सत्ता के लिए कुछ भी करेगा। भाजपा अब इसी दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है। एक तरफ पूरे देश में लव जिहाद के खिलाफ कानून और मुस्लिमों से दूरी का अभियान चल रहा है , दूसरी तरफ जहां फायदा दिख रहा है, वहां मुस्लिमों को भाजपा गले लगा रही है। ईसाईयों को भी भाई मान रही है। यानी सत्ता के लिए चाल, चरित्र से दूरी अच्छी है।
उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने किसी मुसलिम को टिकट नहीं दिया। यहां के स्थानीय निकाय के चुनावों में भी मुस्लिमों को ख़ास तवज्जों नहीं मिलती है। अपनी नीति के उलट केरल के स्थानीय निकाय के चुनावों में भाजपा ने 100 से ज़्यादा मुस्लिम नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है।
मालूम हो कि कुछ दिन पहले ही कर्नाटक की बीजेपी सरकार के मंत्री केएस ईश्वरप्पा ने कहा था कि उनकी पार्टी किसी को भी टिकट दे देगी लेकिन किसी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाएगी। जबकि केरल और कर्नाटक पड़ोसी राज्य हैं।
केरल में 8, 10 और 14 दिसंबर को स्थानीय निकाय के चुनाव के लिए मतदान होगा। साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले केरल में लगभग 27 फ़ीसदी मुसलमान और 19 फ़ीसदी ईसाई हैं। बीजेपी ने 500 ईसाईयों और 112 मुस्लिमों को चुनाव में टिकट दिया है। राज्य में ईसाई और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी-ख़ासी संख्या को देखते हुए भाजपा ने सत्ता के लिए नीतियों से किनारा कर लिया।
राहुल पर भी किए थे वार
पिछले साल लोकसभा चुनाव के दौरान जब राहुल गांधी अमेठी के अलावा केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़ने पहुंचे थे, तो बीजेपी के नेताओं ने उन पर जमकर तीर चलाए थे। योगी आदित्यनाथ चुनावी सभाओं में कहते थे कि राहुल गांधी ऐसी सीट से चुनाव लड़ने गए हैं, जहां मुसलमान बहुसंख्यक हैं। लेकिन डेढ़ साल बाद बीजेपी उस राज्य में मुसलमानों को उम्मीदवार बना रही है।
केरल में सरकार बनाने का सपना
दक्षिण में जिन राज्यों में बीजेपी ख़ुद की सरकार चाहती है, उनमें केरल भी है। सबरीमला मंदिर के मुद्दे पर उसने पूरा जोर लगाया था और सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को लेकर भी विरोध दर्ज कराया था। केरल में आरएसएस की भी मजबूत उपस्थिति है, ऐसे में वहां चुनावी जीत हासिल करने का सपना बीजेपी लंबे वक़्त से देख रही है।