‘कृष्ण’ की माया में सिमटते शिव और कैलाश… बदनावर की बदनामी की आंच में झुलसा सबसे अधिक मतों से जीतने वाले विधायक का मंत्री पद, मोघे को रास नहीं आया कैलाश विजयवर्गीय का उनके क्षेत्र में दखल, हाईकमान ने भी दी दो नंबर को हिदायत
अजय पौराणिक
इंदौर।प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से विधानसभा चुनाव जीतने का कीर्तिमान बना चुके और लगातार तीसरी बार इंदौर से विधायक रमेश मेंदोला एक बार फिर मंत्री बनने से चूक गए। साथ ही मन्त्रिमण्डल में सिंधिया समर्थक विधायकों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पसंद से ज्यादा तरजीह दी गई।
मेंदोला के मंत्री न बनने को लेकर यूं तो स्थानीय भाजपाई भी सकते में हैं और कयासों का बाजार गरम है पर विश्वसनीय भाजपा सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे बदनावर उपचुनाव एक महत्वपूर्ण कारण है। बदनावर उपचुनाव की कमान प्रदेश के फायरब्रांड संगठन महामंत्री रह चुके अनुभवी भाजपा नेता कृष्ण मुरारी मोघे ने संभाल रखी है ताकि सिंधिया समर्थक राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव चुनाव जीत सकें। इस प्रतिष्ठित सीट पर भाजपा की फिर पराजय न हो और महाराज का मान बना रहे।
सबकुछ अच्छा चल रहा था। अचानक कैलाश विजवर्गीय बदनावर में सक्रिय हुए। 2018 में भाजपा के अधिकृत प्रत्याशी भंवरसिंह शेखावत को हार की तरफ धकेलने वाले बागी राजेश अग्रवाल की भाजपा में वापसी हुई। उस वक्त कांग्रेस के टिकट से लड़े राज्यवर्धन दत्तीगांव की जीत की राह बागी राजेश अग्रवाल के कारण बनी। बदनावर में कैलाश विजयवर्गीय का ताल ठोकना मोघे को रास नहीं आया। राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बदनावर की लोकल राजनीति में बड़ा दखल दिया। अग्रवाल की घरवापसी के लिये लगाये गए मंच पर राष्ट्रीय महासचिव का कैलाश रूपी बेनर वहाँ चर्चा में रहा।
मात दिलाने वाले को शह मिलते देख गुस्साए शेखावत ने कैलाश का इतिहास बयां करता बयान दिया। लेकिन प्रयासों में पारंगत कैलाश विजयवर्गीय के पक्ष में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने जब कहा कि विजयवर्गीय पार्टी संगठन की सहमति से ही बदनावर में दाख़िल हुए तो शेखावत शांत हो गये। पर शर्मा के ये कहना केवल ऊपरी सामंजस्य था। इस हस्तक्षेप ने मोघे और उनके ख़ास सिंधिया को भी नाराज किया।
इसपर अब तक शान्त बैठे उपचुनाव प्रभारी मोघे ने पूरा मामला शीर्ष नेतृत्व तक पहुंचाया और प्रदेश अध्यक्ष शर्मा से भी गहन चर्चा की। इसी बीच भाजपा के इंदौर संगठन मंत्री जयपाल चावड़ा ने दो नम्बर के दोनों कद्दावरों को न सिर्फ आगाह किया बल्कि स्थानीय मामलों में दखल न देने की हिदायत दी।
हाई प्रोफाइल व सामान्यतः सौम्य राजनीतिज्ञ मोघे और महाराज के रिश्तों की गहराई और मेंदोला के मंत्री न बनने का राज, इसी बात से समझा जा सकता है कि मन्त्रिमण्डल शपथग्रहण के दौरान महाराज खुद मोघे का हाथ थामकर उन्हें मंच पर ले गये और बगल में ही बैठे जहाँ दोनों अपनी ही बातों में मशगूल रहे।
फिलहाल सत्ता के कैलाश पर विराजे शिव को भी अहसास हो गया होगा कि यह ‘कृष्ण’ की ही माया है जो ‘कैलाश’ की शरण भी रमेश को ‘शिव गणों’ में शामिल नहीं करा पाई।
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