CJI Welcome Protocol Controversy: सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका (PIL) को सख्त शब्दों में खारिज कर दिया, जिसमें महाराष्ट्र के तीन वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता शैलेंद्र मणि त्रिपाठी का आरोप था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी. आर. गवई के पहले मुंबई दौरे के दौरान इन अधिकारियों ने प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया था।
कोर्ट ने इस याचिका को ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन’ करार देते हुए न केवल इसे खारिज किया बल्कि याचिकाकर्ता पर 7 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह राशि उन्हें लीगल सर्विसेज अथॉरिटी में जमा करनी होगी।
सस्ती पब्लिसिटी के लिए दायर की याचिका
मुख्य न्यायाधीश गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि यह कोई गंभीर मामला नहीं है और इसे पहले ही सुलझाया जा चुका है।
कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की याचिकाएं न्यायालय का समय नष्ट करती हैं और इनका उद्देश्य केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करना होता है।
सुनवाई के दौरान CJI गवई ने याचिकाकर्ता वकील से कहा, आप अखबार में अपना नाम छपवाना चाहते हैं।
अगर आपने पद की गरिमा के बारे में सोचा होता, तो आपको पता होता कि मैंने इस मामले को यहीं समाप्त करने की अपील की थी। यह याचिका जुर्माने के साथ खारिज की जाएगी।
प्रोटोकॉल उल्लंघन के मामले ने ऐसे पकड़ा जोर
दरअसल, 14 मई 2025 को भारत के 51वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने के बाद जस्टिस बी. आर. गवई 18 मई को मुंबई पहुंचे थे।
वहां बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा ने उनके सम्मान में एक कार्यक्रम आयोजित किया था।
इसी दौरान यह मुद्दा उठा कि महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक (DGP) और मुंबई पुलिस कमिश्नर जैसे उच्च अधिकारी कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे।
इसे लेकर सोशल मीडिया पर आलोचना शुरू हो गई और प्रोटोकॉल उल्लंघन का मामला जोर पकड़ने लगा।
हालांकि, बाद में तीनों वरिष्ठ अधिकारी CJI से मिलने पहुंचे और उन्होंने सार्वजनिक रूप से खेद व्यक्त किया।
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर यह स्पष्ट किया गया कि मामला समाप्त हो चुका है और इसे तूल नहीं दिया जाना चाहिए।
सुनवाई के दौरान CJI गवई ने कहा, तीनों अधिकारी मेरे रवाना होने तक एयरपोर्ट पर मौजूद थे और उन्होंने माफी भी मांगी थी।
इस मामले को खत्म करने के लिए एक प्रेस नोट भी जारी किया गया था। यह किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं है, बल्कि पद की गरिमा का मामला है। हमें तिल का ताड़ नहीं बनाना चाहिए।
महाराष्ट्र सरकार ने CJI को बनाया परमानेंट स्टेट गेस्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को एक गैर-जरूरी कोशिश बताया जो सिर्फ अनावश्यक विवाद उत्पन्न करने के लिए की गई थी।
पीठ ने यह भी कहा कि जब कोई मुद्दा सुलझ चुका हो और उस पर उच्च पदस्थ व्यक्ति स्वयं खेद स्वीकार कर चुका हो, तो ऐसे मामलों को बार-बार उछालना न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचा सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम के बाद महाराष्ट्र सरकार ने भी एक अहम कदम उठाते हुए CJI को “परमानेंट स्टेट गेस्ट” का दर्जा दे दिया है।
20 मई को जारी किए गए सरकारी आदेश के अनुसार, महाराष्ट्र स्टेट गेस्ट रूल्स 2004 के तहत अब CJI जब भी राज्य के दौरे पर होंगे, उन्हें प्रोटोकॉल के तहत रिसीव किया जाएगा, सरकारी गाड़ी, आवास और सुरक्षा की व्यवस्था की जाएगी। जिलों में यह जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होगी।
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