Allahabad High Court's decision

Allahabad High Court's decision

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला-लव मैरिज की है तो सुरक्षा क्यों दें

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कोर्ट ने कहा-

साथ मिलकर समाज का सामना करें

सिक्योरिटी की गुहार तभी लगाएं, जब सच में खतरा हो .

 

#Politicswala report

Allahabad High Court’s decision-प्रयागराज। यदि आपने अपनी मर्जी से शादी की है यानि लव मैरिज की है तो बतौर नवविवाहित जोड़ा आपको सुरक्षा की मांग का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यह किसी मोहब्बत के दुश्मन का ऐलान नहीं बल्कि एक अहम् फैसला है जो हाईकोर्ट ने दिया है। कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि अपनी मर्जी से शादी करने मात्र से जोड़े को सुरक्षा की मांग करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। यदि उनके साथ दुर्व्यवहार या मारपीट की जाती है तो कोर्ट और पुलिस उनके बचाव में आएगी। उन्हें एक-दूसरे के साथ खड़े होकर समाज का सामना करना चाहिए। इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला-लव मैरिज की है तो सुरक्षा क्यों दें।

ये आदेश मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव ने चित्रकूट की श्रेया केसरवानी और अन्य की याचिका का निपटारा करते हुए दिया। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए कहा- जिन्होंने अपनी मर्जी से शादी कर ली हो, कोर्ट ऐसे युवाओं को सुरक्षा देने के लिए नहीं बनी है। सुरक्षा की गुहार लगाने के लिए उन्हें वास्तविक खतरा होना चाहिए।

ये है पूरा मामला

चित्रकूट में युवक ने लव मैरिज की। इसके बाद कोर्ट में सुरक्षा को लेकर याचिका दायर की। कोर्ट ने कहा- याचिकाकर्ताओं ने SP चित्रकूट को प्रार्थना पत्र दिया है। पुलिस वास्तविक खतरे की स्थिति को देखकर कानून के मुताबिक जरूरी कदम उठाए। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में अपील की थी कि हमारे जीवन में विपक्षी हस्तक्षेप न करें।

कोर्ट ने कहा- याचिकाकर्ताओं पर ऐसा कोई खतरा नहीं दिख रहा, जिसके आधार पर उन्हें पुलिस संरक्षण दिलाया जाए। दूसरे पक्ष की तरफ से याचियों पर शारीरिक या मानसिक हमला करने का कोई सबूत नहीं है। याचियों ने विपक्षियों के किसी आचरण को लेकर FIR दर्ज करने की पुलिस को कोई अर्जी नहीं दी है। इसलिए पुलिस सुरक्षा देने का कोई केस नहीं बनता।

रेप के लिए खुद जिम्मेदार हो

कुछ दिनों पहले ही 10 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छात्रा पर टिप्पणी करते हुए कहा था- ‘रेप को खुद जिम्मेदार हो।’ कोर्ट ने रेप के आरोपी को जमानत दे दी थी। कोर्ट ने कहा था- सेक्स दोनों की सहमति से हुआ था। यदि पीड़ित के आरोपों को सही मान भी लिया जाए, तो इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि उसने खुद ही मुसीबत को न्योता दिया था।

क्या है सुरक्षा के लिए संविधान में प्रावधान

अनुच्छेद 32 प्रत्येक व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार देता है। इसका मतलब यह है कि अगर किसी को लगता है कि उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो वह राहत के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
अगर किसी व्यक्ति को सुरक्षा की ज़रूरत है, तो वह अदालत में याचिका दायर कर सकता है। सुरक्षा की याचिका दायर करने के लिए, व्यक्ति को वास्तविक खतरा होना चाहिए।

 

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