Pakistan Water Crisis: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने सिंधु जल समझौते ने पाक की मुश्किलें बढ़ा दी है।
हाल ही में भारत ने जम्मू-कश्मीर स्थित बगलिहार और सलाल बांधों के गेट बंद कर दिए, जिससे पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों में बहने वाली चिनाब नदी का जलस्तर तेजी से घट गया है।
वहीं, अब भारत की योजना झेलम नदी के प्रवाह को रोकने की भी है, जिससे पाकिस्तान में जलसंकट भयावह रूप ले सकता है।
चिनाब नदी का बहाव थमा, जलस्तर 7 फीट घटा
भारत ने पिछले दो दिनों में सलाल और बगलिहार बांधों से पानी रोक लिया, जिससे चिनाब नदी का जलस्तर पाकिस्तान में 22 फीट से गिरकर 15 फीट रह गया है।
यह गिरावट सिर्फ 24 घंटे में दर्ज की गई, जिससे पाकिस्तान के 24 प्रमुख शहरों में पानी की भारी किल्लत हो गई है।
चिनाब के लगातार सिकुड़ने से पंजाब के अहम शहरों में 3 करोड़ से ज्यादा लोगों को पीने के पानी के लिए तरसना पड़ सकता है।
पाकिस्तान के फैसलाबाद, हाफिजाबाद जैसे शहरों में 80% आबादी पीने के पानी के लिए चिनाब पर निर्भर है।
अब आशंका है कि अगले चार दिनों में इन इलाकों में तीव्र जल संकट पैदा हो सकता है।
पाकिस्तान के सिंधु जल प्राधिकरण ने चेतावनी दी है कि भारत की इस कार्रवाई से खरीफ की फसलों के लिए पानी में 21% तक की कमी आ सकती है।
धान और कपास जैसी फसले पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और निर्यात के लिए बेहद अहम हैं।
भारत की तैयारी, अब झेलम और सिंधु की बारी
भारत केवल चिनाब तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार अब कश्मीर में किशनगंगा बांध के जरिए झेलम नदी के पानी को रोकने की योजना पर काम कर रही है।
यह वही झेलम है जिसे सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान को दी गई पश्चिमी नदियों में शामिल किया गया था।
झेलम नदी पर भारत का नियंत्रण पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में बाढ़ और बिजली संकट की आशंका को बढ़ा सकता है।
कुछ समय पहले भारत द्वारा झेलम में बिना सूचना के अतिरिक्त पानी छोड़े जाने से पाकिस्तान के कब्जे वाले क्षेत्र में बाढ़ जैसे हालात बन गए थे।
पाकिस्तानी नेताओं की भड़काऊ बयानबाज़ी
भारत के इस कदम से पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व में उबाल आ गया है।
- बिलावल भुट्टो – पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री ने धमकी दी है कि या तो सिंधु में हमारा पानी बहेगा या फिर उनका खून।
- विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने 4 मई को कहा कि यदि भारत ने सिंधु नदी पर और डैम बनाए, तो पाकिस्तान जवाबी हमला करेगा।
- प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भारत पर “युद्ध भड़काने की मंशा” रखने का आरोप लगाया।
पाकिस्तानी संसद ने भारत के इस कदम को युद्ध जैसी कार्रवाई करार दिया है।
सिंधु जल संधि ने बिना युद्ध के तोड़ी पाक की कमर
भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) हुई थी।
विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी यह संधि भारत को पूर्वी नदियों – रावी, ब्यास और सतलुज और पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों – सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकार देती है।
हालांकि, भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद इस संधि को आंशिक रूप से निलंबित कर दिया है और नदियों के जल प्रवाह पर नियंत्रण की नीति अपना ली है।
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, यह कदम “बिना युद्ध के युद्ध” जैसा है, जो पाकिस्तान की कमर तोड़ सकता है।
80% खेती पर असर, बिजली उत्पादन भी ठप
चिनाब और झेलम पाकिस्तान की 80% खेती और 60% जलविद्युत उत्पादन का आधार हैं।
पानी के प्रवाह में भारी कमी से न सिर्फ खेती पर असर होगा, बल्कि बिजली उत्पादन भी ठप पड़ सकता है।
इससे ग्रामीण बेरोजगारी, खाद्य संकट और ऊर्जा संकट एक साथ पनप सकते हैं।
सिंधु और उसकी सहायक नदियां पाकिस्तान के लिए केवल जलस्रोत नहीं, बल्कि आर्थिक जीवनरेखा हैं।
अब इनके प्रवाह में बाधा आने से देश की कृषि अर्थव्यवस्था पर गहरा संकट मंडरा रहा है।
भारत की रणनीति – लंबे समय से तैयारियां
भारत की यह कार्रवाई अचानक नहीं हुई है। भारत ने 2023 और 2024 में पाकिस्तान को IWT से बाहर निकलने के संकेत भी दे दिए थे।
पाकिस्तानी अखबार डॉन में प्रकाशित एक लेख “Indus Water Wars” के मुताबिक, भारत साल 2013 से रतले, पाकुल दुल और किश्तवाड़ जैसी परियोजनाओं पर काम कर रहा था।
वहीं अब भारत जल भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहा है। इसके तहत पुराने बांधों की डी-सिल्टिंग कर भंडारण क्षमता बढ़ाई जा रही है।
छोटे और मध्यम आकार के बांधों की नई परियोजनाएं चलाई जा रही हैं। साथ ही तुलबुल, बुरसर और बरसर जैसे प्रोजेक्ट्स फिर से सक्रिय किए जा रहे हैं।
इनके पूरा होने पर भारत अपनी जरूरतों के अनुसार पानी संग्रहित कर सकेगा और उसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा जैसे राज्यों में सिंचाई के लिए भेज सकेगा।
क्या भारत की जलनीति सफल होगी?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह रणनीति पारंपरिक युद्ध से ज्यादा प्रभावशाली हो सकती है।
पाकिस्तान जहां आर्थिक संकट, महंगाई और आतंरिक अस्थिरता से जूझ रहा है, ऐसे में जल संकट उसे अंदर से तोड़ सकता है।
भारत की इस नीति को राजनयिक और सामरिक दोनों ही नजरिए से एक मजबूत जवाबी कार्रवाई माना जा रहा है।
यह न केवल सुरक्षा हितों की रक्षा करता है, बल्कि आतंकवाद पर सख्त संदेश भी देता है कि अब हर हमले की कीमत चुकानी पड़ेगी।
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