारी कर कहा कि मंत्री पर लगे आरोप “बेबुनियाद” हैं और केवल RTI के दस्तावेज़ के आधार पर लगाए गए हैं। साथ ही शिकायत को “मनगढ़ंत” बताया गया।
मंत्री संपतिया उइके की सफाई और नाराजगी
मंत्री संपतिया उइके ने पूरे मामले पर नाराजगी जताते हुए कहा – मुझे फंसाने की कोशिश की जा रही है।
मैं एक आदिवासी महिला हूं, मजदूर वर्ग से आती हूं। मैंने हमेशा ईमानदारी से जनता की सेवा की है।
मंत्री संपतिया उइके ने कहा, मैं बिल्कुल सही हूं, सांच को आंच नहीं…।
जिस भी तरह की जांच होगी, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
मेरी सच्चाई मुख्यमंत्री को पता है, वो जवाब देंगे।
उन्होंने यह भी कहा कि वे इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से बात करेंगी और एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पूरे मामले पर खुलकर बोलेंगी।
आरोप आधारहीन हैं – डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल
इस मामले में डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल ने मंत्री के समर्थन में बयान देते हुए कहा कि – संपतिया उइके मेहनती और ईमानदार मंत्री हैं।
उन पर लगाए गए आरोप आधारहीन और दुर्भावनापूर्ण हैं।
जिस अधिकारी ने अपने ही मंत्री के खिलाफ जांच शुरू की है, उसके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।
पीएचई विभाग के प्रमुख अभियंता संजय अंधवान ने भी खुद ही सफाई देते हुए कहा कि शिकायत में कोई भी पुख्ता सबूत नहीं है।
उन्होंने बालाघाट संभाग के कार्यपालन यंत्री की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि किसी प्रकार की अनियमितता नहीं हुई।
किशोर समरीते बोले- सरकार को कोर्ट में जवाब देना होगा
जांच को “तथ्यहीन” बताए जाने के बाद शिकायतकर्ता किशोर समरीते ने कहा कि सरकार और विभाग ने बालाघाट की रिपोर्ट को पूरे प्रदेश की जांच बताकर गुमराह करने की कोशिश की है।
उन्होंने कहा कि वे जल्द ही इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे और सरकार से जवाब मांगेंगे।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राजगढ़, बैतूल, छिंदवाड़ा और बालाघाट जैसे जिलों में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है।
संपतिया उइके ने कुछ भरोसेमंद अफसरों के जरिए वसूली का नेटवर्क तैयार किया, जिसकी जानकारी दस्तावेजों में है।
प्रशासनिक सवाल और लापरवाही का मामला
इस पूरे प्रकरण ने प्रदेश की प्रशासनिक प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं:
- क्या मंत्री स्तर पर बिना मुख्यमंत्री की जानकारी के जांच बैठाना सामान्य प्रक्रिया है?
- क्या मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव ने शिकायत को ठीक से पढ़ा भी था?
- क्या किसी भी RTI जवाब को आधार बनाकर मंत्री के खिलाफ जांच शुरू की जा सकती है?
इन सवालों का जवाब सरकार को देना बाकी है। विपक्ष इसे शासन में अराजकता और लापरवाही की मिसाल बता रहा है।
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