Tejashwi Yadav Bihar CM Face: बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मियां तेज होती जा रही हैं।
राज्य में सत्ताधारी एनडीए के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि उनके नेता तेजस्वी यादव ही मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे।
हालांकि, महागठबंधन की अहम बैठक में भी तेजस्वी यादव को औपचारिक रूप से ‘सीएम फेस’ घोषित नहीं किया गया।
इसके बाद से राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे है कि आखिर तेजस्वी को CM फेस घोषित करने में क्या बाधा आ रही है?
कोऑर्डिनेशन कमेटी के प्रमुख बने तेजस्वी
पटना में गुरुवार को हुई महागठबंधन की बैठक के बाद एक साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में बड़ा ऐलान किया गया।
चुनाव से जुड़ी रणनीतियों और निर्णयों के लिए गठबंधन एक कोऑर्डिनेशन कमेटी बनाएगा, जिसकी कमान तेजस्वी यादव के हाथों में सौंपी गई है।
13 सदस्यों वाली इस कमेटी में हर घटक दल से दो प्रतिनिधि शामिल होंगे।
इससे ये तो साफ हो गया कि इस कमेटी की अगुवाई आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव ही करेंगे और सभी चुनावी निर्णय उन्हीं के नेतृत्व में लिए जाएंगे।
इसके बावजूद तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया गया।
इस सवाल पर खुद तेजस्वी ने कहा, “थोड़ा इंतजार का मजा लीजिए। गठबंधन में किसी भी विषय पर कोई मतभेद नहीं है।”
ये खबर भी पढ़ें – तेजस्वी CM-सहनी डिप्टी CM! पटना में महागठबंधन की बैठक में बिहार CM फेस पर मंथन
BJP-JDU के वार पर RJD का पलटवार
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने इसे महागठबंधन की आंतरिक कमजोरी बताया है।
जेडीयू के प्रवक्ताओं ने कहा कि तेजस्वी यादव को सीएम फेस न बनाना खुद गठबंधन की असहमति को दिखाता है।
वहीं बीजेपी नेताओं ने तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस अभी भी तय नहीं कर पा रही कि वह आरजेडी की पिछलग्गू बनना चाहती है या नहीं।
दूसरी ओर आरजेडी के प्रवक्ता एजाज अहमद ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि तेजस्वी यादव को कोऑर्डिनेशन कमेटी का अध्यक्ष बनाना इस बात का प्रतीक है कि पूरा महागठबंधन उनके नेतृत्व में एकजुट है।
उन्होंने कहा कि एनडीए में खलबली मची हुई है। तेजस्वी यादव ने जब सरकार में रहते हुए काम किया तो युवाओं को रोजगार दिया, विकास हुआ। बिहार की जनता जानती है कि राज्य को आगे कौन ले जा सकता है।
छोटे दलों का समर्थन, लेकिन कांग्रेस की चुप्पी
महागठबंधन में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी पहले ही तेजस्वी को “छोटा भाई” कहकर समर्थन दे चुके हैं।
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और वामपंथी दलों ने भी तेजस्वी की नेतृत्व क्षमता पर भरोसा जताया है।
यहां तक कि दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से तेजस्वी की मुलाकात के बाद यह लगभग तय माना जा रहा था कि अब सिर्फ औपचारिक घोषणा बाकी है।
लेकिन कांग्रेस ने अब तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया है, जिससे सस्पेंस और बढ़ गया है। इस चुप्पी को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कांग्रेस की रणनीतिक ‘डिप्लोमेसी’ का हिस्सा है।
कांग्रेस की चार रणनीतिक मजबूरियां
कांग्रेस की इस झिझक को समझने के लिए उसकी वर्तमान रणनीति और राजनीतिक लक्ष्य को समझना जरूरी है। इस पूरे मामले को चार प्रमुख बिंदुओं में समझा जा सकता है:
1- आरजेडी की छाया से बाहर निकलने की कोशिश:-
बिहार में कांग्रेस की सियासी पहचान बीते दो दशकों में काफी कमजोर हुई है। कई बार उस पर यह आरोप लगा कि वह आरजेडी की “छाया” बन गई है। कांग्रेस अब इस नैरेटिव को तोड़ना चाहती है।
वह दिखाना चाहती है कि गठबंधन में वह भी एक स्वतंत्र और मजबूत विचारधारा वाली पार्टी है, जो किसी की कठपुतली नहीं है। इसलिए वह सीएम फेस के ऐलान में जल्दबाजी नहीं करना चाहती है।
2- ‘सरेंडर मोड’ वाली छवि से बचाव:-
लोकसभा चुनावों के दौरान सीट बंटवारे में कांग्रेस को अपमानजनक अनुभव हुए। कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय सीट मांगने पर भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। आरजेडी ने पूर्णिया जैसे महत्वपूर्ण सीट कांग्रेस को नहीं सौंपी और खुद फैसला लिया।
इन घटनाओं ने कांग्रेस को कमजोर और ‘सरेंडर मोड’ में दिखाया। अब कांग्रेस यह संदेश देना चाहती है कि वह विधानसभा चुनाव में पहले जैसी लाचार स्थिति में नहीं है।
3- नई लीडरशिप खड़ा करने की रणनीति:-
कांग्रेस अब बिहार में नई पीढ़ी के नेतृत्व को बढ़ावा देने की कोशिश में है। कन्हैया कुमार की पदयात्रा में राहुल गांधी की शिरकत और पप्पू यादव को कांग्रेस मंच पर जगह देना, शायद इसी ओर इशारा कर रहे थे।
हो सकता है कांग्रेस भी चाहती हो कि बिहार की राजनीति में उसकी अपनी आवाज और नेतृत्व उभरे, जो आरजेडी से स्वतंत्र हो।
4- वोट बैंक के विस्तार की कोशिश:-
तेजस्वी यादव को औपचारिक रूप से सीएम फेस घोषित करने पर कांग्रेस को डर है कि गैर-यादव ओबीसी वोटर, विशेषकर वे जो आरजेडी से परहेज करते हैं, महागठबंधन से दूर हो सकते हैं।
कांग्रेस मानती है कि अगर सामूहिक नेतृत्व के मॉडल के तहत चुनाव लड़ा जाए, तो जातीय समीकरणों को बेहतर तरीके से साधा जा सकता है और नया वोट बैंक खींचा जा सकता है।
लीड रोल तो मिला, पर क्या लीडर बनेंगे तेजस्वी?
महागठबंधन में तेजस्वी यादव को लीड रोल तो मिल गया है, लेकिन उन्हें “लीडर” के तौर पर सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाएगा या नहीं, यह अब भी कांग्रेस के अंतिम फैसले पर टिका है।
एक तरफ जहां छोटे दलों का समर्थन उनके साथ है, वहीं कांग्रेस की रणनीतिक चुप्पी ने इस सियासी तस्वीर को और पेचीदा बना दिया है।
फिलहाल, कयास लगाए जा रहे हैं कि आने वाले समय में कांग्रेस किसी बड़े मंच से तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित कर सकती है।
लेकिन तब तक, बिहार की राजनीति में ‘थोड़ा इंतजार’ ही सबसे बड़ा संदेश बना रहेगा।
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