Nishant Kumar In Bihar Election: बिहार की राजनीति हमेशा से अप्रत्याशित मोड़ों के लिए जानी जाती रही है।
कभी गठबंधन बनते हैं तो कभी टूटते हैं, कभी पुराने चेहरे नए अवतार में लौटते हैं तो कभी नई पीढ़ी राजनीति में उतरकर सियासी समीकरण बदल देती है।
इस बार भी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले ऐसा ही एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम चर्चा में है।
राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के चुनावी मैदान में उतरने की संभावना।
सूत्रों के हवाले से आई खबरों ने न सिर्फ जनता दल यूनाइटेड (JDU) के भीतर हलचल मचा दी है, बल्कि बिहार के सियासी गलियारों में भी नई बहस को जन्म दे दिया है।
सवाल यह उठ रहा है कि क्या नीतीश कुमार अब अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी की तैयारी कर रहे हैं?
या फिर यह किसी बड़े राजनीतिक समीकरण का हिस्सा है जिसमें बीजेपी की भी अहम भूमिका हो सकती है?
हरनौत सीट से निशांत के उतरने की चर्चा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के समर्थकों और जेडीयू नेताओं के बीच इन दिनों एक ही चर्चा जोरों पर है।
नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार को नालंदा जिले की हरनौत विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाया जाए।
यह सीट नीतीश कुमार के लिए बेहद खास है क्योंकि यहीं से उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी।
नीतीश कुमार 1985 से 1989 तक हरनौत सीट से विधायक रह चुके हैं। यह उनका राजनीतिक गढ़ माना जाता है।
जेडीयू के स्थानीय नेताओं ने हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर यही मांग रखी है।
निशांत कुमार को अब इस सीट से मैदान में उतारा जाए, ताकि नीतीश की राजनीतिक विरासत को “परिवार के भीतर” भी एक उत्तराधिकारी मिले।
हालांकि, निशांत कुमार अब तक राजनीति से दूरी बनाए हुए हैं। वे निजी जीवन में अपेक्षाकृत लो-प्रोफाइल रहे हैं।
लेकिन जेडीयू के भीतर यह मांग अब जोर पकड़ रही है कि उन्हें सार्वजनिक जीवन में सक्रिय किया जाए।
जेडीयू की बैठक और राजनीतिक मंथन
इसी बीच, 9 अक्टूबर को मुख्यमंत्री आवास पर JDU की एक अहम बैठक बुलाई गई है।
इस बैठक का एजेंडा विधानसभा चुनाव 2025 के लिए संभावित उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा करना है।
सूत्रों के अनुसार, सुपौल, नालंदा, राजगीर जैसी सीटों पर नामों को लेकर मंथन होना है।
नालंदा से श्रवण कुमार, राजगीर से कौशल किशोर, सुपौल से ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव, पिपरा से रामविलास कामत, और निर्मली से अनिरुद्ध प्रसाद यादव के नामों पर चर्चा होगी।
लेकिन इस बैठक का सबसे अहम बिंदु निशांत कुमार का नाम है। यदि उन्हें हरनौत से उम्मीदवार बनाए जाने पर सहमति बनती है।
तो यह कदम बिहार की राजनीति में बड़ा संदेश देगा — कि अब नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे के हाथों सौंपने की तैयारी में हैं।
राजतिलक की चर्चा, विपक्ष की प्रतिक्रिया
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि निशांत कुमार की संभावित एंट्री सिर्फ एक चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि नीतीश कुमार के उत्तराधिकार की पहली औपचारिक झलक हो सकती है।
विपक्ष, खासतौर पर राजद (RJD), इस मुद्दे पर हमला बोल सकता है, क्योंकि नीतीश कुमार ने हमेशा परिवारवाद की राजनीति की आलोचना की है।
अगर अब वे अपने बेटे को मैदान में उतारते हैं, तो यह उनके पुराने बयानों के खिलाफ जाएगा और विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है।
राजद की तरफ से पहले ही यह कहा जा चुका है कि नीतीश कुमार अब थक चुके हैं और अपने बेटे को तैयार कर रहे हैं।
वहीं, जेडीयू के समर्थक इसे “नई पीढ़ी का उदय” और “नेतृत्व की निरंतरता” कहकर देख रहे हैं।
BJP का ‘निशांत प्लान’, अंदरखाने की रणनीति
सिर्फ जेडीयू ही नहीं, बल्कि अब खबरें यह भी आ रही हैं कि बीजेपी भी निशांत कुमार को राजनीति में लाने की रणनीति पर काम कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी के रणनीतिकारों ने ‘प्लान A’ और ‘प्लान B’ दोनों तैयार किए हैं।
प्लान A के तहत — बिहार चुनाव 2025 नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
प्लान B में — चुनाव के बाद जब एनडीए की सरकार बन जाएगी, तब बीजेपी नीतीश कुमार को सुझाव देगी कि निशांत कुमार को बतौर उप मुख्यमंत्री (Deputy CM) प्रोजेक्ट किया जाए।
बीजेपी का मानना है कि निशांत कुमार के आने से न केवल जेडीयू की एकता बनी रहेगी, बल्कि नीतीश कुमार के वोट बैंक — विशेष रूप से कुर्मी, कुशवाहा और अतिपिछड़ा वर्ग पर पकड़ और मजबूत होगी।
बीजेपी के सर्वे के अनुसार, जनता आज भी नीतीश कुमार पर भरोसा करती है और अगर उनकी जगह कोई ‘यंग फेस’ उनकी विरासत संभाले, तो गठबंधन को फायदा मिल सकता है।
बीजेपी का मानना है कि राजनीति में जब निशांत कुमार का प्रवेश हो जाएगा तो वह पार्टी भी चला लेंगे। हालांकि बीजेपी के इस प्लान की निर्भरता अब सीएम नीतीश कुमार के हाथ में है।
परिवारवाद बनाम स्थिरता की बहस
नीतीश कुमार राजनीति में हमेशा “कामकाज की पारदर्शिता” और “परिवारवाद से दूरी” के लिए जाने जाते रहे हैं।
अगर वे अपने बेटे निशांत को चुनावी मैदान में उतारते हैं, तो यह एक नई राजनीतिक बहस को जन्म देगा कि क्या यह “परिवारवाद” है या “नेतृत्व की निरंतरता”?
जहां एक ओर तेजस्वी यादव और लालू परिवार पर परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं, वहीं अब अगर निशांत भी राजनीति में आते हैं, तो विपक्ष नीतीश कुमार को उसी पैमाने पर कस सकता है।
लेकिन दूसरी तरफ, जेडीयू समर्थक इसे “नेतृत्व की अगली पीढ़ी को तैयार करने” की जरूरत के तौर पर देखते हैं।
नालंदा की अहमियत और राजनीति
हरनौत सीट सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र नहीं, बल्कि नीतीश कुमार की राजनीतिक जड़ों का प्रतीक है।
अगर निशांत कुमार को इस सीट से चुनावी मैदान में उतारा जाता है, तो यह संदेश जाएगा कि नीतीश कुमार अब अपने राजनीतिक गढ़ से अपने बेटे को लॉन्च कर रहे हैं।
यह कदम भावनात्मक और रणनीतिक — दोनों स्तरों पर असर डालेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह फैसला बिहार की राजनीति में “पीढ़ी परिवर्तन” की शुरुआत हो सकता है।
जहां एक ओर लालू परिवार में तेजस्वी और तेजप्रताप यादव दूसरी पीढ़ी का चेहरा हैं, वहीं अब नीतीश परिवार में निशांत उसी भूमिका में आ सकते हैं।
एक सीट, कई समीकरण
नीतीश कुमार की राजनीति हमेशा व्यवहारिकता और परिणाम पर केंद्रित रही है।
अगर वे अपने बेटे निशांत को मैदान में उतारते हैं, तो यह सिर्फ भावनात्मक फैसला नहीं होगा, बल्कि एक सुविचारित राजनीतिक रणनीति भी होगी।
यह कदम जेडीयू को नई ऊर्जा देगा, पार्टी को नेतृत्व के संकट से उबारेगा और बिहार की राजनीति में “नई पीढ़ी बनाम पुरानी राजनीति” की नई बहस शुरू करेगा।
लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही रहेगा — क्या नीतीश कुमार, जो हमेशा परिवारवाद के विरोधी रहेअब अपने बेटे के लिए वही रास्ता खोलेंगे, जिसे वे दूसरों में गलत बताते रहे हैं?
आने वाले कुछ दिनों में जेडीयू की बैठक और नीतीश कुमार का फैसला इस सवाल का जवाब देगा।
लेकिन इतना तय है कि निशांत कुमार का नाम अब बिहार की सियासत में सबसे चर्चित नामों में शामिल हो चुका है।
अब नीतीश कुमार के अंतिम फैसले का इंतजार है, जो बिहार की सियासत को एक नया मोड़ दे सकता है।
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