Bihar SIR Final Voter List: बिहार में चुनाव आयोग ने मंगलवार को स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) की फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी।
नई लिस्ट में कुल 7 करोड़ 42 लाख मतदाताओं के नाम दर्ज किए गए हैं।
इस दौरान बड़े पैमाने पर संशोधन हुआ है, जिसमें 69 लाख नाम हटाए गए हैं, जबकि 21.53 लाख नए मतदाता जोड़े गए हैं।
फाइनल लिस्ट में कई जिलों में मतदाताओं की संख्या बढ़ी है, तो कई जगह बड़ी कटौती हुई है।
राजधानी पटना जिले में 1 लाख 63 हजार 600 मतदाता बढ़े हैं। पहले यहां 46 लाख 51 हजार 694 वोटर्स थे, जो अब बढ़कर 48 लाख 15 हजार 294 हो गए हैं।
इसके विपरीत, सारण जिले में 2 लाख 24 हजार 768 नाम हटाए गए हैं। यहां पहले 31 लाख 27 हजार 451 मतदाता थे, जो अब घटकर 29 लाख 02 हजार 683 रह गए।
नाम कटने की वजह
फाइनल लिस्ट में हटाए गए नामों के पीछे चुनाव आयोग ने कई कारण बताए हैं।
लगभग 22 लाख मतदाता की मृत्यु हो चुकी थी। 36 लाख लोग घर पर नहीं मिले।
7 लाख लोग स्थायी रूप से राज्य से बाहर जा चुके थे।
इसके अलावा, कई ऐसे लोग भी थे जिनके पास डुप्लीकेट वोटर आईडी थे।
आयोग ने साफ किया है कि इस प्रक्रिया का उद्देश्य केवल सही और वैध मतदाताओं को सूची में रखना है।
2003 के बाद पहली बार SIR
बिहार में SIR की यह प्रक्रिया लगभग 22 साल बाद दोबारा शुरू की गई। 24 जून 2025 को इसका शुभारंभ हुआ था।
इस प्रक्रिया के अंतर्गत लगभग 7.89 करोड़ रजिस्टर्ड मतदाताओं से दोबारा फॉर्म भरवाए गए थे।
SIR का पहला चरण 25 जुलाई 2025 तक चला और इसमें 99.8% कवरेज हासिल की गई।
इस दौरान पाया गया कि बड़ी संख्या में मतदाता या तो अब जीवित नहीं हैं, या फिर स्थायी रूप से दूसरी जगह रह रहे हैं।
साथ ही, फर्जी नाम और डुप्लीकेट एंट्री को भी सूची से हटाया गया।
शुरुआत में इस प्रक्रिया के लिए चुनाव आयोग ने 11 दस्तावेजों को मान्य किया था।
लेकिन 8 सितंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आधार नंबर को भी 12वें दस्तावेज के तौर पर स्वीकार किया जाए।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार केवल पहचान का प्रमाण है, न कि नागरिकता का।
विपक्ष का विरोध, चुनावी समीकरण
इस पूरी कवायद को लेकर विपक्षी दलों, खासकर RJD और कांग्रेस, ने सवाल उठाए हैं।
उनका कहना है कि यह प्रक्रिया मतदाताओं को वोटिंग अधिकार से वंचित करने की साजिश है।
विपक्ष ने तर्क दिया कि पिछले 22 सालों में बिहार में कम से कम 5 चुनाव हो चुके हैं, तो क्या वे सभी चुनाव गलत थे?
विपक्ष ने यह भी आरोप लगाया कि अगर चुनाव आयोग को SIR प्रक्रिया करनी ही थी, तो इसे विधानसभा चुनाव के बाद आराम से किया जा सकता था।
लेकिन इतनी जल्दी और हड़बड़ी में इसे लागू करने के पीछे राजनीतिक मकसद है।
बहरहाल, फाइनल लिस्ट जारी होने के साथ ही बिहार में चुनावी तैयारियां तेज हो गई हैं।
भाजपा, कांग्रेस और राजद जैसी प्रमुख पार्टियां अब इस नए डेटा के आधार पर अपनी रणनीति बनाएंगी।
बढ़े और घटे वोटर्स का सीधा असर कई विधानसभा और लोकसभा सीटों पर पड़ सकता है।
कुल मिलाकर, SIR की यह प्रक्रिया जहां चुनाव आयोग के लिए वोटर लिस्ट को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने का एक प्रयास है, वहीं विपक्ष इसे एक राजनीतिक खेल करार दे रहा है।
अब देखना होगा कि आगामी चुनावों में यह नया वोटर समीकरण किस पार्टी के पक्ष या विपक्ष में जाता है।
