Jammu Kashmir Statehood Restoration

Jammu Kashmir Statehood Restoration

जम्मू-कश्मीर स्टेटहुड बहाली की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार से 8 हफ्ते में जवाब मांगा

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Jammu Kashmir Statehood Restoration: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की।

अदालत ने केंद्र सरकार को आठ हफ्तों में लिखित जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।

सुनवाई के दौरान CJI बीआर गवई ने कहा, इस मुद्दे पर निर्णय लेते समय केवल संवैधानिक जरूरतें ही नहीं, बल्कि जमीनी हालात और सुरक्षा संबंधी परिस्थितियां भी अहम होंगी।

उन्होंने अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसी घटनाओं को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।

स्थिति अजीबोगरीब, चुनावों के बाद देंगे स्टेटहुड

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया सरकार ने पहले ही विधानसभा चुनावों के बाद राज्य का दर्जा बहाल करने का आश्वासन दिया था और इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।

हालांकि, उन्होंने जम्मू-कश्मीर में मौजूदा हालात को “अजीबोगरीब” बताते हुए इस समय बहाली की मांग को अनुचित ठहराया।

SG मेहता ने कहा, हमने चुनाव के बाद स्टेटहुड देने का आश्वासन दिया है, लेकिन देश के इस हिस्से की विशेष परिस्थितियों को देखते हुए अभी मामला नहीं छेड़ना चाहिए।

उन्होंने भी पहलगाम की हालिया घटना का जिक्र किया और कहा कि ऐसी स्थितियों में सावधानी बरतना जरूरी है।

सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा कि कोर्ट बिना केंद्र का जवाब सुने आगे नहीं बढ़ेगा।

उन्होंने कहा कि सिर्फ संवैधानिक जरूरतें नहीं, सुरक्षा हालात भी देखे जाएंगे।

निर्णय केवल कानूनी बहस के आधार पर नहीं होगा, बल्कि जमीनी हकीकत को ध्यान में रखकर होगा।

शांतिपूर्वक हुए चुनाव, सुरक्षा में कोई बाधा नहीं

यह याचिकाएं शिक्षाविद प्रो. जहूर अहमद भट और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक ने दायर की थीं।

उनका कहना है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा और लोकसभा चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए हैं, जिससे यह स्पष्ट है कि सुरक्षा व्यवस्था सामान्य है और लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं सुचारू रूप से चल रही हैं।

याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि 21 महीने बीत जाने के बावजूद केंद्र ने स्टेटहुड बहाली पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है।

उनका कहना है कि देरी से लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार की स्थिति कमजोर होती है और यह भारत के संघीय ढांचे के सिद्धांतों के खिलाफ है।

याचिका में यह भी कहा गया है कि यदि विधानसभा चुनाव के परिणाम 8 अक्टूबर 2024 को घोषित हो जाते हैं और तब तक राज्य का दर्जा बहाल नहीं होता, तो निर्वाचित सरकार का महत्व कम हो जाएगा।

याचिकाकर्ताओं ने चेतावनी दी कि केंद्र के आश्वासन के बावजूद देरी जम्मू-कश्मीर के लोकतांत्रिक अधिकारों और विकास को गंभीर नुकसान पहुंचा रही है।

अनुच्छेद 370 हटने से स्टेटहुड का सफर

5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटाकर जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित कर दिया।

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान और अलग कानून थे और बाहरी लोग वहां भूमि नहीं खरीद सकते थे।

सरकार ने संसद में तर्क दिया था कि यह प्रावधान राष्ट्रीय एकता और विकास में बाधा था और आतंकवाद व अलगाववाद को बढ़ावा देता था।

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत यह बदलाव लागू हुआ।

सुप्रीम कोर्ट का दिसंबर 2023 का फैसला

सीनियर एडवोकेट शंकरनारायण, जो याचिकाकर्ताओं का पक्ष रख रहे थे।

उन्होंने याद दिलाया कि 11 दिसंबर 2023 के चुनाव और उसके बाद स्टेटहुड बहाली का निर्देश दिया था।

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को सही ठहराया था।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि सितंबर 2024 तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाएं और उसके बाद “जल्द से जल्द” राज्य का दर्जा बहाल किया जाए।

तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वस्त किया था कि केंद्र चुनाव के बाद स्टेटहुड बहाल करने की प्रक्रिया शुरू करेगा। हालांकि, तब कोई स्पष्ट समयसीमा तय नहीं हुई थी।

बहरहाल, कोर्ट ने अब केंद्र को आठ हफ्तों का समय दिया है, जिसके बाद मामला दोबारा सूचीबद्ध होगा।

इस दौरान केंद्र को लिखित जवाब दाखिल करना होगा जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि स्टेटहुड बहाली की दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं और सुरक्षा हालात को लेकर सरकार का मूल्यांकन क्या है?

पूर्ण राज्य का दर्जा कैसे मिलेगा समझे

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुर्नगठित किया गया था।

इसलिए पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार को संसद में एक कानून पारित कर पुनर्गठन अधिनियम में बदलाव करना होगा।

फिर यह प्रस्ताव को उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार को भेजा जाएगा और आगे का निर्णय केंद्र सरकार को करना है।

केंद्र सरकार ही जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम में बदलाव की प्रक्रिया कर सकती है, यह बदलाव संविधान की धारा 3 और 4 के तहत होंगे।

राज्य का दर्जा देने के लिए लोकसभा और राज्यसभा में नए कानूनी बदलावों का अनुमोदन जरूरी होगा, यानी संसद से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलना जरूरी है।

लोकसभा और राज्यसभा की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही अधिसूचना जारी होगी और उसी तारीख से राज्य का दर्जा बहाल हो जाएगा।

 

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