SC On Pahalgam Attack: पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जांच की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया है।
अदालत ने याचिकाकर्ताओं को फटकारते हुए कहा कि ऐसी याचिकाएं सुरक्षा बलों का मनोबल गिराने का काम करती हैं।
इस समय देश को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने की जरूरत है, न कि न्यायिक आयोग की मांग से भ्रम फैलाने की।
दरअसल, यह याचिका कश्मीर निवासी मोहम्मद जुनैद सहित फतेश कुमार साहू और विकी कुमार ने दाखिल की थी।
जिसमें एक रिटायर्ड सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग बनाने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी अनुरोध किया था कि केंद्र सरकार, जम्मू-कश्मीर प्रशासन, सीआरपीएफ और NIA को निर्देशित किया जाए कि वे टूरिस्ट इलाकों में नागरिकों की सुरक्षा के लिए विस्तृत एक्शन प्लान तैयार करें।
कोर्ट की नाराजगी, हाईकोर्ट जाने से भी रोका
पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ी याचिका की सुनवाई कर रही जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटीश्वर सिंह की पीठ ने याचिका पर सख्त आपत्ति जताई।
कोर्ट ने कहा, “ऐसी याचिकाएं न केवल सुरक्षाबलों का मनोबल गिराती हैं, बल्कि इससे देश के संवेदनशील मुद्दों पर गलत संदेश भी जाता है।”
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, “हम ऐसे मामलों के विशेषज्ञ कब से बन गए? सुप्रीम कोर्ट का काम फैसला सुनाना है, न कि आतंकी हमलों की जांच करना। रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में जांच आयोग बनाना अदालत की जिम्मेदारी नहीं है।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि इस प्रकार की याचिकाएं दाखिल करने से पहले याचिकाकर्ताओं को देश की परिस्थितियों और जिम्मेदारियों को समझना चाहिए।
जब याचिकाकर्ता ने दलील दी कि वह छात्रों के हित में अदालत आए हैं, तो कोर्ट ने याचिका में छात्रों से जुड़ी कोई भी मांग न होने की बात कहकर उसे झूठा ठहराया।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे लोगों को हाईकोर्ट जाने से भी रोका जाए।
अंततः अदालत ने याचिकाकर्ता को याचिका वापस लेने की अनुमति दी, लेकिन सख्त चेतावनी भी दी कि भविष्य में इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना याचिकाएं दाखिल करने से बचें।
बैसरन घाटी में आतंकियों ने धर्म पूछकर गोलियां चलाईं
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय पर्यटन स्थल पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में आतंकियों ने धर्म पूछकर गोलियां चलाईं, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए। हमले में नेपाल का एक नागरिक भी शामिल था।
चश्मदीद गवाह असावरी जगदाले, जिनके पिता संतोष जगदाले इस हमले में मारे गए, ने बताया कि आतंकियों ने उनके पिता से इस्लामी आयत पढ़ने को कहा और न पढ़ पाने पर उन्हें गोली मार दी।
घटना की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हमलावर पुलिस की वर्दी में थे और अचानक गोलियों की बौछार शुरू कर दी।
घटनास्थल से बचे लोगों ने बताया कि हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने पहले ली, लेकिन बाद में इससे मुकर गया।
हमले के बाद मामला NIA को सौंपा गया और एजेंसी ने 27 अप्रैल को जम्मू में केस दर्ज किया। मामले की जांच फिलहाल जारी है और इसमें आतंकियों की पहचान और उनके नेटवर्क का पता लगाने की कोशिश हो रही है।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट का फैसला संदेश देता है कि देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों पर जनहित याचिकाएं बहुत सोच-समझकर और जिम्मेदारी के साथ दाखिल की जानी चाहिए।
अदालत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि न्यायपालिका का काम न्याय देना है, न कि रक्षा मामलों की निगरानी करना।
यह दर्शाता है कि सुरक्षा बलों के प्रयासों और बलिदानों के बीच किसी भी प्रकार की सार्वजनिक भ्रम या अनुचित हस्तक्षेप को देश के हित में उचित नहीं माना जाएगा।
You may also like
-
मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास की विधायकी रद्द, हेट स्पीच केस में अदालत ने सुनाई 2 साल की सजा
-
जज यशवंत वर्मा के स्टोर रूम से उठी नई सनसनी, जांच रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे
-
लालू यादव को बड़ा झटका, Land For Job घोटाला मामले में हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका
-
देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती: महिला सशक्तिकरण महासम्मेलन में शामिल हुए पीएम मोदी
-
इंदौर के शूटिंग कोच मोहसिन खान के खिलाफ 7वीं FIR दर्ज, तंत्र-मंत्र के नाम पर रेप करने का आरोप