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बिहार चुनाव में अंधा फेरबदल .. प्रशासन का फैक्ट चेक ही फेक न्यूज़

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#biharelction #voterlistrevision बिहार के विधासभा चुनाव में मतदाता सूची का मामला गरम है। विशेष गहन परिक्षण या #SIR पर भी बड़े सवाल है। पूरे मामले में पत्रकार अजीतअंजुम की रिपोर्ट को ख़ारिज करने के लिए प्रशासन जारी कर रहा फेक न्यूज़।

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पटना। बिहार में आगामी चुनावों को लेकर चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान पर अब गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम द्वारा जारी किए गए एक वीडियो रिपोर्ट में पटना के फुलवारी विधानसभा क्षेत्र के एक ब्लॉक कार्यालय में बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा कथित रूप से फर्जी हस्ताक्षर करने के आरोप लगाए गए।

हालांकि इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, पटना जिला प्रशासन और चुनाव आयोग दोनों ने अंजुम के दावों को “भ्रामक और निराधार” बताते हुए ‘फैक्ट-चेक’ जारी किया। लेकिन इन दोनों ‘स्पष्टीकरणों’ में खुद कई गंभीर विरोधाभास और कानूनी असंगतियां सामने आई हैं।

‘ऑल्ट न्यूज़’ के लिए अभिषेक कुमार की रिपोर्ट है कि पटना जिला प्रशासन ने पहले प्रेस नोट में कहा कि अंजुम द्वारा जिस बीएलओ को वीडियो में दिखाया गया है, वह दरअसल मृत/स्थानांतरित मतदाताओं की सूची बना रहा था। उन्होंने दो ऐसे दस्तावेज भी साझा किए जिनमें बीएलओ ‘रानी कुमारी’ द्वारा ‘Death’ या ‘Shifted’ लिखकर हस्ताक्षर करने का दावा किया गया।

हालांकि, ‘ऑल्ट न्यूज़’ की पड़ताल में निकलकर आया कि अजीत अंजुम के वीडियो में दिख रहे बीएलओ स्वयं के नाम से नहीं, बल्कि “शांती देवी” और “चंद्र प्रकाश साह” के नाम से फॉर्म पर हस्ताक्षर करते दिखे। यानि बीएलओ द्वारा मृत व्यक्ति के नाम से हस्ताक्षर करना प्रशासन के पहले दावे को झूठा सिद्ध करता है।

प्रशासन का दूसरा दावा: गड़बड़ ही गड़बड़

पहले दावे के उजागर होने के बाद, प्रशासन ने दूसरी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि दोनों व्यक्ति (शांती देवी और चंद्र प्रकाश साह) वास्तव में मृतक हैं, और बीएलओ ने मृतक का नाम हस्ताक्षर के स्थान पर लिखकर सत्यापन किया।

इस दावे में दो गंभीर प्रश्न उठते हैं. पहला कि क्या भारत में किसी मृतक व्यक्ति के नाम से हस्ताक्षर करना कानूनी प्रक्रिया मानी जाती है? बीएलओ द्वारा हस्ताक्षर की जगह मृत व्यक्ति का नाम लिखना — क्या यह दस्तावेज़ी फर्जीवाड़ा नहीं है?

और दूसरा भारतीय कानून के तहत दूसरे व्यक्ति के नाम से हस्ताक्षर करना फर्जीवाड़ा (Forgery) माना जाता है। और कोई व्यक्ति मृत होने के बाद हस्ताक्षर कर ही नहीं सकता। इस आधार पर जिला प्रशासन की सफाई कानूनन भी टिकती नहीं।

संजय कुमार: न मृत, न स्थानांतरित — फिर हस्ताक्षर क्यों?

अजीत अंजुम के वीडियो में संजय कुमार, पिता रामायण यादव नामक मतदाता का फॉर्म भी दिखता है, जिस पर एक महिला बीएलओ हस्ताक्षर करती दिखाई देती हैं।

‘ऑल्ट न्यूज़’ और अन्य पत्रकारों ने पड़ताल की तो पाया कि संजय कुमार जीवित हैं और वहीं निवास करते हैं. पत्रकार मीरा राजपूत और ज्योतिष चौहान ने उनकी वोटर आईडी और आधार कार्ड भी प्रस्तुत किए, जिनसे पुष्टि होती है कि संजय न तो मृतक हैं, न ही कहीं और स्थानांतरित हुए हैं. तो फिर बीएलओ द्वारा उनके स्थान पर फॉर्म पर हस्ताक्षर करने का क्या औचित्य था?

प्रशासन ने बदला संजय कुमार के फॉर्म की स्थिति

18 जुलाई को अजीत अंजुम ने सोशल मीडिया पर संजय कुमार के फॉर्म की तस्वीरें साझा कीं, जिसमें उसका स्टेटस था – “फॉर्म सबमिट हो चुका है, नाम 1 अगस्त की ड्राफ्ट मतदाता सूची में आएगा। ” लेकिन बाद में जब ‘ऑल्ट न्यूज़’ ने दोबारा स्टेटस चेक किया तो परिणाम आया – “अपने बीएलओ से संपर्क करें.” यानी प्रशासन ने सोशल मीडिया पर मामला उजागर होने के बाद फॉर्म की स्थिति बदल दी, जिससे साफ प्रतीत होता है कि गलती छिपाने की कोशिश की गई।

 

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