मुस्लिमों में अधिक कटटर दिखने की होड़ लगी है, हिंदुस्तान में भी बहुसंख्यक इसी दिशा में बढ़ रहे हैं। यदि हम नहीं सम्भलें तो मुश्किल होगी। ये गणित भी भूल जाइये कि आतंकवाद के लिए बड़ी आबादी की जरुरत है, ये काम दर्जन भर लोग भी कर सकते हैं।
सुनील कुमार (वरिष्ठ पत्रकार)
पाकिस्तान के पेशावर में एक मस्जिद पर सोमवार को आत्मघाती हमला हुआ। हमलावर ने अपनी विस्फोटक जैकेट के धमाके से मस्जिद की इमारत का एक हिस्सा भी गिरा दिया, और 83 लोगों की मौत की खबर है। पुलिस लाईन की इस मस्जिद में दोपहर को नमाज पढऩे इकठ्ठा हुए अधिकतर लोग पुलिस के थे, और मारे जाने वाले लोग भी वही हैं।
यह इलाका पेशावर का सबसे अधिक हिफाजत वाला इलाका माना जाता है। वहां के धार्मिक-आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। पाकिस्तान का यह संगठन पड़ोस के अफगानिस्तान के तालिबानियों के साथ तालमेल से काम करता है, और अफगान सरकार से पाकिस्तान की कुछ सरहदी मुद्दों को लेकर तनातनी भी चल रही है। टीटीपी नाम का यह संगठन पाकिस्तान में अधिक कट्टर इस्लामी कानूनों को लागू करने के लिए हथियारबंद आंदोलन चलाता है।
पाकिस्तान लगातार धार्मिक कट्टरता वाले आतंकी हमलों का शिकार होते रहता है। हर बरस ऐसे कई बड़े हमले होते हैं जिनमें सैकड़ों लोग मारे जाते हैं। दो-चार मौतों की तो खबर भी मुल्क से बाहर नहीं जाती। यह पाकिस्तान अभी पौन सदी पहले तक आज के हिन्दुस्तान का एक हिस्सा था, और अंग्रेजों ने जाते-जाते इसे दो मुल्कों में बांट दिया था।
तब से लेकर अब तक पाकिस्तान धर्म के आधार पर चलने वाला एक देश रहा, और आतंकी हमलों से परे भी पाकिस्तान की आम जिंदगी में धार्मिक कट्टरता हर दिन अपना दखल रखती है। वहां पर न सिर्फ गैरमुस्लिम लोग, बल्कि मुस्लिम समुदाय के भीतर के कुछ ऐसे सम्प्रदायों के लोग जो कि कट्टर इस्लामियों को पसंद नहीं आते हैं, वे भी आए दिन मारे जाते हैं।
यह तो बात हुई मौतों के आंकड़ों की, लेकिन इससे परे भी रोजाना की सामाजिक जिंदगी में धार्मिक कट्टरता हिंसा पैदा करती ही रहती है। आए दिन वहां से खबरें आती हैं कि किसी ईसाई को मारा गया, तो किसी हिन्दू लडक़ी का अपहरण करके उसे मुस्लिम बनाकर उससे शादी कर ली गई।
यह धर्म का एक आम मिजाज है कि वह कट्टरता की तरफ बढ़ते ही चलता है। जिस तरह किसी धार्मिक कार्यक्रम या धर्मस्थल के लाउडस्पीकर लगातार तेज होते जाते हैं, क्योंकि उनके आम हल्ले से लोगों पर असर होना बंद सा होने लगता है, इसलिए वे अधिक तेज होकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते रहना चाहते हैं।
पाकिस्तान में इस धार्मिक कट्टरता ने पहले तो देश में सभी धर्मों की बराबरी खत्म की, बहुसंख्यक धर्म ने देश पर अपना एकाधिकार जमाया, आसपास के देशों में भी बढ़ती चली गई धार्मिक कट्टरता का असर हुआ, और पड़ोस के हिन्दुस्तान की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी के खिलाफ पाकिस्तान में जैसे मजहबी फतवे तैरते रहे, उनसे भी वहां की जनता का दिमाग हिन्दू विरोधी होते गया, और नतीजतन वह मुस्लिम कट्टरपंथी भी होते गया।
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यह कहानी सिर्फ पाकिस्तान की नहीं है, दूसरी जगहों पर भी धार्मिक कट्टरता और हिंसा साथ-साथ आगे बढ़ते हैं। हिन्दुस्तान में आज हिन्दू बहुसंख्यक हैं, और वे एक साम्प्रदायिक सोच की आग में झोंक भी दिए जा रहे हैं। उन्हें एक रंग को हिन्दू रंग मान लेने और देश में साम्प्रदायिक नफरत फैलाने के फिजूल के काम में झोंक दिया गया।
फिर बाद में लोगों ने सैकड़ों वीडियो निकालकर याद दिलाया कि एक हिन्दू अभिनेत्री ने अपने हिन्दू बदन पर जो भगवा-केसरिया बिकिनी पहनी थी, वैसी भगवा-केसरिया बिकिनी और दूसरे उत्तेजक कपड़े पहनी हुई अभिनेत्रियों के साथ निहायत ही फूहड़ और अश्लील डांस करते हुए भाजपा के बड़े-बड़े सांसद फिल्में करते आए हैं।
बेशरम रंग का यह मुद्दा छेडऩा खुद भाजपा को भारी पड़ा क्योंकि उसके अपने लोगों के इसी बेशरम रंग के भुलाए जा चुके सैकड़ों वीडियो फिर ताजा हो गए, लोगों को समझ आ गया कि धार्मिक रंग के नाम पर एक फिजूल की नफरत फैलाई जा रही थी, और एक मुस्लिम अभिनेता शाहरूख खान की पठान नाम की फिल्म हिन्दुस्तान के हिन्दू बहुसंख्यक दर्शकों के बीच इतिहास की सबसे बड़ी हिट भी हो गई।
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पाकिस्तान को देखकर भी हिन्दुस्तान में धर्मान्धता फैलाने पर आमादा लोगों को अगर कोई सबक नहीं मिल रहा है, तो किसी दिन उन्हें कोई धमाका मिल सकता है। हिंसा को लगातार बढ़ाते जाने से वह किसी समस्या का समाधान नहीं होती, वह और बड़ा खतरा बन जाती है, हिन्दुस्तान में आज यही होते हुए दिख रहा है।
देश के लोग इतने खाली और बेकार बैठे हैं, उनमें मनोबल और महत्वाकांक्षा की इतनी कमी है कि वे धर्म के नाम पर अपने पीढिय़ों के पड़ोसी का सिर तोड़ देने के लिए तैयार हो रहे हैं। आज अगर हिन्दुस्तान में चुनाव जीतने के लिए कोई हिन्दू वोटों का इस तरह से ध्रुवीकरण करना चाहते हैं कि मुस्लिमों से नफरत करवाकर हिन्दू वोट पा लिए जाएं, तो वोट तो मिल सकते हैं, लेकिन शांति की गारंटी नहीं मिल सकती।
यह मानना सिवाय बेवकूफी और क्या होगा कि 140 करोड़ आबादी में 20 करोड़ मुस्लिम, दसियों करोड़ दलित, दसियों करोड़ आदिवासी, इन सबको प्रताडि़त करके, सबको कुचलकर, सब पर एक आक्रामक हिन्दुत्ववादी जीवनशैली लादकर इस देश को चैन से रखा जा सकता है।
लोगों को पाकिस्तान के आज के मजहबी आतंक के साथ हिन्दुस्तान की तुलना कुछ नाजायज लग सकती है, लेकिन लोगों को अगर भविष्य के लिए, आने वाली पीढिय़ों के लिए कोई सबक लेना है, तो वह अपने से अधिक खतरा झेल रहे देशों को देखकर ही लिया जा सकता है।
आज हिन्दुस्तान का रूख जिस तरफ है, वह रूख बहुत खतरनाक है, और वह रूख पाकिस्तान जैसे ही किसी भविष्य की ओर इशारा करता है। यह भी समझने की जरूरत है कि आतंकी हमलों के लिए बराबरी की आबादी जरूरी नहीं होती है, दर्जन भर लोग भी दसियों लाख की आबादी पर आतंकी हमले कर सकते हैं, लोगों को थोक में मार सकते हैं।
इससे बचने और बचाने का अकेला तरीका यही है कि देश के लोगों में धार्मिक कट्टरता खत्म की जाए, धर्मान्धता खत्म की जाए, धर्म के नाम पर हिंसा को मंजूरी देना खत्म किया जाए, और कानून के राज को सबसे ऊपर माना जाए। हिन्दुस्तान आज ऐसी कुछ बुनियादी जरूरतों से खिलवाड़ करते दिख रहा है, इसके नतीजे में आज तो धार्मिक ध्रुवीकरण से धार्मिक जनगणना की तरह के चुनावी नतीजे मिल रहे हैं, लेकिन चुनावों से परे रोज की जिंदगी एक खतरनाक मंजिल की तरफ बढ़ भी रही है। यह भी नहीं समझना चाहिए कि हिन्दुस्तान जैसे देश में धार्मिक आतंक हिन्दू-मुस्लिम होकर खत्म हो जाएगा, जैसा कि पाकिस्तान में देखने मिल रहा है, एक धर्म के भीतर भी दो समुदाय एक-दूसरे को थोक में मार सकते हैं।