Pakistan Political Coup

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असीम मुनीर पाक के अगले राष्ट्रपति! शहबाज की कुर्सी पर भी संकट, बिलावल को PM बनाने की चर्चा

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Pakistan Political Coup: भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की सियासत में इन दिनों जबरदस्त हलचल है।

चर्चाएं जोरों पर हैं कि सेना एक बार फिर तख्तापलट कर सकती है।

देश के मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी जल्द इस्तीफा दे सकते हैं।

उनकी जगह सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर को पाकिस्तान का अगला राष्ट्रपति बनाया जा सकता है।

इसी तरह मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की कुर्सी भी खतरे में है।

सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने बिलावल भुट्टो के लिए PM का पद मांगा है।

इससे भी बड़ी बात यह है कि पाकिस्तान में मौजूदा संसदीय प्रणाली को खत्म कर राष्ट्रपति प्रणाली लागू करने की तैयारी की जा रही है।

अगर ऐसा होता है तो पाकिस्तान की राजनीति एक बार फिर सेना के पूर्ण नियंत्रण में चली जाएगी, जैसा पहले भी तीन बार हो चुका है।

आर्मी चीफ असीम मुनीर बन सकते हैं राष्ट्रपति

पाकिस्तानी सेना के मौजूदा प्रमुख असीम मुनीर को हाल ही में ‘फील्ड मार्शल’ पद पर पदोन्नत किया गया है, जो सेना का आजीवन सम्मानित रैंक होता है।

इस पद के साथ उन्हें न सिर्फ विशेषाधिकार मिलते हैं, बल्कि उन्हें कानूनी प्रतिरक्षा और संवैधानिक दखल से भी सुरक्षा मिल जाती है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, सेना अब उन्हें पाकिस्तान का अगला राष्ट्रपति बनाने की तैयारी कर रही है।

यह कदम महज़ प्रतीकात्मक नहीं होगा, बल्कि इसके जरिए पाकिस्तान की पूरी सत्ता संरचना को बदलने की योजना है।

राष्ट्रपति प्रणाली की ओर बढ़ता पाकिस्तान

इस संभावित सत्ता परिवर्तन के तहत पाकिस्तान में संसद के अधिकार कम किए जा सकते हैं और देश को एक राष्ट्रपति प्रणाली के तहत संचालित किया जा सकता है।

इसका मतलब होगा कि प्रधानमंत्री का पद कमजोर हो जाएगा और सारा नियंत्रण राष्ट्रपति यानी असीम मुनीर के हाथों में चला जाएगा।

यह वही प्रणाली है जो पाकिस्तान में पहले जनरल अयूब खान और जनरल जिया-उल-हक के दौर में देखी गई थी।

PMLN और शरीफ परिवार का विरोध

इस घटनाक्रम के विरोध में सबसे मुखर हैं मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) यानी PMLN।

पार्टी को डर है कि अगर राष्ट्रपति प्रणाली लागू हो गई तो न सिर्फ शहबाज शरीफ की कुर्सी जाएगी बल्कि शरीफ परिवार की राजनीति में भूमिका भी खत्म हो सकती है।

सूत्रों का कहना है कि PMLN अब पाकिस्तानी सेना के विभिन्न गुटों से संपर्क में है ताकि इस सत्ता परिवर्तन को रोका जा सके।

बिलावल को प्रधानमंत्री बनाने की मांग

इसी बीच, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) के भीतर यह चर्चा तेज हो गई है कि बिलावल भुट्टो को प्रधानमंत्री बनाया जाए।

इस शर्त के साथ मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी इस्तीफा देने को तैयार बताए जा रहे हैं।

PPP का कहना है कि बिलावल जैसे युवा नेता को अब एक बड़ी भूमिका दी जानी चाहिए ताकि वे परिपक्व नेतृत्वकर्ता के रूप में सामने आ सकें।

हालांकि, खुद PPP के भीतर भी बिलावल की भूमिका को लेकर एकराय नहीं है।

मुनीर का दबदबा, इतिहास दोहराने की तैयारी

पाकिस्तान के विदेश संबंधों में भी अब सेना प्रमुख असीम मुनीर की पकड़ मजबूत हो रही है।

उनकी अमेरिका, चीन और सऊदी अरब जैसी महाशक्तियों में की गई हाई-प्रोफाइल यात्राएं इस ओर इशारा करती हैं कि वे अब सिर्फ सैन्य प्रमुख नहीं, बल्कि पाकिस्तान के असली ‘पावर सेंटर’ बन चुके हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुनीर अब पाकिस्तान की न्यायपालिका, संसद और मीडिया पर भी प्रत्यक्ष नियंत्रण रखते हैं।

बता दें पाकिस्तान के इतिहास में सेना द्वारा सत्ता हथियाने की घटनाएं नई नहीं हैं।

इससे पहले जनरल अयूब खान (1958), जनरल जिया-उल-हक (1977) और जनरल परवेज मुशर्रफ (1999) ने तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथ में ली थी।

ये तीनों ही बाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने। अब अगर असीम मुनीर राष्ट्रपति बनते हैं तो वे चौथे सैन्य प्रमुख होंगे जो सत्ता की सर्वोच्च कुर्सी तक पहुंचेंगे।

हालांकि यह ‘सॉफ्ट कू’ यानी बिना खून-खराबे के सत्ता परिवर्तन के रूप में देखा जा रहा है।

कोई भी PM पूरा नहीं 5 साल नहीं टिका

पाकिस्तान एक बार फिर सत्ता संघर्ष के मुहाने पर खड़ा है।

असीम मुनीर का राष्ट्रपति बनना, बिलावल का प्रधानमंत्री बनना  और राष्ट्रपति प्रणाली की बहाली – ये तीनों घटनाएं मिलकर देश की सियासी तस्वीर को पूरी तरह बदल सकती हैं।

सबसे अहम बात ये है कि पाकिस्तान में आज तक कोई भी प्रधानमंत्री अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है।

अगर यह नया राजनीतिक परिवर्तन होता है, तो यह पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थिरता पर फिर एक बड़ा सवाल होगा।

ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पाकिस्तान की राजनीति एक बार फिर सेना की मुट्ठी में कैद हो जाएगी या राजनीतिक दल इस बदलाव को रोकने में सक्षम होंगे।

 

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