जाति आधारित जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी को लिखा पत्र,

जाति आधारित जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी को लिखा पत्र,

जाति आधारित जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, खूब कसे तंज

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Tejashwi’s letter to the PM- तेजस्वी यादव ने जाति आधारित जनगणना को लेकर प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा है उसका सीधा आशय ये है कि जो फैसला आपने लिया है उसी की

मांग हम सालों से कर रहे हैं। लेकिन तब आप और आपकी सरकार, आपके नेता इसे लागू करने का विरोध करते थे। और हमारे काम में अवरोध पैदा करते थे। बहरहाल आपने ये फैसला

लागू कर ही दिया है तो इतना बस और कर लें….

अपने पत्र में यादव ने प्रधानमंत्री को बिहार में महागठबंधन के 17 महीने के कार्यकाल के दौरान एनडीए नेताओं और संस्थानों द्वारा पैदा किए गए विरोध और बाधाओं की याद दिलाई, जब राज्य सरकार ने अपना जाति आधारित सर्वेक्षण कराया था।

Tejashwi’s letter to the PM-विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक विस्तृत पत्र लिखकर आम जनगणना के साथ-साथ देश भर में जाति आधारित जनगणना कराने के केंद्र के फैसले का स्वागत किया है। हालांकि, पत्र में उन्होंने एनडीए के पिछले रुख की तीखी आलोचना की और सरकार से व्यापक सामाजिक न्याय सुधारों के लिए आंकड़ों का इस्तेमाल करने का आग्रह किया। यादव ने प्रधानमंत्री को बिहार में महागठबंधन के 17 महीने के कार्यकाल के दौरान एनडीए नेताओं और संस्थानों द्वारा पैदा किए गए विरोध और बाधाओं की याद दिलाई, जब राज्य सरकार ने अपना जाति आधारित सर्वेक्षण कराया था। जाति आधारित जनगणना को लेकर तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, खूब कसे तंज

यादव ने लिखा, “सालों से आपकी सरकार और एनडीए जाति आधारित जनगणना की मांग को विभाजनकारी और अनावश्यक बताकर खारिज करते रहे हैं। जब महागठबंधन सरकार ने इसे कराने का फैसला किया, तो केंद्रीय अधिकारियों और आपकी पार्टी के सहयोगियों ने सक्रिय रूप से इसकी आवश्यकता पर सवाल उठाए और बाधाएं पैदा कीं।” बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने राष्ट्रीय जनगणना में जाति जनगणना को शामिल करने के केंद्र के फैसले पर पीएम नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा है।’

उन्होंने कहा कि बिहार जाति सर्वेक्षण से पता चला है कि ओबीसी और ईबीसी राज्य की आबादी का लगभग 63 प्रतिशत हिस्सा हैं – एक ऐसा निष्कर्ष जिसने “लंबे समय से चले आ रहे मिथकों को तोड़ दिया” और समावेशी शासन की तत्काल आवश्यकता को प्रदर्शित किया।

यादव ने कहा कि इसी तरह के पैटर्न राष्ट्रीय स्तर पर भी उभरने की संभावना है, और यह रहस्योद्घाटन कि वंचित समुदाय भारी बहुमत बनाते हैं, जबकि सत्ता के पदों पर उनका प्रतिनिधित्व कम है, इससे लोकतांत्रिक जागृति पैदा होनी चाहिए।

कैसे ये एक राजनीतिक मुद्दा बना

-मंडल आयोग (1980): इस आयोग ने केंद्र सरकार की नौकरियों में OBC को 27% आरक्षण देने की सिफारिश की। लेकिन सटीक जातिगत डेटा की कमी से OBC की जनसंख्या का सही अनुमान लगाना मुश्किल था।

– यूपीए सरकार ने 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना कराई, लेकिन इसका जातिगत डेटा आज तक पूरी तरह सार्वजनिक नहीं किया गया।

-राज्यों के प्रयास: बिहार, कर्नाटक, तेलंगाना जैसे राज्यों ने खुद अपने जातिगत सर्वे करवाए। बिहार के 2023 के सर्वे के अनुसार, OBC और अत्यंत पिछड़े वर्ग (EBC) राज्य की कुल आबादी का 63% से अधिक है।

जनगणना में क्या चुनौतियां हैं

वर्गीकरण बड़ी चुनौती है। जातियां बहुत हैं। हजारों उप जातियां, अलग-अलग पहचान और क्षेत्र विशिष्ट नाम हैं। इसके सटीक प्रणाली बनानी जरूरी है। जनगणना फॉर्म को जाति, समानार्थक नामों, गोत्र, उपनाम और वंश नाम अंतर के लिए डिजाइन करना होगा। एक चिंता जाति पह पुष्ट करने की है। राजनीतिक हेरफेर के जोखिम भी हैं। निगरानी के लिए मजबूत तंत्र बनाना चाहिए। एक्सपर्ट का कहना है कि जनगणना कराने में करीब एक साल का वक्त लगेगा। इसके बाद देश में परिसीमन का काम शुरू होगा। जनगणना में जाति का कॉलम पहले भी होता था लेकिन यह वैकल्पिक था। अब जनगणना के वक्त जाति वाला कॉलम अनिवार्य वाले कॉलम में आ जाएगा।

किन- किन राज्यों में हो चुका है सर्वे

बिहार में महागठबंधन की सरकार के दौरान 2023 में जातिगत सर्वे के आंकड़े जारी किए गए थे। उस वक्त नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और आरजेडी की राज्य में सरकार थी। बाद में तेलंगाना और कर्नाटक जैसे कुछ गैर बीजेपी शासित राज्यों में जाति आधारित सर्वे भी कराए गए हैं।

 

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