Dhami Government Advertisement Scam: उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार पर प्रचार-प्रसार के नाम पर सरकारी धन के दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगे हैं।
एक ताज़ा खुलासे में सामने आया है कि सरकार ने पिछले चार वित्तीय वर्षों में प्रिंट मीडिया के ज़रिए 355.37 करोड़ रुपये खर्च किए।
जिनमें से 314.37 करोड़ रुपये सिर्फ़ धामी के कार्यकाल में जारी हुए।
इस रकम में एक ऐसा नाम भी शामिल है जो उस समय अस्तित्व में ही नहीं था — ‘ख़बर मानक’ नाम की पत्रिका।
72 लाख का विज्ञापन उस पत्रिका को, जो अस्तित्व में नहीं थी
जनवरी 2022 में धामी सरकार ने ‘ख़बर मानक’ पत्रिका को 71.99 लाख रुपये के विज्ञापन का भुगतान स्वीकृत किया।
लेकिन प्रेस रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (RNI) के रिकॉर्ड बताते हैं कि इस पत्रिका का पंजीकरण जुलाई 2022 में हुआ, यानी भुगतान से करीब छह महीने बाद।
इसका अर्थ है कि सरकार ने उस समय एक ऐसी पत्रिका को विज्ञापन दिया, जो आधिकारिक रूप से अस्तित्व में नहीं थी।
पत्रिका की ओर से सरकार को जो दस्तावेज़ सौंपे गए थे, उनमें अर्चना राजहंस का नाम प्रधान संपादक के रूप में दर्ज था।
दिलचस्प बात यह है कि राजहंस अब खुद को “पूर्व पत्रकार” बताती हैं और मुख्यमंत्री धामी के समर्थन में सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।
न्यूज़लॉन्ड्री में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक जब रिपोर्टर ने उनसे संपर्क किया, तो उन्होंने इस पत्रिका से किसी भी तरह का संबंध होने से इनकार किया और बाद में रिपोर्टर का नंबर ब्लॉक कर दिया।
मालिक और संपादक का रहस्य
पत्रिका के मालिक के रूप में जनार्दन कुमार का नाम दर्ज है, लेकिन उनके नाम पर कोई आधिकारिक ऑनलाइन रिकॉर्ड नहीं मिला।
केवल ‘क्राइम दस्तक रिपोर्टर्स’ नाम का एक फेसबुक पेज मौजूद है, जिसमें ख़बर मानक, वर्तमान क्रांति, और क्राइम दस्तक जैसे कई लोगो दिखते हैं।
इस पेज पर समाचार के बजाय अधिकतर आईडी कार्ड और प्रशस्ति पत्र जैसी पोस्टें नज़र आती हैं। वर्तमान में पत्रिका के संपादक के रूप में संदीप चौबे का नाम सामने आया है।
चौबे ने दावा किया कि वे मालिक जनार्दन कुमार से रिपोर्टर की बात करवाएंगे, लेकिन कुछ देर बाद फोन पर एक कपिल साहू नामक व्यक्ति आया जिसने खुद को जनार्दन का पीए बताया।
इसके बाद एक लालचंद नाम के व्यक्ति ने खुद को “फ्रीलांसर” बताते हुए जनार्दन का नंबर देने से इंकार कर दिया।
शिकायतें, हंगामा और भुगतान पर रोक — फिर भी रकम जारी
जनवरी 2022 में जब यह मामला प्रकाश में आया तो राज्य में राजनीतिक और मीडिया हलकों में हड़कंप मच गया।
नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व सदस्य अशोक नवरत्न ने लोकायुक्त को शिकायत भेजी।
उन्होंने राज्यपाल और नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भी पत्र लिखा।
राज्यपाल के हस्तक्षेप के बाद फरवरी 2022 में भुगतान अस्थायी रूप से रोक दिया गया।
लेकिन, हैरानी की बात यह रही कि बाद में यह राशि वित्त वर्ष 2022-23 में जारी कर दी गई।
धामी कार्यकाल में विज्ञापनों की बाढ़
सरकारी दस्तावेज़ों के अनुसार मुख्यमंत्री धामी के कार्यकाल में राष्ट्रीय और राज्य स्तर के कई प्रकाशनों को करोड़ों रुपये के विज्ञापन दिए गए।
राष्ट्रीय स्तर पर —
- दैनिक जागरण को ₹6 करोड़
- अमर उजाला को ₹4.59 करोड़
- हिंदुस्तान को ₹4.14 करोड़
- इंडिया टुडे को ₹4.02 करोड़
- पाञ्चजन्य को ₹1.91 करोड़
- पंजाब केसरी समूह को ₹2.09 करोड़
राज्य और क्षेत्रीय प्रकाशनों को भी भारी रकम मिली —
- द संडे पोस्ट – ₹1.26 करोड़
- न्यूज़ वायरस – ₹70.62 लाख
- दैनिक हॉक – ₹70.13 लाख
- गढ़वाल पोस्ट – ₹57.74 लाख
- क्राइम स्टोरी – ₹55.94 लाख
राज्य से बाहर के कई प्रकाशनों को भी सरकारी विज्ञापन दिए गए —
- दस्तक टाइम्स (लखनऊ) – ₹93.67 लाख
- हिल मेल (दिल्ली) – ₹83.47 लाख
- ख़बर मानक (दिल्ली) – ₹71.99 लाख
- अमर भारती (दिल्ली) – ₹64.08 लाख
- दैनिक टॉप स्टोरी – ₹54.33 लाख
- राष्ट्रीय स्वरूप (लखनऊ) – ₹52.8 लाख
- हिंदी विवेक (मुंबई) – ₹35.45 लाख
विज्ञापन नीति और पारदर्शिता पर सवाल
उत्तराखंड सरकार की प्रिंट विज्ञापन नियमावली 2016 के अनुसार प्रकाशनों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है —
1. राष्ट्रीय श्रेणी: कम से कम तीन संस्करण, जिनमें एक दिल्ली से, और कुल प्रसार 1.25 लाख प्रतियाँ।
2. राज्य श्रेणी: दो संभागों से प्रकाशन और कम से कम 75,000 प्रतियाँ।
3. क्षेत्रीय श्रेणी: न्यूनतम 2,000 प्रतियाँ (पर्वतीय क्षेत्रों में 1,000)।
इन मानकों के बावजूद ‘ख़बर मानक’ जैसी पत्रिका — जो उस वक्त पंजीकृत ही नहीं थी — को 72 लाख रुपये का विज्ञापन देना, धामी सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
राजनीतिक असर और विपक्ष की मांग
विपक्षी दलों ने इसे “राजकोषीय घोटाला” बताते हुए सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है।
कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह मामला केवल एक पत्रिका तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राज्य की विज्ञापन नीति में संरचनात्मक भ्रष्टाचार को उजागर करता है।
वहीं, सत्तारूढ़ पक्ष इस पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया देने से बच रहा है। इस पूरे घटनाक्रम ने उत्तराखंड सरकार की छवि पर सवालिया निशान लगा दिए हैं।
खासतौर पर ऐसे समय में जब धामी सरकार पारदर्शिता और सुशासन का दावा करती है, यह खुलासा बताता है कि प्रचार के नाम पर सरकारी धन का वितरण कितनी अपारदर्शिता से हुआ।
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