Bihar Voter List Revision: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुई वोटर लिस्ट की विशेष संशोधन प्रक्रिया (Special Intensive Revision – SIR) अब देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गई है।
इस प्रक्रिया के जरिए मतदाता सूची से लाखों लोगों के नाम हटाए जाने की आशंका को लेकर विभिन्न विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
याचिकाकर्ताओं की मांग है कि इस प्रक्रिया को तुरंत रोका जाए क्योंकि इससे गरीब, ग्रामीण, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदायों के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।
मुख्य याचिकाकर्ताओं में राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, महुआ मोइत्रा, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) जैसे संगठन और नेता शामिल हैं।
सुनवाई के लिए 10 जुलाई की तारीख तय
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए 10 जुलाई की तारीख तय की है।
सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के साथ अभिषेक मनु सिंघवी, शादाब फरासत और गोपाल शंकरनारायण ने इस मामले पर तत्काल सुनवाई की मांग की।
याचिकाकर्ताओं की मांग है कि इस संशोधन प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए।
उन्होंने कहा कि मामले की सुनवाई आज या कल की जाए क्योंकि चुनाव आयोग की ओर से निर्धारित समयसीमा बहुत कम है।
25 जुलाई तक की समय-सीमा में राज्य भर में बड़े पैमाने पर नाम हटाने की प्रक्रिया चल रही है।
विरोध में 9 जुलाई को विपक्ष का बिहार बंद
दूसरी ओर इस प्रक्रिया के खिलाफ INDIA गठबंधन (कांग्रेस, RJD, वाम दल आदि) ने मोर्चा खोल दिया है।
उनका कहना है कि यह एक तरह की “गुप्त NRC प्रक्रिया” है, जो मतदाताओं के अधिकारों को छीनने की साजिश है।
कांग्रेस ने इसे “वोटर अधिकारों की डकैती” बताया है।
पप्पू यादव ने 9 जुलाई को बिहार बंद का ऐलान किया है, जबकि तेजस्वी यादव ने महागठबंधन के तहत राज्यव्यापी चक्का जाम की चेतावनी दी है।
विपक्षी दल इसे अल्पसंख्यकों और पिछड़ों को वोटर सूची से हटाने की साजिश बता रहे हैं।
उनका तर्क है कि यह प्रक्रिया चुनावी निष्पक्षता को प्रभावित करेगी और “लेवल प्लेइंग फील्ड” को खत्म कर देगी।
गरीबों और अल्पसंख्यकों को हटाने की साजिश
5 जुलाई को गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने याचिका दाखिल कर बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण के चुनाव आयोग के आदेश को रद्द करने की मांग की है।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि चुनाव आयोग की हालिया प्रक्रिया से लाखों लोगों के मतदान अधिकार छिन सकते हैं।
खासकर वे लोग जो दस्तावेज नहीं जुटा सकते जैसे ग्रामीण, महिलाएं, प्रवासी मजदूर, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि चुनाव आयोग ने बिना उचित तैयारी के और अल्प समय में यह प्रक्रिया शुरू कर दी, जिससे लोगों को आवश्यक दस्तावेज जुटाने का समय नहीं मिल रहा।
ऐसे में यह पूरी प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), 325 और 326 (मतदान का अधिकार) का उल्लंघन है।
EC की सफाई, वैलिड वोटर का नाम नहीं कटेगा
विवाद बढ़ने के बाद भारत निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट किया वेरिफिकेशन का काम आर्टिकल-326 और लोक प्रतिनिधित्व कानून के दायरे में ही किया जा रहा है।
EC का कहना है कि किसी वैध मतदाता का नाम नहीं हटेगा, बल्कि फर्जी, मृतक, दोहराए गए और अवैध रूप से शामिल लोगों के नाम हटाए जाएंगे।
आयोग ने बताया कि 2003 में भी यही प्रक्रिया 31 दिन में पूरी की गई थी और इस बार भी उसी समयसीमा में इसे किया जा रहा है।
अब जानिए EC के निर्देश क्या हैं?
24 जून 2024 को चुनाव आयोग ने विशेष संशोधन प्रक्रिया के तहत आदेश जारी किया कि हर मतदाता को व्यक्तिगत गणना फॉर्म भरना होगा।
1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को नागरिकता प्रमाणित करने के लिए जन्म प्रमाणपत्र, पासपोर्ट या शैक्षिक दस्तावेज देना होगा।
राज्य से बाहर रहने वालों को भी यह फॉर्म भरना अनिवार्य है। फॉर्म आयोग की वेबसाइट से डाउनलोड कर 26 जुलाई तक जमा करना है।
यदि कोई व्यक्ति यह प्रक्रिया पूरी नहीं करता, तो उसका नाम मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा।
EC के दो प्रमुख तर्क
- डेढ़ लाख एजेंट कार्यरत: लगभग 5 लाख बूथ लेवल एजेंट (BLA) इस प्रक्रिया में लगे हैं, जो सभी राजनीतिक दलों से जुड़े हैं। इनका काम सूची को पारदर्शी बनाना है।
- विफलता की संभावना नहीं: एक BLA एक दिन में 50 आवेदन तक BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) के पास जमा कर सकता है। इस प्रकार रोज़ाना 75 लाख फॉर्म भरे जा सकते हैं और 89 करोड़ वोटरों की सूची एक महीने में वेरिफाई हो सकती है।
कुल कितने कर्मचारी लगे हैं?
2,25,590 कर्मचारी और स्वयंसेवक इस काम में शामिल हैं। इनमें 81,753 प्रशासनिक कर्मचारी और 1,43,837 स्वयंसेवक हैं। कुल 98,498 मतदान केंद्रों पर BLO के नेतृत्व में काम जारी है।
क्या है विपक्ष के प्रमुख सवाल?
- अगर 2003 से अब तक बिहार में 5 चुनाव हो चुके हैं, तो क्या वे सारे गलत थे?
- इतनी अहम प्रक्रिया की घोषणा जून के अंत में क्यों की गई?
- जब आधार कार्ड पहचान का मानक है, तो अब बर्थ सर्टिफिकेट क्यों मांगा जा रहा है?
- जिनके पास डॉक्यूमेंट नहीं हैं, उनका नाम लिस्ट से हटेगा—क्या ये लोकतांत्रिक है?
- बाढ़ प्रभावित इलाकों में रहने वाले लोग इस प्रक्रिया में कैसे शामिल होंगे?
- बाहर काम करने वाले लाखों बिहारी मतदाता अपने घर न होने के कारण सूची से बाहर हो सकते हैं।
बहरहाल, बिहार में मतदाता सूची का यह विशेष संशोधन अब राजनीतिक विवाद बन चुका है।
एक तरफ आयोग इसे आवश्यक कदम बता रहा है, वहीं विपक्ष इसे लोकतंत्र पर हमला करार दे रहा है।
अब सबकी निगाहें 10 जुलाई की सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं।
देखना होगा कि कोर्ट क्या रुख अपनाता है—क्या यह प्रक्रिया रुकती है, टलती है या फिर अपने मौजूदा स्वरूप में जारी रहती है।
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