Manipur Violence

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मणिपुर में फिर भड़की हिंसा: नेशनल हाईवे बंद, दवाइयों के लिए तरस रहे लोग, महंगाई छू रही आसमान

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Manipur Violence: मणिपुर में एक बार फिर हालात बिगड़ने लगे हैं।

बीते साल मई से जारी जातीय संघर्ष अब भी थमने का नाम नहीं ले रहा है।

मैतेई नेता की गिरफ्तारी के बाद 7 जून की रात को एक बार फिर हिंसा भड़क गई।

जिसके चलते नेशनल हाईवे बंद होने के साथ ट्रांसपोर्ट रूट्स बाधित हुए हैं।

चुराचांदपुर और राजधानी इंफाल में आम लोगों को महंगाई का सामना कर पड़ रहा है।

हिंसा प्रभावित कई इलाकों में दवाइयां तक नहीं मिल रही हैं और खाने-पीने सहित जरूरी सामानों के दाम बढ़ गए हैं।

7 जून की रात हिंसा में आगजनी

7 जून की रात मणिपुर की राजधानी इंफाल एक बार फिर जल उठी।

प्रदर्शनकारियों ने शहर की सड़कों पर टायर और फर्नीचर जलाकर विरोध जताया।

इंफाल वेस्ट जिले के खुरई लामलोंग में एक बस को आग के हवाले कर दिया गया।

वहीं इंफाल ईस्ट और वेस्ट जिलों में कई गाड़ियों को भी आग लगा दी गई।

पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी हुईं।

कुछ प्रदर्शनकारियों ने पेट्रोल डालकर आत्मदाह की कोशिश भी की।

हिंसा की वजह माने जा रहे अरम्बाई टेंगोल संगठन के नेता कानन सिंह की गिरफ्तारी है।

CBI ने उन्हें 2023 में भड़की हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया।

गिरफ्तारी की खबर फैलते ही इंफाल के अलग-अलग इलाकों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया, जिसने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया।

5 जिलों में इंटरनेट बंद, 2 में कर्फ्यू लगा

स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए प्रशासन ने 7 जून की रात 11:45 बजे से पांच जिलों में इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाएं पांच दिनों के लिए बंद कर दी हैं।

इनमें इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल, काकचिंग और बिष्णुपुर शामिल हैं।

वहीं इंफाल ईस्ट और बिष्णुपुर में कर्फ्यू भी लागू किया गया है, ताकि भीड़ इकट्ठा न हो और हिंसा पर काबू पाया जा सके।

राजधानी इंफाल में और चुराचांदपुर में खाने-पीने की चीजें और दवाइयों की भारी कमी हो गई है।

चुराचांदपुर, जिसे कुकी समुदाय का गढ़ माना जाता है, नेशनल हाईवे-2 और 37 पर निर्भर है।

ये दोनों रूट मणिपुर को असम और नागालैंड से जोड़ते हैं, लेकिन मौजूदा हिंसा के चलते ये रास्ते पूरी तरह बंद हैं।

ट्रकों को अब लंबा और जटिल रास्ता मिजोरम होकर तय करना पड़ रहा है, जिससे आम आदमी की जिंदगी पर बड़ा असर पड़ा है।

लोगों को न केवल खाने-पीने की चीजें महंगे दामों पर खरीदनी पड़ रही हैं, बल्कि कई इलाकों में जरूरी दवाइयां तक उपलब्ध नहीं हैं।

2 सालों से जारी संघर्ष में 300 ये ज्यादा मौतें

3 मई 2023 को कुकी-मैतेई समुदाय के बीच संघर्ष शुरू हुआ था, जो अब तक जारी है।

इस जातीय संघर्ष में अब तक 300 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है।

1500 से अधिक लोग घायल हुए हैं और करीब 70 हजार लोग अपने ही राज्य में विस्थापित हो चुके हैं।

पुलिस ने अब तक 6 हजार से ज्यादा एफआईआर दर्ज की हैं, लेकिन स्थिति अब तक सामान्य नहीं हो पाई है।

13 फरवरी 2025 से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है। हालांकि, विधानसभा को भंग नहीं किया गया है बल्कि निलंबित रखा गया है।

30 अप्रैल को 21 विधायकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को पत्र भेजकर तत्काल राज्य में एक लोकप्रिय सरकार के गठन की मांग की थी।

28 मई को 10 NDA विधायकों ने राज्यपाल अजय भल्ला से मुलाकात की और सरकार के गठन पर चर्चा की।

उम्मीद जताई जा रही है कि 15 जून तक मणिपुर को एक नई सरकार मिल सकती है।

मैतेई बनाम नगा-कुकी: क्यों सुलग रहा पूर्वोत्तर?

मणिपुर की आबादी लगभग 38 लाख है, जिसमें तीन बड़े समुदाय हैं – मैतेई, नगा और कुकी।

मैतेई मुख्यतः हिंदू हैं और इंफाल घाटी में बसे हैं, जो राज्य का केवल 10% हिस्सा है।

वहीं नगा-कुकी समुदाय ईसाई धर्म को मानते हैं और ST वर्ग में आते हैं, जो राज्य के 90% हिस्से को घेरते हैं।

विवाद की शुरुआत तब हुई जब मैतेई समुदाय ने मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर ST (अनुसूचित जनजाति) दर्जे की मांग की।

कोर्ट ने राज्य सरकार से इस पर सिफारिश की। मैतेई समुदाय का तर्क है कि भारत में विलय से पहले उन्हें जनजाति माना जाता था।

साथ ही, उनका दावा है कि कुकी म्यांमार से आए, जंगल काटे, अफीम उगाई और राज्य को ड्रग तस्करी का अड्डा बना दिया।

इस मांग का नगा-कुकी समुदाय ने विरोध किया, उन्हें डर है कि ST का दर्जा मिलने से मैतेई समुदाय शिक्षा और नौकरियों में उनके आरक्षण पर कब्जा कर लेंगे।

उनका कहना है कि राज्य की 60 विधानसभा सीटों में से 40 पहले ही मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं।

अगर मैतेई को ST दर्जा मिला, तो पहाड़ी इलाकों की जमीन और राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी उनसे छिन जाएगा।

अब तक मणिपुर को मिले 12 मुख्यमंत्रियों में से केवल 2 ही ST समुदाय से रहे हैं।

ऐसे में नगा-कुकी खुद को राजनीतिक रूप से हाशिए पर महसूस कर रहे हैं।

यह विवाद अब हिंसा, अविश्वास और अस्थिरता का कारण बन गया है।

समाधान तभी संभव है जब सभी समुदायों के हितों को संतुलित कर शांतिपूर्ण संवाद की पहल की जाए।

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