Operation Sindoor Delegations: 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत सरकार ने “ऑपरेशन सिंदूर” से पाकिस्तान को करारा सबक सिखाया है।
अब भारत ने दुनिया के 33 देशों में 7 सर्वदलीय संसदीय डेलिगेशन भेजने का फैसला किया है।
कुल 59 सांसदों को शामिल किया गया है, जिनमें से दो डेलिगेशन मंगलवार को रवाना हो रहे हैं।
इन दोनों टीमों में 17 सांसद शामिल हैं। इनका नेतृत्व जेडीयू सांसद संजय झा और शिवसेना सांसद श्रीकांत शिंदे करेंगे।
इस अभियान का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर यह स्पष्ट करना है कि पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के पीछे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन TRF (द रेजिस्टेंस फ्रंट) का हाथ था।
इसके साथ ही भारत यह संदेश देना चाहता है कि अब वह सीमापार आतंकवाद को लेकर उदासीन रवैया नहीं अपनाएगा, बल्कि प्रो-एक्टिव कार्रवाई करेगा।
क्या है ऑपरेशन सिंदूर?
दरअसल, ऑपरेशन सिंदूर दो चरणों में चलाया गया एक जवाबी सैन्य और कूटनीतिक अभियान है।
पहले चरण में 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत के बाद भारत ने 7 मई को पाकिस्तान और POK में मौजूद 9 आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल एयरस्ट्राइक की।
इस कार्रवाई में लगभग 100 आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई। फिर 10 मई को भारत और पाकिस्तान के बीच शाम 5 बजे से सीजफायर पर सहमति बनी।
अब इसका दूसरा चरण कूटनीतिक मोर्चा शुरू हो गया है, जिसे “ऑपरेशन सिंदूर” का नाम दिया गया है।
इस चरण में भारत अपने सांसदों और पूर्व राजनयिकों को दुनिया भर में भेजकर ऑपरेशन सिंदूर का मकसद और पाकिस्तान का असली चेहरे के बारे में बताएगा।
विदेश सचिव की सांसदों को ब्रीफिंग
मंगलवार को विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने डेलिगेशन में शामिल सांसदों को विस्तृत ब्रीफिंग दी। उन्हें ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि, रणनीतिक उद्देश्य और अपेक्षित संदेशों के बारे में बताया गया।
सांसदों को यह स्पष्ट निर्देश दिया गया कि वे किन-किन मुद्दों को प्राथमिकता दें और किन प्रमुख बिंदुओं पर विदेशी सरकारों और नीति-निर्माताओं का ध्यान केंद्रित करें।
ऑपरेशन सिंदूर के पांच प्रमुख संदेश
विदेश भेजे जा रहे सांसद 5 प्रमुख संदेश लेकर जा रहे हैं, जिन्हें वे संबंधित देशों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे:
- आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस: ऑपरेशन सिंदूर केवल आतंकियों पर नहीं, बल्कि उनके बुनियादी ढांचे पर केंद्रित था। यह दुनिया को यह दिखाने की कोशिश है कि भारत किसी भी आतंकवादी गतिविधि को बर्दाश्त नहीं करेगा।
- पाकिस्तान आतंकवाद का प्रायोजक: सांसद अपने साथ दस्तावेजी सबूत लेकर जा रहे हैं, जिनमें TRF की भूमिका स्पष्ट की गई है। साथ ही, पिछले हमलों की पूरी जानकारी भी साझा की जाएगी।
- भारत का जिम्मेदार और संयमित व्यवहार: भारत ने इस कार्रवाई के दौरान यह सुनिश्चित किया कि किसी निर्दोष पाकिस्तानी नागरिक को नुकसान न पहुंचे। जब पाकिस्तान ने सीजफायर की अपील की, तो भारत ने उसे मान लिया।
- दुनिया आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो: सांसद अन्य देशों से आतंकवाद के खिलाफ सहयोग और समर्थन की अपील करेंगे। यह अनुरोध भी किया जाएगा कि भारत-पाक विवाद को आतंकवाद के विरुद्ध एक वैश्विक संघर्ष के रूप में देखा जाए।
- भारत की बदली हुई नीति: भारत अब सीमा पार से आने वाले खतरे को लेकर रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक रणनीति अपनाएगा। आने वाले समय में भारत किसी भी आतंकी खतरे को उभरने से पहले ही निष्क्रिय करने का प्रयास करेगा।
राजनीतिक विवाद भी आया सामने
हालांकि, यह अभियान राष्ट्रीय हितों के लिए उठाया गया कदम है, लेकिन इसमें राजनीतिक विवाद भी देखने को मिला।
तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद यूसुफ पठान का नाम पहले लिस्ट में शामिल था, लेकिन पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी की नाराजगी के बाद उनका नाम हटाकर अभिषेक बनर्जी को शामिल किया गया।
वहीं कांग्रेस ने आरोप लगाया कि उनके द्वारा दिए गए चार नामों में से सिर्फ आनंद शर्मा को डेलिगेशन में शामिल किया गया।
अन्य नाम गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन और अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग को नजरअंदाज कर दिया गया।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इसे मोदी सरकार की “राजनीतिक संकीर्णता” बताया।
पिछली सरकारों ने भी डेलिगेशन विदेश भेजे
इस प्रकार के डेलिगेशन भेजने की परंपरा नई नहीं है।
1994 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कश्मीर मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में भारत का पक्ष रखने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एक डेलिगेशन जिनेवा भेजा था।
हीं 2008 के मुंबई हमलों के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को विभिन्न देशों में भेजा था, जिससे पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बन सके।
ऑपरेशन सिंदूर भारत की एक नई कूटनीतिक रणनीति का प्रतीक है, जिसमें सरकार आतंकवाद के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ वैश्विक समर्थन जुटाने पर भी बल दे रही है।
यह पहल केवल एक जवाबी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक ठोस संदेश है कि भारत अब अपने नागरिकों की सुरक्षा और राष्ट्रीय सम्मान को लेकर किसी भी सीमा तक जा सकता है।
यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत के इन प्रयासों को समर्थन देता है, तो न केवल पाकिस्तान पर दबाव बढ़ेगा, बल्कि वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता का एक नया अध्याय भी शुरू होगा।
कहा यह भी जा रहा है कि पाकिस्तान के खिलाफ सबूतों के साथ भारता अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहा है।
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