Rahul Gandhi Citizenship Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी की कथित “ब्रिटिश नागरिकता” को लेकर दायर याचिका को निस्तारित कर दिया है।
यह याचिका कर्नाटक निवासी और भाजपा कार्यकर्ता एस. विग्नेश शिशिर द्वारा दाखिल की गई थी।
याचिका में आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी ने ब्रिटेन की एक कंपनी में निदेशक (Director) पद पर रहते हुए स्वयं को ब्रिटिश नागरिक घोषित किया था।
इस याचिका में उनकी भारतीय नागरिकता को रद्द करने और उनके खिलाफ सीबीआई जांच की मांग की गई थी।
केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अभाव में केस बंद
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि केंद्र सरकार इस विषय पर कोई ठोस और स्पष्ट रिपोर्ट दाखिल नहीं कर सकी है।
सरकार की ओर से कहा गया कि इस मामले में ब्रिटिश सरकार से सूचना मांगी गई है, लेकिन अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है।
केंद्र ने कोर्ट से और समय की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि सिर्फ रिपोर्ट के इंतजार में याचिका को लंबित नहीं रखा जा सकता।
अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि जब सरकार कोई समय सीमा ही नहीं दे पा रही है, तो याचिका को विचाराधीन रखना अनुचित होगा।
कोर्ट ने याचिका की निस्तारित, लेकिन विकल्प खुले
इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ में न्यायमूर्ति ए.आर. मसूदी और न्यायमूर्ति राजीव सिंह शामिल थे।
अदालत ने यह याचिका निस्तारित करते हुए याचिकाकर्ता को यह छूट दी है कि वह अन्य विधिक मंचों या अदालतों में इस विषय को पुनः उठा सकते हैं।
कोर्ट ने कहा कि यह याचिकाकर्ता का अधिकार है कि वह मामले को वैकल्पिक कानूनी उपायों के जरिए आगे बढ़ाए। इससे पहले 21 अप्रैल 2025 को हुई पिछली सुनवाई में अदालत ने केंद्र सरकार की रिपोर्ट को अपर्याप्त मानते हुए सख्त टिप्पणी की थी।
अदालत ने कहा था, यह मामला राष्ट्रीय महत्व का है, इसमें देरी नहीं चलेगी। कोर्ट ने केंद्र सरकार से 10 दिन के भीतर स्पष्ट रूप से बताने को कहा था कि क्या राहुल गांधी भारतीय नागरिक हैं या नहीं।
इस दौरान यह भी उल्लेखनीय रहा कि राहुल गांधी की ओर से अदालत में कोई वकील उपस्थित नहीं हुआ।
राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता रद्द करने की मांग
एस. विग्नेश शिशिर द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया था कि राहुल गांधी ने ब्रिटेन में Backops Limited नामक एक कंपनी में निदेशक के रूप में खुद को ब्रिटिश नागरिक बताया था।
उन्होंने इस दावे के समर्थन में कुछ दस्तावेज़ और ब्रिटिश सरकार से मिले ईमेल्स भी संलग्न किए थे।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 9(2) के अनुसार, कोई भी व्यक्ति यदि किसी अन्य देश की नागरिकता लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वत: समाप्त हो जाती है।
इसके आधार पर उन्होंने राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता रद्द करने की मांग की थी। याचिका में यह भी कहा गया था कि भारत में दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं है।
यदि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिकता रखते हैं, तो वह भारत में चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य हैं और लोकसभा सदस्य भी नहीं बन सकते।
इस कारण याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की थी कि राहुल गांधी के सांसद पद को निरस्त करने की कार्यवाही की जाए।
सीबीआई जांच की मांग, केंद्र ने क्या कहा?
याचिका में यह अनुरोध भी किया गया था कि राहुल गांधी द्वारा कथित रूप से दोहरी नागरिकता रखने के मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) और पासपोर्ट अधिनियम के अंतर्गत अपराध माना जाए और इसके लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा जांच कराई जाए।
हालांकि कोर्ट ने इस संबंध में कोई आदेश नहीं दिया और मामले को केंद्र सरकार पर छोड़ दिया। केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल सूर्यभान पांडेय ने कोर्ट को बताया कि गृह मंत्रालय ने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर इस विषय में जानकारी मांगी है।
हालांकि, कई रिमाइंडर भेजने के बावजूद कोई जवाब नहीं आया है। ऐसे में केंद्र इस समय कोई अंतिम रिपोर्ट या स्थिति स्पष्ट नहीं कर सका।
इसके बाद अदालत ने अपने फैसले में यह माना कि जब तक केंद्र सरकार इस मामले पर ठोस कार्रवाई नहीं करती या स्पष्ट रिपोर्ट नहीं लाती, तब तक यह याचिका अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रखी जा सकती।
इसलिए अदालत ने इसे निस्तारित करने का निर्णय लिया। साथ ही, कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया कि यदि भविष्य में संबंधित रिपोर्ट प्राप्त होती है तो उसकी एक प्रति याचिकाकर्ता को दी जाए और अदालत में भी प्रस्तुत की जाए।
फैसला राहुल और कांग्रेस के लिए अस्थायी राहत
राहुल गांधी की नागरिकता को लेकर उठे विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानूनी प्रक्रिया के आधार पर स्पष्ट रूप से कहा कि बिना किसी समयसीमा और ठोस रिपोर्ट के याचिका को लंबित रखना तर्कसंगत नहीं है।
इस फैसले को राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए एक अस्थायी राहत के रूप में देखा जा रहा है, जबकि याचिकाकर्ता विग्नेश शिशिर के लिए यह एक असंतोषजनक परिणाम हो सकता है।
हालांकि, कोर्ट द्वारा दी गई छूट से यह संकेत मिलता है कि मामला पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है और यदि पर्याप्त प्रमाण और वैधानिक आधार हों, तो इसे अन्य मंचों पर पुनः उठाया जा सकता है।
अब यह केंद्र सरकार और याचिकाकर्ता पर निर्भर करता है कि वे आगे किस दिशा में इस मुद्दे को ले जाते हैं।
You may also like
-
देश में 11 साल से अघोषित आपातकाल, लोकतंत्र पर खतरनाक हमला- कांग्रेस
-
इमरजेंसी के 50 साल: PM मोदी बोले- ये संविधान हत्या दिवस, कांग्रेस की तानाशाही मानसिकता आज भी ज़िंदा
-
50 Years of Emergency: 50 साल पहले आज के दिन ही देश ने झेला था आपातकाल
-
हायर एजुकेशन इम्पैक्ट ग्लोबल रैंकिंग में KIIT DU भारत में 5वें स्थान पर
-
लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है… इमरजेंसी के 50 साल पर बोले अमित शाह