क्षत्रप लड़ाई … मोदी के धर्म दामाद से खफा हैं भाजपा के मुन्नाभाई

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राकेश अचल (वरिष्ठ पत्रकार )

भाजपा कब किसे ‘ धनखड़ गति ‘ प्रदान कर दे, कहना कठिन है, लेकिन मप्र विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर यानि हम सबके मुन्नाभाई किसी से नहीं डरते. प्रध श्री नरेंद्र मोदी से भी नहीं, इसीलिए शायद उन्होने मोदी जी के धर्म दामाद केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को खुलकर निशाने पर ले लिया है. सिंधिया ग्वालियर -चंबल अंचल में भाजपा के एक घोषित, अघोषित छत्रप माने जाते हैं.यहां तक कि ग्वालियर-श्योपुर ब्राडगेज लाइन का श्रेय लूटने के लिए सिंधिया और तोमर में खुला मुकाबला हुआ, और सिंधिया ने तोमर और तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा केक्षखिलाफ रेलवे सुरक्षा पुलिस थाने में मुकदमा तक दर्ज करा दिया था. दोनों नेता बामुश्किल इस मामले से बरी हो पाए थे.

क्षत्रप लड़ाई … मोदी के धर्म दामाद से खफा हैं भाजपा के मुन्नाभाई

दर असल विधानसभा अध्यक्ष तो जब मोदी सरकार में मंत्री थे तब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे. भाजपा ने 2919 के आम चुनाव में सिंधिया को घेरकर गुना से हराकर 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा की पराजय का बदला ले लिया था. सिंधिया के चुनाव हारते ही मुन्नाभाई यानि नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर-चंबल आंचल में एकछत्र वर्चस्व कायम कर लिया था, लेकिन उनका दरबार ज्यादा दिन नहीं चल पाया. 2020 में सिंधिया कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का तख्त पलटकर भाजपा में शामिल हो गये और उन्होने बिना चुनाव लडे मप्र में भाजपा की सरकार बनवा दी.

सिंधिया के भाजपा में आते ही पार्टी ने न सिर्फ ज्योतिरादित्य को राज्यसभा भेजा बल्कि उन्हें केंद्र में मंत्री भी बना दिया. केंद्रीय कृषि मंत्री रहते हुए किसान आंदोलन के चलते मोदी सरकार की जो किरकिरी हुई उसके चलते मुन्नाभाई यानि नरेंद्र सिंह तोमर के नंबर अचानक कम हो गए. 2024 के आम चुनाव के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो अपने मंत्रिमंडल में रखा लेकिन मुन्ना भाई को आम चुनाव से पहले ही वापस मप्र भेजकर विधानसभा चुनाव लडने पर मजबूर कर दिया. मप्र में भाजपा सरकार बनने के बाद भाजपा हाईकमान ने मुन्नाभाई को मुख्यमंत्री न बनाते हुए विधानसभा अध्यक्ष बनाकर एक और झटका दे दिया.

प्रधानमंत्री मोदी के खुले समर्थन के बाद ग्वालियर-चंबल में हुए तमाम विकास कार्यों का श्रेय अकेले सिंधिया ने लूट लिया. मुन्नाभाई के समर्थक मुरैना और ग्वालियर के सांसद टापते रह गये. प्रधानमंत्री ने सिंधिया के आमंत्रण पर दो बार ग्वालियर आकर सिंधिया को सार्वजनिक रूप से अपना यानि गुजरात का दामाद बताकर सिंधिया का वजन और बढा दिया. लगातार उपेक्षा से मुन्ना भाई यानि विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के सब्र का बांध पहले रिसा और फिर अचानक फूट पडा.

पिछले दिनों अपने निर्वाचन क्षेत्र दिमनी में एक सरकारी कार्यक्रम में मुन्नाभाई ने सिंधिया का नाम लिए बिना कहा कि जो लोग हर योजना का श्रेय लूटकर मै.. मै करते फिरते हैं उन्हे शायद नहीं पता कि अंचल में जो भी विकास हो रहा है वो भाजपा सरकार बनने की वजह से हो रहा है, वरना जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी तब मै.. मै करने वालों ने क्या कर लिया? तोमर का इशारा ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर था.

दरअसल मप्र भाजपा में सिंधिया और तोमर के बीच वर्चस्व की लडाई पुरानी है.तोमर मूलत: संघ का उत्पाद हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी राजमाता विजयाराजे सिंधिया के संरक्षण में पले, बढे. सिंधिया के केंद्र में रहते हुए 2014 से पहले तक केंद्रीय मंत्री के रूप में सिंधिया तोमर पर हावी रहे किंतु 2014में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आते ही नरेंद्र तोमर की किस्मत खुल गई और उन्होने सिंधिया का दरबार उजाडने की हर संभव कोशिश की, लेकिन सिंधिया अपमान का घूंट चुचाप पीते रहे. सिंधिया ने पूरे छह साल सब्र किया और फिर खुद भाजपा में शामिल होकर नरेंद्र तोमर को उनकी हैसियत दिखा दी.

सिंधिया का आभा मंडल केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड और खुद मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने सिंधिया के जयविलास पैलेस का आतिथ्य स्वीकार कर और बढा दिया. तोमर मन मसोस कर रह गये. एक जमाने में जयभान सिंह पवैया जो भाजपा नेता मुन्नाभाई के साथ हुआ करते थे और सिंधिया के मुखर विरोधी माने जाते थे वे सब अब सिंधिया के साथ खडे हो गये हैं. मुन्नाभाई के साथ अंचल के दो सांसद होने के बावजूद वे सिंधिया के आभामंडल के सामने टिक नहीं पा रहे हैं.

मजे की बात ये है कि सिंधिया और तोमर की अदावत जगजाहिर है लेकिन सिंधिया भाजपा में आकर पांच साल में इतने मजबूत हो गए हैं कि नरेंद्र सिंह तोमर यानि मुन्नाभाई को घबडाहट होने लगी है. अब देखना ये है कि सिंधिया पर परोक्ष रूप से विधानसभा अथ्यक्ष द्वारा किए गये हमले को प्रदेश और देश के भाजपा सुप्रीमों किस ढंग से लेते हैं. आशंका तो ये जताई जा रही है कि विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र तोमर ने घबडाकर सिंधिया को निशाना बनाकर अपने ही पांवों पर कुल्हाडी मार ली है.

अब सबकी नजर दिल्ली और भोपाल पर लगी है. तोमर अपने वजूद से ज्यादा अपने बेटे को स्थापित करने की फिक्र में हैं. सिंधिया के सामने भी अपनी आंखों के सामने अपने बेटे को स्थापित करने की चुनौती है.मजे की बात ये है कि सिंधिया विधानसभा अध्यक्ष तोमर के घर पांच साल पहले ही हाजरी लगा आए थे, लेकिन तोमर को कभी महल आते-जाते नहीं देखा.

आपको बता दें कि मुन्नाभाई 1983 में पार्षद का चुनाव लडकर राजनीति में आए जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता माधवराव सिंधिया के आकस्मिक निधन के बाद 2001 मेंसीधे लोकसभा का चुनाव लडकर सक्रिय राजनीति में आए थे.सिंधिया अभी 54 साल के हैं जबकि नरेंद्र तोमर 68 साल के हैं. तोमर की किस्मत में शायद अगला चुनाव हो न हो लेकिन सिंधिया के सामने ऐसी कोई फिक्र नहीं है.सवाल ये भी है कि क्या भाजपा मुन्नाभाई को मप्र का जगदीप धनकड तो नहीं बना देगी? क्या सिंधिया पार्टी हाईकमान से मुन्नाभाई यानि नरेंद्र सिंह तोमर की शिकायत करेंगे या बडप्पन दिखाते हुए मौन रहेंगे?

 

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