पंकज मुकाती (संपादक पॉलिटिक्सवाला )
नौ दिन तक दुर्गोत्सव की धूम रही। इसके पहले पितरों को श्रद्धांजलि। उससे पहले श्री गणेश उत्सव। यानी पिछले एक महीने से हिंदुस्तान आस्था और श्रृद्धा में लीन है। हमारी आस्था इस कदर लबालब है कि मानो हम सभी देवताओं को अपने मन में धारण कर लेंगे। हकीकत में आस्था, श्रद्धा सब एक जलसे के बाद
कैद कर दी जाती है।
एक साल बाद हम फिर उसी आस्था की चुनरी सर पर बांधकर वही सब दोहराते हैं। बरसो-बरस विजयादशमी मनाने रावण के पुतले को दहन करने के बावजूद हमारा मानस क्या राम से जुड़ पाया। राम मंदिर, रामराज्य की आवाज उठाने, राम आगमन पर दीपोत्सव मनाने वाले हम लोग क्या कभी राम के किसी भी स्वरुप को जीने का साहस कर सके।
राम को समझने के लिए राम को पढ़ना और धारण करना होगा सिर्फ रावण दहन से राम नहीं बना जा सकता। राम के उदार चरित्र को समझने के लिए सुन्दर काण्ड की इस चौपाई को समझना होगा इसमें उदारता और लोकतंत्र दोनों के सबक हैं।
सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारि।
मम पन सरनागत भयहारी।।
राम के द्वारा शत्रु पक्ष के प्रति अपनायी गई नीति की मिसाल है यह। राम ने विभीषण को बिना किसी लाभ के शरण दी थी। वह तो बाद में विभीषण उनके लिए उपयोगी बना।विभीषण राम की शरण में आए हैं, मंथन चल रहा है कि इन पर भरोसा किया जाए या नहीं।
सुग्रीव भी तय नहीं कर पा रहे हैं न जामवंत। कई वानर वीर तो विभीषण को साथ लेने के घोर विरोधी है, उनका कहना है कि राक्षसों को कोई भरोसा नहीं। क्या पता रावण ने कोई भेदिया भेजा हो। राम को विभीषण की बातों से सच्चाई तो झलकती है, लेकिन राम अपनी ही राय थोपना नहीं चाहते।
वे चुप बैठे सब को सुन रहे हैं। सिर्फ बालि का पुत्र अंगद ही इस राय का है कि विभीषण पर भरोसा किया जाए। तब राम ने हनुमान की ओर देखा। हनुमान अत्यंत विनम्र स्वर में बोले- “प्रभु आप हमसे क्यों अभिप्राय मांगते हैं?
स्वयं गुरु वृहस्पति भी आपसे अधिक समझदार नहीं हो सकते। लेकिन मेरा मानना है कि विभीषण को अपने पक्ष में शामिल करने में कोई डर नहीं है। क्योंकि यदि वह हमारा अहित करना चाहता तो छिपकर आता, इस प्रकार खुल्लम-खुल्ला न आता।
हमारे मित्र कहते हैं कि शत्रु पक्ष से जो इस प्रकार अचानक हमारे पास आता है, उस पर भरोसा कैसे किया जाए! अब राम चाहते तो विभीषण के बारे में अपना फैसला सुना देते, लेकिन उन्होंने अपने समस्त सहयोगियों की राय ली।
यही उनकी महानता है और सबकी राय को ग्रहण करने की क्षमता। वे वानर वीरों को भी अपने बराबर का सम्मान देते हैं। इस चौपाई का अर्थ भी यही है जो हमारी शरण में है उसको भयमुक्त रखना हमारी जिम्मेदारी है। आज देश में दोस्ती-दुश्मनी का फैसला जाति, धर्म के आधार पर हो रहा है। वैमनस्यता को बढ़ावा दिया जा रहा है।
सत्ताधीश किसी की सुनना नहीं चाहते वे सिर्फ अकेले फैसले ले रहे हैं। जनता की तो छोड़िये उनके मंत्री, अफसरों को भी कोई जानकारी नहीं रहती। बस सीधे फैसले आते हैं। ऐसे बहुत से फैसले देश भुगत रहा है। पिछले 70 बरसों में ऐसे कई फैसले हुए। जरुरी है हम रामचरित को मानस में जगह दें।