Vijay Shah Case in SC: मध्यप्रदेश सरकार के आदिवासी कार्य मंत्री कुंवर विजय शाह के विवादित बयान मामले में आज (19 मई) सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।
सेना की अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर की गई अमर्यादित टिप्पणी के चलते मंत्री शाह पर एफआईआर दर्ज की गई थी, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
इससे पहले 16 मई को हुई सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने मंत्री को कोई राहत नहीं दी थी और यह साफ कर दिया था कि संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को सोच-समझकर बोलना चाहिए।
अब आज की सुनवाई इस पूरे मामले में निर्णायक साबित हो सकती है।
विवाद की शुरुआत: क्या कहा था शाह ने?
विजय शाह ने 11 मई को इंदौर के महू क्षेत्र के रायकुंडा गांव में आयोजित एक जनसभा में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उल्लेख करते हुए कर्नल सोफिया कुरैशी पर अत्यंत आपत्तिजनक टिप्पणी की थी।
उन्होंने कहा था कि उन्होंने कपड़े उतार-उतारकर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा… हमारे देश की बहनों का सुहाग उजाड़ने का बदला उनकी बहनों को पाकिस्तान भेजकर लेना होगा।
इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया हुई और पूरे देश में विरोध की लहर उठी।
विपक्षी दलों के साथ-साथ कई वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने भी मंत्री के बयान की आलोचना की, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती भी शामिल हैं। लेकिन, भाजपा शाह से इस्तीफा लेने के बजाय पार्टी डैमेज कंट्रोल में लगी है।
हाईकोर्ट की फटकार के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील
इस मामले में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए 14 मई को राज्य के डीजीपी को मंत्री विजय शाह पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए।
जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने इस टिप्पणी को “गटर जैसी भाषा” बताया और कहा कि यह एक संवैधानिक पद पर बैठे मंत्री के लिए शोभा नहीं देता।
एफआईआर दर्ज होने के बाद जब अदालत ने जांच की भाषा और ढीली कानूनी प्रक्रिया पर गौर किया तो 15 मई को हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि एफआईआर “सिर्फ खानापूर्ति” के लिए की गई है।
इसमें मंत्री को लाभ पहुंचाने की कोशिश स्पष्ट रूप से दिखती है। अदालत ने कहा कि अब इस मामले की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में होगी।
दूसरी ओर एफआईआर दर्ज होने के बाद मंत्री शाह ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी।
16 मई को हुई सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता विभा मखीजा ने मंत्री की ओर से पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि शाह का बयान संदर्भ से बाहर प्रस्तुत किया गया है और मीडिया ने इसे तोड़-मरोड़कर दिखाया है।
उन्होंने यह भी बताया कि शाह माफी मांग चुके हैं और फिलहाल कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस बी.आर. गवई ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य के मंत्री के मुंह से निकला हर शब्द जिम्मेदारी भरा होना चाहिए। इस तरह के बयान संवैधानिक पद की गरिमा के खिलाफ हैं।
हालांकि, कोर्ट ने तब कोई अंतरिम राहत नहीं दी और अगली सुनवाई की तारीख 19 मई तय की।
अब तक शाह से इस्तीफा क्यों नहीं ले पाई BJP?
इस मामले में केवल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, बल्कि बिहार के मुजफ्फरपुर में भी विजय शाह के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है, जिसकी सुनवाई 26 मई को होनी है।
वहीं इस पूरे विवाद ने भाजपा के सामने गंभीर राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया है।
जहां एक ओर पार्टी देशभर में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की बात करती है, वहीं अपने ही मंत्री के इस बयान पर वह अब तक कोई सख्त कदम नहीं उठा पाई है।
पार्टी के भीतर कई वरिष्ठ नेता मंत्री विजय शाह से इस्तीफा लेने की मांग कर रहे हैं, लेकिन आदिवासी समाज में उनकी पकड़ और आगामी चुनावों में उनका प्रभाव पार्टी को फैसला लेने से रोक रहा है।
सूत्रों के अनुसार, पार्टी नेतृत्व के बीच पिछले दो दिनों से इस मुद्दे पर मंथन चल रहा है।
इस्तीफा लेने पर उपचुनाव की संभावना और आदिवासी वोट बैंक के खिसकने का डर पार्टी के सामने बड़ी बाधा है।
यही कारण है कि अब भाजपा अदालत के फैसले के आधार पर ही आगे की रणनीति तय करने की राह पर है।
वहीं दूसरी तरफ आज की सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई यह तय करेगी कि क्या कानून के तहत मंत्री को संरक्षण मिलेगा या उन्हें अपनी किए की कीमत चुकानी पड़ेगी।
अगर कोर्ट FIR को वैध ठहराता है और इसमें हस्तक्षेप नहीं करता, तो मंत्री शाह पर इस्तीफे का दबाव और बढ़ जाएगा।
वहीं, अगर कोर्ट कोई राहत देता है, तो भाजपा को थोड़ी राहत जरूर मिल सकती है, लेकिन सामाजिक और नैतिक दबाव अब भी बना रहेगा।
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