इस सियासी घमासान के बीच सदन की कार्यवाही कई बार स्थगित करनी पड़ी, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
21 जुलाई को बिहार विधानमंडल का चर्चित मानसून सत्र 2025 भारी हंगामे के साथ शुरू हुआ।
उम्मीद थी कि सत्र में विकास के मुद्दों पर बहस होगी, लेकिन मतदाता सूची में कथित धांधली के आरोपों ने पूरी कार्यवाही की दिशा ही बदल दी।
पटना में विधानसभा के अंदर सियासी पारा चढ़ गया है।
विपक्ष ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए सरकार को पूरी तरह से विफल बताया, जिससे सदन ‘रणक्षेत्र‘ में तब्दील हो गया।
मानसून सत्र के पहले दिन से ही विपक्ष, विशेषकर RJD और कांग्रेस के विधायक, आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं।
उन्होंने सदन के अंदर और बाहर, दोनों जगह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
इस पूरे घटनाक्रम को चार मुख्य हिस्सों में समझा जा सकता है:
1 – विपक्ष का सरकार पर तीखा हमला: ‘मतदाता सूची‘ पर सीधा वार
नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने बहस का नेतृत्व करते हुए सरकार पर आरोपों की झड़ी लगा दी।
उन्होंने कहा, हजारों मृत मतदाताओं के नाम अभी भी सूची में हैं, जबकि लाखों योग्य मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं या गायब कर दिए गए हैं।
यह लोकतंत्र पर सीधा हमला है और आगामी चुनावों को प्रभावित करने की साजिश है।
- आरोप: विपक्ष का मुख्य आरोप है कि मतदाता सूची में जानबूझकर हेरफेर की जा रही है ताकि सत्ताधारी दल को फायदा पहुंचाया जा सके।
- मांग: विधायकों ने मांग की कि मतदाता सूची अपडेट प्रक्रिया की उच्च-स्तरीय स्वतंत्र जांच कराई जाए और गड़बड़ी करने वालों पर सख्त कार्रवाई हो।
2 – सरकार का पलटवार और बचाव
विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने सरकार का पक्ष रखा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विपक्ष के आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि मतदाता सूची का कार्य चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार पारदर्शी तरीके से किया जा रहा है।
- सरकारी दावे: सरकार ने बताया कि मतदाता सूची को लेकर यह एक सतत प्रक्रिया है और त्रुटियों को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं।
- राजनीति का आरोप: सत्ता पक्ष ने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि विपक्ष अनावश्यक रूप से राजनीतिकरण कर रहा है और बिना किसी ठोस सबूत के आरोप लगा रहा है।
3 – सदन में ‘अमर्यादित‘ हंगामा
आरोप-प्रत्यारोप के बीच सदन में स्थिति कई बार तनावपूर्ण हो गई।
अध्यक्ष नंदकिशोर यादव ने बार-बार सदस्यों से शांति बनाए रखने की अपील की, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ।
विधायक वेल में आकर नारेबाज़ी करते रहे, जिससे सदन की कार्यवाही को कई बार कुछ घंटों के लिए स्थगित करना पड़ा।
मतदाता सूची के मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरने की कोशिश की, जिससे माहौल और गर्म हो गया।
4 – दस्तावेज फाड़े, नारे लगाए: विपक्ष का सदन से वॉकआउट
जब अध्यक्ष ने मतदाता सूची पर अलग से बहस की विपक्ष की मांग को खारिज कर दिया, तो माहौल और बिगड़ गया।
गुस्से में आए विपक्षी विधायकों ने इसे ‘लोकतंत्र की हत्या‘ करार दिया।
विपक्ष के विरोध का चरम
कई विधायकों ने सरकारी रिपोर्टों की प्रतियां हवा में लहराईं और फिर उन्हें फाड़कर वेल में फेंक दिया।
उन्होंने मतदाता सूची से संबंधित दस्तावेज भी सदन में लहराए और उन पर सवाल उठाए।
“मतदाता सूची में धांधली बंद करो” जैसे नारों से सदन गूंज उठा।
वॉकआउट का फैसला
लगभग एक घंटे के हंगामे के बाद, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने घोषणा की कि जब तक सरकार मतदाता सूची में गड़बड़ी पर विस्तृत चर्चा के लिए तैयार नहीं होती, तब तक विपक्ष सदन की कार्यवाही का बहिष्कार करेगा।
इसके बाद सभी विपक्षी विधायक नारेबाज़ी करते हुए सदन से बाहर चले गए।
विपक्ष के वॉकआउट के बाद बिहार विधानसभा का सियासी संकट और गहरा गया है।
राजधानी पटना में राजनीतिक संग्राम छिड़ा हुआ है, जिसमें मतदाता सूची अपडेट का संवेदनशील मुद्दा केंद्र में है।
इस सियासी खींचतान और बहिष्कार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पारदर्शिता बनाए रखने के रास्ते में राजनीति एक बड़ा रोड़ा है।
