Opportunity in Recession

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मंदी की मार में छुपा अवसर… अब ज़रूरत है ठोस आर्थिक रणनीति की

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अवसर तलाशने का मौका…
(आलोक ठक्कर)

टैरिफ़ वार के चलते भारत सहित दुनिया भर के आर्थिक बाजारों में आई झड़पी मंदी से निकलने के साथ ही इनमें अवसर तलाशने की भी जरूरत है।

सभी तरह के बाजार अपनी-अपनी गति और परेशानियों से मंदी की चपेट में आ रहे है और दूसरी तरफ़ सिर्फ़ इन्हें संभालने के लिए सरकार का आर्थिक मोर्चे पर वित्तीय संस्थाओं को झोकना पूरी तरह से आर्थिक बर्बादी की गिनती में ही आना है।

सरकार और बाजार के घटक चाहे जितनी भी कोशिश कर ले जब तक आपदा में अवसर नहीं तलाशा जाएगा तब तक इतनी बड़ी आबादी वाले देश को आर्थिक बदहाली से बाहर नहीं निकाला जा सकता है।

हर मर्तबा की तरह इस बार भी सरकार सिर्फ पत्तों और टहनियों की सफाई और सुरक्षा के माध्यम से ख़ुद को पाक साफ़ और बाजारों को बचाने की क़वायद में लगी है।

बाजार दुनियाभर के घटे है और फ़िलहाल यही दोर क़ायम रह सकता है। बावजूद इस सबके एक मज़बूत आर्थिक समझ (वर्तमान में उपलब्ध संसाधन नहीं) वाली टीम को पूरे अधिकारो के साथ बाजार में उतारने की जरूरत है।

यह वही दौर है जो वर्ष 1992 में प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव ने देखा था। रुपये का अवमूल्यन या उसकी मजबूती से बाहर आकर सीधे-सीधे उद्योग के साथ खड़े होने का समय है।

सिर्फ़ शेयर बाजार की मंदी या उसमें फिर सुधार के जतन करने की बजाय केंद्र को विकसित राज्यों के साथ मिलकर उद्योगों को नई ऊर्जा के स्रोत प्रदान करना चाहिए।

समय यही कहता है कि जो आपके लिए कर रहे है आप उनके बुरे दोर में उनके साथ खड़े हो।

इसके लिए बढ़े और बेहतर उत्पादन की श्रेणी में आने वाले उद्योगों को सबसे पहले कर्ज में लंबी अवधि की ब्याज माफ़ी और उत्पादों को सस्ते करने के प्रयास करना चाहिए।

अमेरिका में जिस तरह का आंदोलन खड़ा हुआ है उससे बचने या सामना करने के लिए सिर्फ़ राष्ट्रवाद इस समय काफ़ी नहीं होगा, बल्कि प्रत्यक्ष तौर पर सकारात्मक सब्सिडीज (पॉजिटिव सब्सिडी) की पहल किए जाने की आवश्यकता है।

वर्ष 2008 में आई मंदी को ध्यान में रखते हुए छोटे निवेशकों को बचाने और मंहगे और आयातित वस्तुओं पर देश के भीतर अधिक कर लगाए जाने की आवश्यकता है।

इससे छोटे ग्राहक बाजार में बने रहेंगे और ऐसे उत्पादों का आयात घटेगा जिन पर टैरिफ़ की मार की वजह से अनावश्यक विदेशी मुद्रा का खर्च बढ़ रहा है।

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