नई कहावत .. दाने-दाने पर लिखो देने वाले (मोदीजी) का नाम !

Share Politics Wala News

 

#politicswala

केन्द्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण पिछले सप्ताह पहले तेलंगाना के एक जिले में राशन दुकान देखने पहुंचीं तो उन्हें वहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर नहीं दिखी। उन्होंने सार्वजनिक रूप से, वीडियो-कैमरों के सामने कलेक्टर को खूब फटकार लगाई कि जो केन्द्र सरकार राशन पर इतनी रियायत देती है, उसके प्रधानमंत्री का फोटो यहां लगाने में किसको दिक्कत हो सकती है?

उन्होंने कलेक्टर को चेतावनी दी कि उनके (भाजपा के) लोग आकर फोटो लगाएंगे, और यह कलेक्टर की जिम्मेदारी होगी कि उस तस्वीर को न कोई हटा सके, और न ही कोई उसको नुकसान पहुंचा सके।

उन्होंने कलेक्टर की जिम्मेदारी के दायरे के बाहर के कई सवाल किए, और कलेक्टर का इम्तिहान लेने के अंदाज में राशन-रियायत के आंकड़े पूछे। इस पूरे वक्त भाजपा के लोग उनके साथ थे, और वे बिना रूके देर तक कलेक्टर को फटकार लगाती रहीं।

तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस पार्टी और उसके मुख्यमंत्री के.चन्द्रशेखर राव कुछ दूसरे दक्षिणी मुख्यमंत्रियों की तरह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्र सरकार के कटु आलोचक हैं।

सार्वजनिक रूप से केसीआर मोदी के खिलाफ जितनी आलोचना करते हैं, उतनी आलोचना शायद ही कोई दूसरे मुख्यमंत्री करते हों। निर्मला सीतारमण के इस बर्ताव के बाद टीआरएस कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह गैस सिलेंडरों पर मोदी की तस्वीर वाले पोस्टर चिपकाकर यह नारा लोगों को याद दिलाया, मोदीजी-1105 रूपये। और उन्होंने निर्मला सीतारमण के नाम से इन तस्वीरों को पोस्ट करते हुए पूछा कि वे प्रधानमंत्री की फोटो चाहती थीं न?

जिन लोगों ने केन्द्रीय वित्तमंत्री का यह वीडियो देखा है वे उनके व्यवहार को लेकर भी हैरान हैं। राशन दुकानों का इंतजाम राज्य सरकार की जिम्मेदारी, और उसके अधिकार क्षेत्र का मामला रहता है। इसलिए वहां पर किसी नेता के पोस्टर लगाए जाएं या नहीं, यह राज्य सरकार के तय करने का मामला है।

खासकर एक ऐसे प्रदेश में जो कि प्रधानमंत्री का बहुत प्रशंसक नहीं है, वहां एक कलेक्टर को यह राजनीतिक चेतावनी देना कि भाजपा के लोग आकर फ्लैक्स लगाकर जाएंगे, और उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए, यह बात केन्द्र-राज्य संबंधों के मुताबिक कोई अच्छी बात नहीं थी।

लोगों को याद होगा कि कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पसंदीदा समझे जाने वाले एक समाचार चैनल के स्टार-एंकर ने जब तमिलनाडु के वित्तमंत्री से इस बात को लेकर कड़े सवाल-जवाब चालू किए कि प्रधानमंत्री के कहने के बावजूद तमिलनाडु उनके निर्देशों का पालन क्यों नहीं कर रहा है, तो वित्तमंत्री ने समाचार बुलेटिन के इस जीवंत प्रसारण में बड़े सरल तर्कों से जिस तरह इस एंकर और उसकी पसंदीदा केन्द्र सरकार को एक साथ फटकारा था, वह देखने लायक नजारा था।
उसने एंकर से सवाल किए कि प्रधानमंत्री अपने किस संवैधानिक अधिकार से राज्यों को ऐसे निर्देश दे सकते हैं, उनकी अपनी ऐसी कौन सी विशेषज्ञता है जिससे कि वे ऐसे निर्देश देने के हकदार बनते हैं, उनकी ऐसी कौन सी आर्थिक कामयाबी है जिससे कि कोई राज्य उनकी बात को सुने? तमिलनाडु के वित्तमंत्री ने इस दिग्गज एंकर को विनम्र शब्दों में फटकारते हुए याद दिलाया कि तमिलनाडु आर्थिक पैमानों पर भारत सरकार से बेहतर काम करके दिखा रहा है, उसे प्रधानमंत्री के कोई निर्देश क्यों मानने चाहिए?

दरअसल केन्द्र सरकार में या किसी राज्य में व्यक्ति पूजा जब सिर चढक़र बोलने लगती है, तो ऐसे व्यक्ति के भक्तजन बाकियों से यह उम्मीद करते हैं कि वे भी कीर्तन में शामिल हों।
लेकिन निर्मला सीतारमण ने जिस तेलंगाना के एक जिले की राशन दुकान पर कलेक्टर को फटकारा, और वहां पर भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा जिले की हर राशन दुकान पर मोदी के फ्लैक्स लगवाने की घोषणा की, उस तेलंगाना के मुख्यमंत्री अपने सार्वजनिक कार्यक्रमों में मोदी की पुरानी घोषणाओं के वीडियो और आज की हकीकत दिखाते हुए प्रधानमंत्री की खासी आलोचना करते ही रहते हैं।

बागी तेवरों वाले ऐसे प्रदेश में राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में दखल देकर वित्तमंत्री ने तेलंगाना सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी को मोदी की नाकामयाबी गिनाने का एक मौका और दे दिया। दरअसल किसी भी देश-प्रदेश में जनता के पैसों से होने वाले काम का श्रेय किसी व्यक्ति को देना वैसे भी जायज नहीं है। और हिन्दुस्तान का मीडिया जनता के खजाने से किए जा रहे खर्च को किसी सत्तारूढ़ नेता द्वारा दी गई सौगात लिखने में ओवरटाइम करता है।

जनता को उसका हक मिले, और उसे सौगात की तरह लिखा जाए, तो इसका मतलब जनता को खैरात के अंदाज में कुछ दिया जा रहा है। इसी को कुछ हफ्ते पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी के लोगों ने संसद के बाहर और भीतर रेवड़ी करार दिया था, और लोगों ने आनन-फानन यह याद दिला दिया था कि किस तरह हिन्दुस्तानी बैंकों के बड़े उद्योगपतियों के दस लाख करोड़ से अधिक के कर्ज माफ किए गए हैं, और सवाल पूछा था कि क्या यह भी रेवड़ी है?

किसी मंदिर या मठ में प्रसाद के रूप में पैकेट में दी जाने वाली रेवड़ी पर तो किसी देवता या मठाधीश की फोटो लगाना जायज होगा, लेकिन जब जनता के पैसों से ही उसे उसका बुनियादी हक दिया जा रहा है, तो देश के किसी भी नेता को उसे अपनी या अपनी सरकार की दी हुई खैरात क्यों साबित करना चाहिए?
व्यक्ति पूजा का यह पूरा सिलसिला अलोकतांत्रिक है, और जब सरकारी खर्च पर इसे चलाया जाता है, तो वह खर्च तो आपराधिक रहता ही है। हिन्दुस्तान की राजनीतिक संस्कृति से देश-प्रदेश में व्यक्ति पूजा खत्म होनी चाहिए, और जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों का सम्मान होना चाहिए। ऐसी ही नौबत में भारत में राजनीतिक विचारधाराओं की विविधता का महत्व समझ आता है जब केन्द्र और राज्य के अलग-अलग नेता एक-दूसरे से सवाल करने के लायक अभी भी बचे दिखते हैं।

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *