मध्यप्रदेश की 24 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, इन सीटों के लिए कांग्रेस ने अपनी रणनीति बनाना शुरू कर दी है, पढ़िए अभिषेक कानूनगो की रिपोर्ट
इंदौर। मध्यप्रदेश में कोरोना की लड़ाई अभी बाकी है, लेकिन जहां उपचुनाव होने हैं,वहां सियासी पत्ते पीसे जा रहे हैं। कांग्रेस में फिर से सत्ता में आने की कोशिश शुरू हो गई है।ज्योति सिंधिया को अपने साथियों की फिक्र सताने लगी है। एक तरफ उन्हें भाजपा से लड़ना पड़ रहा है,दूसरी तरफ कांग्रेस ने बेचैन कर रखा है। उन्हें सबसे ज्यादा फिक्र सांवेर की ही है, जहां से उनके खास तुलसी सिलावट है और उन्हें फिर से विधानसभा में भेजना है। यहां कांग्रेस ने कुछ नेताओं को काम पर लगा दिया है।कुछ को ज़िम्मेदारी दी है और कुछ चुनावी मैदान में कूदने को तैयार बैठे हैं। प्रेमचंद गुड्डू का नाम आगे है, उन्होंने इशारे भी दिए पर सब कुछ इतना आसान दिख नही रहा है। भाजपा भी गुड्डू को खाली छोड़ना नही चाहती और उन्हें आगर भेजने पर बात होने लगी है।
कांग्रेस की नज़र सावन सोनकर पर है और वो उन्हें पंजे के झंडे तले लाने की कोशिश करने लगी है। बात सिर्फ यही तक नही है,प्रकाश सोनकर के लड़के कमल विजय सोनकर को टटोला जा रहा है,उन्हें कांग्रेस से टिकट देने की बात कही जा रही है।कुछ नेताओं को काम पर लगा दिया गया है।कहा जा रहा है तुलसी का मुकाबला सिर्फ सोनकर का परिवार ही कर सकता है। ऐसे में सावन, विजय पर डोरे डाले जा रहे हैं। इन सबके बीच जीतू पटवारी जरूर अपने खास दिलीप सुरागे को मैदान में डटाए हुए हैं।
सुरागे के लिए सांवेर नया है, जब तक सिलावट के खिलाफ कांग्रेस मजबूत दावेदार तैयार नहीं कर देती, तब तक तो उसे भाजपा की आपसी फूट का भी फायदा मिलता नहीं दिख रहा। पूर्व विधायक राजेश सोनकर अपने बयान में कह चुके हैं पार्टी लाइन से अलग हटकर कोई भी भाजपाई नहीं रह सकता, लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है, क्योंकि लगातार सांवेर में जरूरतमंदों को सामान बांटने के लिए भाजपा की अलग-अलग गाड़ियां पहुंची देखी गई हैं। भोपाल में जो कांग्रेस के बड़े नेता हैं, उन्होंने भी तुलसी सिलावट पर निशाना लगा दिया है। कहा जा रहा है सारी ताकत यही लगाना है, क्योंकि जो कुछ हुआ है, उसके लिए सबसे ज्यादा कसूरवार तुलसी सिलावट को ही माना जा रहा है।
इससे नए नवेले मंत्री भी अनजान नही हैं, उन्होंने अपनी तैयारी शुरू कर दी है। बदनावर विधानसभा में दत्तीगांव परिवार चुनाव जीतता रहा है। पहले प्रेम सिंह दत्तीगांव और फिर राजवर्धन सिंह दत्तीगांव इस सीट पर काबिज रहे हैं। बीच में इंदौर से जाकर भंवर सिंह शेखावत किला फतह करने में कामयाब हो गए थे, लेकिन अब जब दत्तीगांव ही भाजपा में शामिल हो गए हैं तो कांग्रेस के लिए यहां पर बाहरी दावेदार पर दांव लगाने के अलावा कोई रास्ता रह नहीं गया है। धार के पूर्व विधायक मोहन सिंह बुंदेला के बेटे कुलदीप बुंदेला ने यहां से अपना दावा ठोका है।इनकी दावेदारी को बालमुकुंद गौतम चुनौती दे रहे हैं।
बुंदेला कमलनाथ के खास माने जाते हैं, जबकि गौतम दिग्विजय सिंह के मुरीद हैं। बदनावर विधानसभा में ज्यादातर पाटीदार मतदाता है और वहां की तासीर रही है बाहरी उम्मीदवार को ही मौका दिया गया है। वैसे पिछले चुनाव में बदनावर लोकल के रमेश अग्रवाल ने भाजपा से दावेदारी पेश की थी और निर्दलीय चुनाव लड़कर पच्चीस हजार वोट कबाड़ लिए थे। इस बार कांग्रेस उन्हीं पर दांव लगाने के लिए अग्रवाल को कांग्रेसी बनाने की तैयारी में जुट गई है। उसके लिए भी जिलाध्यक्ष बालमुकुंद गौतम तैयार नहीं है। ऐसे में जल्दी कांग्रेस को यहां से अपना दावेदार सामने लाना होगा, ताकि दत्तीगांव के सामने उसकी दावेदारी कुछ कमाल दिखा सके। राजवर्धन का गांव भी बदनावर विधानसभा में नहीं आता है, इसलिए उन पर भी बाहर ही होने का ठप्पा बरसों से लगता आया है।
मालवा निमाड़ की सबसे दिलचस्प सीट सुवासरा हैं। यहां से विधायक हरदीप सिंह डंग उस पहेली खेप में शामिल थे, जो कमलनाथ सरकार से रूठ कर बेंगलुरु पहुंची थी। उन्होंने डेढ़ महीना बेंगलुरु के रिसोर्ट में ही बिताया और सरकार गिरी तभी वापस पहुंचे थे। हालांकि हरदीप सीधे सिंधिया खेमे के नही है। लेकिन बेंगलुरु पहुंचने के कारण उन पर सिंधिया का ठप्पा लग गया और उन्होंने भाजपा ज्वाइन कर ली। हरदीप युवा कांग्रेस की देन है, उसी के आंदोलन में जेल गए थे और उन्हें सुवासरा की गद्दी से नवाजा गया था।
यहां से कांग्रेस को दावेदार मिलना उतना ही मुश्किल है, जितना रेत में पानी ढूंढना। हरदीप उस इलाके से कांग्रेस का परचम लहरा कर लाए थे, जिस मंदसौर जिले में 7 में से 6 सीटें भाजपा के दावेदारों ने जीती थी। ऐसे में अब मीनाक्षी नटराजन मैदान में उतारने की बात कही जा रही है। इस लोकसभा से वह सांसद रह चुकी हैं, इसलिए नब्ज़ को जानती हैं और हरदीप से नाराज लोग भी मीनाक्षी के संपर्क में हैं। इसी के चलते मीनाक्षी नटराजन ही यहां से कांग्रेस के लिए सबसे बेहतर उम्मीदवार साबित हो सकती हैं।
यदि वह राजी नहीं हुई तो कांग्रेस गरोठ से चुनाव लड़ चुके पूर्व मंत्री सुभाष सोजतिया पर दाव लगा सकती है। हालांकि सोजतिया गरोठ छोड़ेंगे, इस बात के लिए उन्हें सिर्फ दिग्विजय सिंह ही मना सकते हैं। मंदसौर जिले में सोजतिया का खासा वर्चस्व रहा है और इसी का फायदा कांग्रेस उठा सकती है। यहां से पूर्व मंत्री नरेंद्र नाहटा के भतीजे सोमिल नाहटा की दावेदारी भी हमेशा से रही है।
हाटपिपलिया विधानसभा के मनोज चौधरी को जीतू पटवारी कोटे का माना जाता रहा है,लेकिन उनकी वफादारी सिंधिया के साथ रही और लाख कोशिशों के बावजूद चौधरी बेंगलुरु के उस रिसोर्ट से बाहर नहीं आए।बरसों से मनोज चौधरी का परिवार कांग्रेस से टिकट मांग रहा था। पहली बार टिकट मिला और चुनाव भी जीत गए, लेकिन अब सवाल यह उठता है कि सज्जन सिंह वर्मा के इस इलाके से कांग्रेस अब किस पर दाव लगाती है, क्योंकि चौधरी को हराने के लिए पूर्व मंत्री पटवारी तो कसम ही खा चुके हैं।
बीते विधानसभा चुनाव में चौधरी को टिकट दिलवाने में उन्होंने वर्मा को मनाने का काम किया था, लेकिन इस बार इस विधानसभा की जिम्मेदारी सज्जन वर्मा और जीतू पटवारी के कंधे पर सौंपी गई है, जिसमें वर्मा राजेंद्र सिंह बघेल जो टिकट दिलवाने का मन बना चुके हैं। वहीं यहां से खाती समाज के किसी दावेदार को उतारने की बात भी कही जा रही है। इस विधानसभा में लगभग पैतीस हजार वोट इसी समाज के हैं। ऐसे में खाती समाज के दावेदारों में आपस में मुकाबला करवा कर, कांग्रेस इसका फायदा उठाना चाहती है। हालांकि संघ के पुराने नेता से भी कांग्रेस के बड़े दिग्गज लगातार संपर्क में हैं, उन्हें भी कांग्रेस में लाकर यहां से दावेदार बनाया जा सकता है।खाती समाज के युवा नेता बलराम पटेल भी यहां से दावेदारी कर रहे हैं और उन्हें भी दिग्विजय सिंह गुट का वरद हस्त प्राप्त है ऐसे में बलराम को भी मनोज के सामने उतारा जा सकता है।
आगर की बात करें तो यहां पर कांग्रेस के लिए ज्यादा दिक्कत नहीं है, क्योंकि जयवर्धन सिंह और दिग्विजय सिंह का भरोसा पहले ही विपिन वानखेड़े जीत चुके हैं।कमलनाथ भी किसान सम्मेलन के दौरान विपिन के नाम की अनौपचारिक घोषणा कर ही चुके थे, लेकिन अचानक सरकार गिर गई। हालांकि अब भी जयवर्धन का भरोसा विपिन पर ही है। यदि प्रेमचंद गुड्डू को भाजपा यहां से टिकट दे देती है तो विपिन की मंजिल जरूर दूर छटक सकती हैं, लेकिन सब कुछ कांग्रेस के हिसाब से रहा तो विपिन यहां से अच्छे दावेदार साबित होंगे।
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ अब तक मुख्यमंत्री निवास में ही डटे हुए हैं और लगातार पूर्व मंत्रियों के साथ मीटिंग का दौर चल रहा है। कई विधानसभाओं के लिए तो उन्होंने मंत्री और विधायकों की टीम तैयार कर दी है, लेकिन लेकिन कोरोना के चक्कर में अब तक टीमें मैदान में नहीं उतर पाई है। हालांकि फोन लगना शुरू हो गए हैं। रिश्तेदारों की लिस्ट भी बुलाई जा रही है। कई विधायकों को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मिलने भी बुलाया था। जिसमें विशाल पटेल शामिल हैं। उन्हें आगर विधानसभा के कुछ बूत की जिम्मेदारी सौंपी गई है। वहीं संजय शुक्ला को सांवेर विधानसभा में डटे रहने के लिए पहले ही इशारा दिया जा चुका है।
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