PM Modi and Delegation Meeting: ऑपरेशन सिंदूर के तहत विदेश भेजे गए 7 सांसदीय प्रतिनिधिमंडलों में से पहला दल मंगलवार को भारत लौट आया है।
ये डेलिगेशन पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्त नीति और सैन्य कार्रवाई को दुनिया के सामने बताने गया है।
इस अभियान में शामिल सभी प्रतिनिधिमंडल आगामी 8 जून तक देश लौट आएंगे।
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन प्रतिनिधिमंडलों से 9 या 10 जून को मुलाकात कर सकते हैं।
इस दौरान सभी दल अपनी विदेश यात्राओं की रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंपेंगे और विश्व मंच पर भारत की ओर से रखे गए पक्ष की जानकारी देंगे।
59 सांसदों को 33 देशों में भेजा गया
इस ऑपरेशन के तहत भारत सरकार ने देश के 59 सांसदों को 7 सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में बांटकर 33 देशों में भेजा है।
इन टीमों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों के अलावा पूर्व राजनयिक और विशेषज्ञ भी शामिल किए गए हैं।
मिशन का उद्देश्य दुनिया को यह बताना है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर कायम है।
सीमा पार से हो रहे आतंकी हमलों पर अब केवल प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि पूर्व-सक्रिय रुख अपनाएगा।
विदेश गया पहला प्रतिनिधिमंडल लौटा
मंगलवार को भारत लौटे पहले प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भाजपा नेता बैजयंत जय पांडा ने किया।
इस दल में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे, फंगनन कोन्याक, महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, पंजाब यूनिवर्सिटी के चांसलर सतनाम सिंह संधू, डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के नेता गुलाम नबी आजाद और पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला शामिल थे।
इस प्रतिनिधिमंडल ने सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन और अल्जीरिया की यात्रा कर वहां के राजनेताओं, थिंक टैंक और भारतीय समुदाय के साथ संवाद किया।
डेलिगेशन ने दुनिया को दिए गए 5 संदेश
इस अभियान के तहत भारतीय सांसदों ने जिन देशों की यात्रा की, वहां पाँच प्रमुख संदेश विश्व समुदाय को दिए गए:
- आतंकवाद पर जीरो टॉलरेंस – सांसदों ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत ने सीमित और लक्षित सैन्य कार्रवाई कर आतंकी ठिकानों को नष्ट किया। पाकिस्तान ने इसे युद्ध समझा और जवाबी कार्रवाई की, लेकिन भारत संयमित रहा।
- पाकिस्तान आतंकवाद का संरक्षक – प्रतिनिधिमंडलों ने पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) की पहलगाम हमले में भूमिका समेत कई अन्य आतंकी घटनाओं के प्रमाण अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष रखे।
- भारत की जिम्मेदार और संयमित कार्रवाई – भारत ने सैन्य कार्रवाई में इस बात का विशेष ध्यान रखा कि कोई निर्दोष पाकिस्तानी नागरिक हताहत न हो। पाकिस्तान के आग्रह पर जबरदस्त संयम दिखाते हुए भारत ने कुछ हमले रोक भी दिए।
- विश्व समुदाय आतंक के खिलाफ एकजुट हो – सांसदों ने विभिन्न देशों से अपील की कि वे आतंकवाद को भारत-पाक के बीच का मुद्दा मानने के बजाय वैश्विक खतरे के रूप में देखें और इसके खिलाफ खुलकर भारत का समर्थन करें।
- भारत की बदली हुई नीति – अब भारत आतंकी खतरों पर सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं करेगा, बल्कि प्रो-एक्टिव कार्रवाई करते हुए आतंकवाद को जन्म देने वाली मानसिकता और ढांचे को पहले ही निष्क्रिय करेगा।
भाजपा ही नहीं, विपक्षी दलों के नेता भी शामिल
ऑपरेशन सिंदूर की खास बात यह रही कि इसमें केवल सत्ताधारी भाजपा ही नहीं, बल्कि विपक्षी दलों के नेता भी शामिल रहे।
AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी, गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं की भागीदारी ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सर्वसम्मत भारतीय रुख के रूप में प्रस्तुत किया।
इससे संदेश गया कि आतंकवाद के मुद्दे पर भारत पूरी तरह एकजुट है।
यह पहली बार नहीं है जब भारत ने आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर विपक्षी नेताओं को विदेशों में देश का पक्ष रखने की जिम्मेदारी दी हो।
1994 में प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के आरोपों का जवाब देने के लिए विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में प्रतिनिधिमंडल को जिनेवा भेजा था।
उस दल में फारूक अब्दुल्ला और सलमान खुर्शीद भी शामिल थे। तब भारत की कूटनीति सफल रही थी और पाकिस्तान को अपना प्रस्ताव वापस लेना पड़ा था।
इसी तरह 2008 में मुंबई आतंकी हमलों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को पाकिस्तान की संलिप्तता से जुड़े सबूतों के साथ विदेश भेजा था।
इसके बाद पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा और उसे FATF की ग्रे लिस्ट में डाला गया।
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