Indore MY Hospital

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इंदौर एमवाय अस्पताल में बड़ा लापरवाही कांड उजागर: 2 नवजातों की मौत, चूहों ने कुतरे थे हाथ-पैर

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Indore MY Hospital: इंदौर के सबसे बड़े सरकारी में लापरवाही और अव्यवस्था की ऐसी तस्वीर सामने आई है, जिसने पूरे प्रदेश को हिला दिया है।

एमवाय अस्पताल (MYH) के एनआईसीयू (Neonatal Intensive Care Unit) में भर्ती दो नवजातों की मौत हो चुकी है।

आरोप है कि बच्चों के हाथ-पैर चूहों ने कुतर दिए थे, जिसके चलते उनकी हालत बिगड़ी और वे जिंदगी की जंग हार गए।

मामले के सामने आते ही मानव अधिकार आयोग, चिकित्सा शिक्षा विभाग और राज्य सरकार सक्रिय हो गई।

अस्पताल प्रबंधन ने मौत को चूहों से जोड़ने से इनकार करते हुए इंफेक्शन को वजह बताया है।

लेकिन, इन तथ्यों और लापरवाही अस्पताल की व्यवस्था को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है।

पहली मौत मंगलवार को, दूसरी बुधवार को

पहली घटना मंगलवार को सामने आई, जब खंडवा निवासी लक्ष्मीबाई की नवजात बच्ची की मौत हो गई।

बच्ची का पोस्टमॉर्टम कराया गया है और रिपोर्ट का इंतजार है।

बुधवार को देवास निवासी रेहाना के नवजात बेटे ने दम तोड़ दिया।

परिवार ने पोस्टमॉर्टम से इनकार कर शव को घर ले जाना उचित समझा।

दोनों ही बच्चों के हाथ-पैर पर चूहों के काटने के निशान थे।

परिजन और अस्पताल प्रबंधन आमने-सामने

परिजनों का आरोप है कि अस्पताल की लापरवाही और चूहों की मौजूदगी बच्चों की मौत का कारण है।

वहीं, अस्पताल प्रबंधन कह रहा है कि मौत इंफेक्शन की वजह से हुई है।

इस बीच सवाल यह भी उठ रहे हैं कि मरीजों की सुरक्षा के लिए ठोस इंतजाम क्यों नहीं किए गए?

आखिर अस्पताल परिसर में चूहों की संख्या पर काबू क्यों नहीं पाया जा सका?

मानव अधिकार आयोग का संज्ञान

मामले पर मानव अधिकार आयोग ने गंभीरता दिखाई है।

आयोग ने अस्पताल अधीक्षक को पत्र लिखकर एक महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं।

इसके साथ ही सरकार ने हाईलेवल कमेटी गठित की गई है।

जिसमें डॉ. एसबी बंसल, डॉ. शशि शंकर शर्मा, डॉ. अरविंद शुक्ला, डॉ. निर्भय मेहता, डॉ. बसंत निगवाल और नर्सिंग ऑफिसर सिस्टर दयावती दयाल को शामिल किया गया है।

तत्काल कार्रवाई: सस्पेंशन और जुर्माना

जैसे ही मामला उजागर हुआ, सरकार ने तत्काल कार्रवाई का ऐलान किया।

दो नर्सिंग ऑफिसर को सस्पेंड किया गया। नर्सिंग सुपरिटेंडेंट को हटाया गया

इसके अलावा शिशु रोग विभाग के HOD को नोटिस भी थमाया गया।

पेस्ट कंट्रोल एजेंसी पर 1 लाख रुपये का जुर्माना और टर्मिनेशन का नोटिस जारी किया गया।

बेहद गंभीर मामला- डिप्टी सीएम 

उपमुख्यमंत्री राजेंद्र शुक्ल ने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है।

उन्होंने माना कि यदि समय पर पेस्ट कंट्रोल होता तो चूहों की समस्या खड़ी नहीं होती।

उन्होंने भरोसा दिलाया कि दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा।

भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति न हो, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।

नर्सिंग स्टाफ में आक्रोश

नर्सिंग ऑफिसरों ने कार्रवाई पर आपत्ति जताई है।

उनका कहना है कि इसमें सीधे तौर पर उनका कोई दोष नहीं है।

जिम्मेदार वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई होनी चाहिए थी, लेकिन हमें बलि का बकरा बनाया गया।

जीतू पटवारी का हमला 

PCC चीफ जीतू पटवारी ने सोशल मीडिया X पर सरकार पर हमला बोला।

उन्होंने लिखा, बीजेपी के 22 साल का यह असली चेहरा है।

एमवाय में नवजातों को चूहों ने नहीं, भ्रष्टाचार ने मारा है। सरकार में हिम्मत है तो अधीक्षक पर कार्रवाई करें।

लेकिन वे सिर्फ छोटे कर्मचारियों को हटाएंगे। चूहों से ज्यादा दोषी यह भ्रष्ट व्यवस्था है।

और भी अस्पतालों में हैं चूहे

एमवाय अस्पताल ही नहीं, इसके आसपास के चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय, कैंसर अस्पताल, टीबी अस्पताल और चेस्ट सेंटर भी चूहों के कब्जे में हैं।

अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि बारिश से झाड़ियां उग आई हैं और चूहों के बिलों में पानी भर गया है, इसलिए वे वार्डों में घुसने लगे हैं।

लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि असली वजह मरीजों के अटेंडरों द्वारा वार्डों में लाई जाने वाली खाद्य सामग्री है। यही चूहों के लिए स्थायी भोजन स्रोत बन गई है।

वेटरनरी कॉलेज महू के प्रोफेसर ने बताया कि है कि अस्पतालों में चूहों को भोजन और दवाइयों से भरपूर एनर्जी मिलती है।

यही वजह है कि उनकी प्रजनन क्षमता तेजी से बढ़ती है। जब उन्हें खाना नहीं मिलता तो वे मरीजों का सामान या अंग कुतरने लगते हैं।

उनके अनुसार, लगातार पेस्ट कंट्रोल और अस्पतालों में खाद्य सामग्री पर रोक ही एकमात्र समाधान है।

1994 में पेस्ट कंट्रोल से मरे थे 12 हजार चूहे

एमवाय अस्पताल परिसर में पहले कई स्टाफ क्वार्टर थे।

नई यूनिट बनाने के लिए पिछले एक दशक में इनमें से 75% क्वार्टर तोड़े गए थे।

तब चूहों के ठिकाने खत्म हो गए थे और संख्या भी घटी थी। लेकिन अब हालात फिर वैसे ही हो गए हैं।

1994 में तत्कालीन कलेक्टर डॉ. सुधीरंजन मोहंती ने बड़े पैमाने पर चूहा मारो अभियान चलाया था।

10 दिन तक अस्पताल खाली कराकर 12 हजार चूहे मारे गए थे।

2014 में तत्कालीन कमिश्नर संजय दुबे के कार्यकाल में पेस्ट कंट्रोल से ढाई हजार चूहे मारे गए।

इसके बाद कोई ठोस अभियान नहीं चला और चूहों की संख्या बढ़ती रही।

अब 15 दिन में पेस्ट कंट्रोल का दावा

फिलहाल NICU में चूहों के आने-जाने वाले रास्ते प्लाईवुड लगाकर बंद किए गए हैं।

यूनिट में मौजूद दो नवजातों की लगातार निगरानी की जा रही है।

अस्पताल प्रशासन का दावा है कि अब हर 15 दिन में पेस्ट कंट्रोल होगा।

लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि समस्या का हल तभी होगा।

जब चूहों की लाइफ साइकिल पर लगातार नियंत्रण रखा जाए।

साथ ही मरीजों के लिए सख्त नियम बनाए जाएं कि वे वार्डों में खाने-पीने का सामान न लाएं।

जो भी हो इंदौर का एमवाय अस्पताल प्रदेश की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सुविधा है।

लेकिन वहां की इस लापरवाही ने स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल दी है।

दो नवजातों की मौत ने न केवल प्रशासन की जिम्मेदारी पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी उजागर कर दी है।

अब देखना होगा कि हाईलेवल कमेटी की जांच रिपोर्ट आने के बाद दोषियों पर कितनी कड़ी कार्रवाई होती है?

 

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