Marital Rape Case: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में पत्नी द्वारा लगाए गए अप्राकृतिक यौन संबंध और वैवाहिक क्रूरता के आरोपों को खारिज करते हुए पति को राहत दी है।
न्यायमूर्ति बिनोद कुमार द्विवेदी की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि भारत में वैवाहिक बलात्कार को अब तक कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है।
यदि पति-पत्नी के बीच वैध विवाह के दौरान यौन संबंध होते हैं, भले ही वे ‘अप्राकृतिक’ माने जाएं, तो उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के अंतर्गत अपराध नहीं माना जा सकता।
हाईकोर्ट ने नहीं मानी वैवाहिक बलात्कार की दलील
यह मामला इंदौर की एक महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर से जुड़ा है।
जिसमें महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति ने जबरन अप्राकृतिक यौन संबंध बनाए, दहेज की मांग की और उसे मानसिक-शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया।
यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य), 498A (क्रूरता), 323 (चोट पहुंचाना), 294 (अश्लील भाषा), 506 (आपराधिक धमकी) और धारा 34 के अलावा दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के अंतर्गत दर्ज की गई थी।
इस मामले में इंदौर की एक अतिरिक्त सत्र न्यायालय ने 3 फरवरी 2024 को पति को धारा 377 के आरोप से मुक्त कर दिया था।
इस फैसले को चुनौती देते हुए महिला ने हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।
महिला के वकील ने कोर्ट में दलील दी कि पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद निचली अदालत ने पति को बरी करना कानून की दृष्टि से गलत है और न्यायालय को इस आदेश को रद्द कर नए सिरे से विचार करना चाहिए।
‘अप्राकृतिक संबंध अपराध नहीं, अगर पति-पत्नी के बीच हों’
वहीं, पति के वकील ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के उन प्रावधानों को असंवैधानिक घोषित कर चुकी है, जो सहमति से किए गए यौन संबंधों को अपराध मानते थे।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि पति और पत्नी के बीच सहमति या वैवाहिक संबंध है, तो ऐसे यौन संबंधों को कानून के तहत दंडनीय नहीं ठहराया जा सकता।
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपने निर्णय में कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत बलात्कार की परिभाषा में संशोधन तो हुआ है, लेकिन अब भी वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है।
कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी अपने पति के साथ वैध विवाह के अंतर्गत रह रही है और उसकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है, तो पति द्वारा की गई यौन क्रिया बलात्कार नहीं मानी जा सकती।
कोर्ट ने पत्नी की दलील ठुकराई, आरोपी पति को किया बरी
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि भले ही यौन संबंध “अप्राकृतिक” हों, लेकिन यदि वे पति-पत्नी के बीच वैवाहिक जीवन में होते हैं और विवाह वैध है, तो धारा 377 के तहत इसे अपराध नहीं माना जा सकता।
ऐसे में पत्नी की सहमति न होने का दावा भी विधिक महत्व नहीं रखता, जब तक कि वैवाहिक बलात्कार को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाती।
इस प्रकार हाईकोर्ट ने महिला की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और पति को धारा 377 के आरोप से पूरी तरह बरी कर दिया।
वैवाहिक बलात्कार को भारत में कानूनी मान्यता नहीं
फिलहाल, कोर्ट के फैसले और इस मामले ने भारत में वैवाहिक बलात्कार को लेकर जारी बहस एक बार फिर हवा दे दी है।
दुनिया के कई देशों में इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन भारत में अब तक इस पर कोई स्पष्ट कानून नहीं बना है।
कई सामाजिक संगठनों और महिलाओं के अधिकारों के लिए कार्य करने वाले समूहों की लंबे समय से यह मांग रही है कि वैवाहिक बलात्कार को भी अपराध घोषित किया जाए।
लेकिन, कानून निर्माताओं और न्यायपालिका की अलग-अलग राय के चलते यह मामला अब भी अधर में लटका हुआ है।
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