इंदौर। हिंदुस्तान में अखबारों की आज़ादी खतरे है। ये भी कह सकते हैं बिक चुकी है। 2014 से अब तक अख़बारों की आवाज लगभग बंद हो चुकी है। इनमे से बड़े अखबार समूहों ने राष्ट्रवाद की चादर ओढ़ कर खबरों को ढंकने का काम शुरू कर दिया है। पॉजिटिव अखबार के नाम पर भी सच दबाकर सिर्फ खूबसूरती परोसी जा रही है। जो वेबसाइट और अखबार सच लिखते रहे उन्हें डराकर, उनकी आर्थिक जड़ों को काटकर खामोश कर दिया गया। बाकी जो ‘भांडगीरी ‘ को राजी हुए उन्हें उसकी भरपूर कीमत मिली। ऐसे दौर में ऑस्ट्रेलिया के अख़बारों ने एक साथ सरकार के खिलाफ बोलकर प्रेस की आज़ादी का बड़ा आंदोलन खड़ा किया। हिंदुस्तान में ये संभव नहीं दिखता पर पत्रकारिता को ज़िंदा रखने वाले जो कुछ लोग अभी भी मीडिया में हैं उन्हें ये ऑस्ट्रेलिया के ये प्रयोग ताकत देगा।
एक असाधारण घटना में ऑस्ट्रेलिया में सोमवार को अखबारों ने अपना पहला पन्ना काला छापा है। सभी अखबारों ने एकजुटता दिखाते हुए अपने पहले पन्ने पर छपे शब्दों को काली स्याही से पोत दिया है और उन पर एक लाल मुहर लगा दी जिस पर लिखा है-सीक्रेट। अखबारों का कहना है कि सरकार मीडिया पर लगाम लगाने की कोशिश कर रही है। उनका आरोप है कि ऑस्ट्रेलियाई सरकार का कठोर कानून उन्हें लोगों तक जानकारियां पहुंचाने से रोक रहा है। अखबारों के मुताबिक राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों की वजह से रिपोर्टिंग पर अंकुश लगाया जा रहा है और देश में गोपनीयता की संस्कृति बन गई है।
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