बांग्लादेश से तनाव का खतरा महज सरहद पर नहीं, भारत के भीतर भी

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सुनील कुमार

बांग्लादेश की आबादी में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर वहां जो हमले चल रहे हैं, उसके खिलाफ भारत के बहुत से शहरों में कल प्रदर्शन हुए हैं। भारत की अधिकतर राजनीतिक पार्टियों ने सरकार से तुरंत ही बांग्लादेश से पहल करने की अपील की है। और जैसा कि किसी भी घटना की प्रतिक्रिया होती है, बांग्लादेश में हिन्दुस्तानियों पर हो रहे हमले, और हिन्दू धर्म से जुड़े लोगों को निशाना बनाने की प्रतिक्रिया भी भारत में हुई है, और यहां त्रिपुरा में बांग्लादेश के उपउच्चायोग पर हमला हुआ है, जिसमें कुछ गिरफ्तारियां हुई हैं, कुछ पुलिस अधिकारी निलंबित किए गए हैं, और भारत सरकार ने बांग्लादेश से इसे लेकर अफसोस जाहिर किया है। लेकिन दोनों देशों के बीच तनातनी बांग्लादेश के जन्म के बाद से आज तक की सबसे अधिक गंभीर है। बांग्लादेश ने औपचारिक रूप से बार-बार यह बात कही है कि भारत का सत्ताधारी वर्ग बांग्लादेश विरोधी राजनीति में उलझा है। तनाव की एक बड़ी वजह यह भी है कि वहां की पिछली, जनआक्रोश से हटा दी गई प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत में शरण पाकर रह रही हैं, और बांग्लादेश की नई हुकूमत का यह मानना है कि भारत ने बांग्लादेश से अपने संबंध सिर्फ शेख हसीना तक सीमित कर रखे थे। बांग्लादेश के बहुत से लोग भारत सरकार को यह भी याद दिला रहे हैं कि उसे इस हकीकत का अहसास होना चाहिए कि अब बांग्लादेश में शेख हसीना का राज नहीं है। दोनों तरफ से तनातनी के बहुत से बयानों के बीच जमीनी हकीकत यह है कि बांग्लादेश में हिन्दू और हिन्दुस्तानियों का सुरक्षित रहना फिलहाल मुश्किल दिख रहा है, और भारत सरकार की कोशिशें अब तक बेअसर दिख रही हैं।

तनाव का यह माहौल इसलिए बड़ी फिक्र का सामान है कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में बांग्लादेश से अलग-अलग वक्त पर आकर बसे हुए लोगों की बड़ी मौजूदगी है, और इस देश के और भी राज्यों में वैध या अवैध बांग्लादेशी लाखों की संख्या में बसे हुए हैं जो कि बांग्लादेश के ताजा घरेलू तनाव के पहले भी भारत में एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहते आए हैं। अधिकतर बांग्लादेशी भारत में भाजपा के लिए राजनीतिक नुकसान के माने जाते हैं क्योंकि उनमें तकरीबन तमाम लोग मुस्लिम हैं, और भाजपा को लगता है कि उनके नाम अगर वोटर लिस्ट में जुड़ते हैं, तो यह भाजपा का बड़ा चुनावी नुकसान रहेगा। ‘बांग्लादेशी घुसपैठियों’ के नाम से जिन लाखों लोगों को देश से निकालने की चर्चा चलती है, वह कम गंभीर नहीं हैं, और मोदी सरकार ने कई कानून बनाकर भी भारत से इन लोगों को हटाने की कोशिश जारी रखी हुई है। यह नौबत दोनों ही देशों के लिए तनावपूर्ण चली ही आ रही थी, और इस बीच शेख हसीना की सरकार के वक्त भी बांग्लादेश में हिन्दू मंदिरों पर बड़े हमले होते रहते थे। भारत में शासन-प्रशासन अभी किसी भी पड़ोसी देश के मुकाबले बेहतर है, इसलिए बांग्लादेश में हिन्दुओं पर चलते आ रहे हमलों की कोई हिंसक प्रतिक्रिया भारत में नहीं हो रही है। वरना लाखों बांग्लादेशियों के खिलाफ हिंसक माहौल बनने पर भारत के भीतर एक बड़ी खराब नौबत आ सकती थी, या आ सकती है। बांग्लादेश सरकार की तरफ से अभी कहा गया है कि शेख हसीना की सरकार में अल्पसंख्यकों से सबसे अधिक नाइंसाफी हुई थी, और भारत बिना शर्त हसीना का समर्थन करता रहा।  बांग्लादेश के कई लोगों ने बड़े खुलासे से यह कहा है कि भारत में मुस्लिमों के साथ जैसा बर्ताव हो रहा है, उसकी भी प्रतिक्रिया बांग्लादेश में हो रही है।

तनातनी के इस माहौल में बांग्लादेश भारत का अब तक का एक सबसे बड़ा पड़ोसी और भागीदार देश रहा है, और फौजी-रणनीति के मुताबिक चीन के करीब जाने से रोकने के लिए बांग्लादेश को भारत कई तरह से रियायत भी देते रहा, जिसके तहत भारत में बांग्लादेशियों की बेरोकटोक आवाजाही, और बसाहट शामिल रही। अब एकाएक बांग्लादेश में बगावत के बाद आई नई सरकार ने एक तरफ तो पाकिस्तान के साथ रिश्ते शुरू किए हैं, जो कि रफ्तार से गहरे होते चल रहे हैं, दूसरी तरफ उसने चीन के साथ बेहतर रिश्ते बनाना और बताना भी शुरू किया है। ये दोनों ही घटनाक्रम भारत के लिए बड़ी फिक्र का सामान हैं क्योंकि इन दोनों के साथ भारत की खुली दुश्मनी सरीखी नौबत बरसों से बनी हुई है। और अगर बांग्लादेश भारत के दुश्मन का दोस्त बनता है, तो यह भारत की एक और घेराबंदी हो सकती है। बांग्लादेश बनने के बाद से आज तक कभी नहीं हुआ था कि पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते बने हों, क्योंकि एक जंग के बाद ही बांग्लादेश का जन्म हुआ था, और पाकिस्तान से अलग होकर यह देश बना था। ऐसे में भारत बांग्लादेश से चार हजार किलोमीटर से अधिक लंबी सरहद पर किसी भी तनाव को किस तरह झेल पाएगा? असम, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय, और पश्चिम बंगाल, इतने राज्यों की सरहद बांग्लादेश से लगती है, और इन सभी में लाखों बांग्लादेशी पीढिय़ों से बसे हुए हैं। दोनों देशों के बीच तनातनी के अनुपात में ही भारत में बसे बांग्लादेशियों के खिलाफ एक तनाव हो सकता है, और आज भारत के हिन्दू संगठन जिस तरह विचलित हैं, उसे देखते हुए भी भारत सरकार को बांग्लादेश के साथ ठोस पहल करनी चाहिए। इसमें कोई देर होने, या नौबत बिगडऩे से इस देश के भीतर भी हालात खराब हो सकते हैं।

कुल मिलाकर बांग्लादेश भारत के लिए एक बहुत बड़ी आर्थिक, सामाजिक, और सामरिक-रणनीतिक समस्या बन गया है, और बांग्लादेश की अस्थाई और तात्कालिक कामचलाऊ सरकार से भारत किस तरह के रिश्ते बना और चला सकता है, यह भारत की विदेश नीति के लिए, और उसकी समझबूझ के लिए एक बड़ी चुनौती है, और हालात अधिक खराब होने के पहले उसे काबू में करना जरूरी है।

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