Bihar Rs 100 Crore Road: आपको भोपाल का वो मीम मटेरियल उर्फ आठवां अजूबा ’90 डिग्री’ वाला पुल तो याद ही होगा, जिसकी खूब किरकिरी हुई थी।
अब अगर भोपाल ने इतना बढ़िया कारनामा किया है तो फिर बिहार कैसे पीछे रह सकता है।
वहीं, बिहार जहां पुल बनाने से ज्यादा पुल टूट जाया करते हैं।
हालांकि, इस बार बिहार चर्चा में पुल नहीं बल्कि सड़क की वजह से है, जिसने सरकारी विकास कार्यों की पोल खोल दी है।
जहानाबाद जिले में 100 करोड़ रुपये की लागत से सड़क का निर्माण तो किया गया है पर सड़क के बीच में खड़ें दर्जनों पेड़ नहीं काटे गए।
उपर से सड़क पर लाइट भी नहीं लगी है। नतीज, जनता की सुविधा के लिए बनी सड़क अब उनके लिए मुसीबत बन गई है।
हाईवे बना जानलेवा: पेड़ नहीं काटे, लाइटें नहीं लगाईं
बिहार के जहानाबाद जिले में करीब 100 करोड़ की लागत से बन रही पटना-गया मेन रोड जनता के लिए सुविधा की जगह संकट बनती जा रही है।
कारण है सड़क के बीच दर्जनों पेड़, जिन्हें न तो काटा गया और न ही ट्रांसप्लांट किया गया।
इतना ही नहीं, इस नई सड़क पर रात के समय चलने के लिए लाइट्स की भी कोई व्यवस्था नहीं है।
नतीजा, सड़क पर चलना जान जोखिम में डालने जैसा हो गया है।
100 करोड़ की सड़क बना दी, पर पेड़ बीच में छोड़ दिए — यही है नीतीश-Modi मॉडल! विकास का दिखावा, जान जोखिम में। अगला हादसा कब होगा, कोई जवाब नहीं! #बदल_के_रहीं #Bihar pic.twitter.com/NTzKq8ingi
— Bihar Youth Congress (@IYCBihar) July 1, 2025
दरअसल, जहानाबाद के एरकी पावर ग्रिड के पास पटना-गया रोड पर करीब 7.48 किलोमीटर लंबी सड़क को चौड़ा किया गया है।
लेकिन सड़क की चौड़ाई के बावजूद इसके बीचों-बीच कई पुराने पेड़ ज्यों के त्यों खड़े हैं।
दिन में तो वाहन चालक पेड़ों को देखकर बच निकलते हैं, लेकिन रात के अंधेरे में इन पेड़ों के कारण हादसे की आशंका कई गुना बढ़ जाती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि कई बार बाइक सवार या अन्य वाहन इन पेड़ों से टकरा चुके हैं।
हालांकि अभी तक किसी बड़ी जानमाल की क्षति की खबर नहीं है।
लेकिन जिस तरह से लापरवाही बरती गई है, भविष्य में कोई बड़ी दुर्घटना होने से इनकार नहीं किया जा सकता।
दो विभागों में तालमेल की कमी बनी समस्या
इस अव्यवस्था की जड़ में दो विभागों — पथ निर्माण विभाग और वन विभाग के बीच तालमेल की कमी है।
पथ निर्माण विभाग ने वर्षों पहले पेड़ों को काटने के लिए वन विभाग से अनुमति मांगी थी, लेकिन अनुमति नहीं मिली।
वन विभाग का कहना है कि नियमों के अनुसार जितने पेड़ काटे जाएंगे, उससे तीन गुना नए पेड़ लगाने होंगे।
इसके लिए जिला प्रशासन से लगभग 14 हेक्टेयर जमीन मांगी गई थी, जो अब तक नहीं मिली।
नतीजा यह हुआ कि पेड़ वहीं रह गए और उनके दोनों ओर से सड़क बना दी गई।
वनरक्षी का कहना है, हमारी ओर से पेड़ हटाने की अनुमति इस शर्त पर दी जाती है कि उसके बदले पेड़ लगाने के लिए जमीन उपलब्ध कराई जाए।
लेकिन जिला प्रशासन ने 4 एकड़ जमीन की भी व्यवस्था नहीं की। ऐसे में हम परमिशन कैसे दें?
‘विकास’ बना खतरा, निर्माण कार्य भी अधूरा
स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकार ने सड़क तो बना दी, लेकिन सुरक्षा की बुनियादी शर्तों को नजरअंदाज कर दिया।
न लाइट लगाई गई, न ही पेड़ों को हटाया गया और अब सड़क के बीच में खड़े पेड़ ‘मौत के खंभे’ बन चुके हैं।
एक स्थानीय दुकानदार ने बताया, रात के समय तो लोग दहशत में गाड़ी चलाते हैं।
अंधेरे में अचानक पेड़ सामने आ जाए तो बचना मुश्किल हो जाता है।
बता दें इस सड़क परियोजना की शुरुआत अप्रैल 2022 में हुई थी।
इसका कार्यकाल अप्रैल 2025 तक है, लेकिन अब तक केवल 30 प्रतिशत निर्माण कार्य ही पूरा हो सका है।
पथ निर्माण विभाग के एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के अनुसार, कनौदी स्थित रिलायंस पेट्रोल पंप से मई गुमटी तक 7.2 किलोमीटर लंबी सड़क बननी है।
लेकिन पेड़ और अतिक्रमण सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आए हैं।
उन्होंने बताया कि दुर्घटनाओं से बचने के लिए कुछ सेफ्टी उपाय जैसे रिफ्लेक्टर और ड्रम लगाए गए हैं, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं हैं।
अगर हादसा हुआ तो कौन लेगा जिम्मेदारी?
यह मामला बिहार की उस प्रशासनिक प्रणाली की तस्वीर पेश करता है जहां विभागीय खींचतान के चलते जनता की जान जोखिम में डाल दी जाती है।
एक ओर वन विभाग पर्यावरण के संरक्षण के नियमों का हवाला देता है, तो दूसरी ओर पथ निर्माण विभाग सड़क बनाकर हाथ झाड़ लेता है।
बीच में फंसी है आम जनता, जिसे न तो सुरक्षित सड़क मिलती है और न ही जवाबदेही।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर सड़क के बीच खड़े पेड़ों से किसी की जान जाती है, तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा?
प्रशासन? ठेकेदार? या पर्यावरण नियमों की दुहाई देने वाला विभाग?
स्थानीय लोगों की मानें तो कई बार प्रशासन को ज्ञापन और शिकायत दी जा चुकी है, लेकिन अभी तक कोई ठोस पहल नहीं की गई।
बिहार में यह एक और उदाहरण है जो दिखाता है कि कैसे सरकारी योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही सुलझी हुई नजर आती हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत कुछ और ही होती है।
100 करोड़ खर्च रूपये होने के बावजूद यह सड़क लोगों के लिए सुविधा से ज्यादा दुर्घटना का कारण बन रही है।
You may also like
-
मानसून सत्र का दूसरा दिन भी हंगामेदार: उपराष्ट्रपति का इस्तीफा मंजूर, बिहार वोटर लिस्ट पर विपक्ष का बवाल
-
मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी चुनौती
-
बांग्लादेश में बड़ा विमान हादसा: ढाका में स्कूल पर गिरा फाइटर जेट, 19 की मौत, 164 घायल
-
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव: राहुल गांधी समेत 145 सांसदों ने किए हस्ताक्षर
-
राजनीतिक लड़ाइयां चुनाव में लड़ी जाएं, एजेंसियों से नहीं: जानें सुप्रीम कोर्ट ने ED को क्यों लगाई फटकार?